Wednesday, 12 October 2022

विपश्यना का असर -

एक हमारे परिचित रहे। लंबे समय से गृह कलह से परेशान से रहे, जैसा कि अमूमन बहुत से घरों में होता है। बूढ़े की उम्र 65 के आसपास थी। अंतर्मुखी स्वभाव के थे। जिस उम्र में इंसान सामाजिकता खोजता है, उस उम्र में एकदम खामोश हो गये। उनकी खामोशी मानो घर वालों के लिए समस्या ही बन गई। उनकी खामोशी को पागल जैसी बीमारी समझ अलग-अलग इलाज खोजने लगे। बतौर इलाज घर के सदस्यों को किसी ने विपश्यना का आईडिया दे दिया। घरवाले खुशी खुशी दस दिन के लिए किसी एक विपश्यना सेंटर में छोड़कर आ गये। विपश्यना में वैसे भी मन साधने के लिए जबरन दस दिन बातें न करना, बहुत ही कम भोजन करना, और एकदम जेल की तरह दस दिन का कोर्स पूरा करने‌ की बाध्यता होती है। जेल कहने का कारण यह भी है, कि विपश्यना सेंटर में जाने के बाद बिना कोर्स किए बाहर आना बहुत मुश्किल होता है, जो भी लोग बीच में छोड़कर आते हैं, उनका अनुभव बहुत खराब होता है। 

बूढ़े अंकल विपश्यना पूरा कर जब घर लौटे तो कुछ दिन‌ बाद कोर्स का असर दिखने लगा। वे अंतर्मुखी से बहिर्मुखी स्वभाव के हो चुके थे, एक बार बात करना शुरू करते तो फिर रूकते नहीं थे, शुरूआत के एक दो सप्ताह बहुत अधिक बात करने‌ लगे, चिढ़चिढ़ाने भी लगे थे, फिर अचानक से एकदम गुमसुम से हो गये। कुल मिलाकर उनका व्यवहार अजीब सा हो गया था। फिर एक दिन हमेशा के लिए चुप हो गये। अगर विपश्यना में वे न जाते तो शायद...खैर।।।

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