एक राजा था। वह बहुत ही अधिक विलासी प्रवृति का रहा, उसे अपनी तारीफ करवाने का बहुत शौक रहा, अलग-अलग तरह के कपड़े और घूमने-फिरने का भी शौकीन आदमी था। देश की मूल समस्याओं से उसे कभी कोई खास मतलब नहीं रहा। अब चूंकि बड़ी मुश्किल से उसे राज पाट करने का मौका मिला था तो वह भोग करने का एक मौका नहीं छोड़ना चाहता था। लेकिन अपने भोग और विलासितापूर्ण जीवन को बरकरार रखने के लिए भी जनता के बीच एक काम करने वाली छवि को भी बनाए रखना होता है। वैसे ऐसा करना भी उसके लिए बहुत मुश्किल का काम नहीं था क्योंकि उसके राज्य की प्रजा पहले ही तरह-तरह के नशे में आकण्ठ डूबी हुई थी, भोग-विलास की चीजें चरमोत्कर्ष पर थी। राजा ने इस चीज को करीने से रेखांकित किया और इसे बनाए रखने में और मदद की।
जनमानस में एकरूपता बनाए रखने के लिए कभी राजा अपने राज्य के बाहरी दुश्मनों के नाम पर उनको अपने साथ जोड़ लेता, तो कभी राज्य की एकता अखण्डता को बनाए रखने के लिए सांकेतिक रूप में उन्हें कमण्डल लेकर घंटी बजाने कहता, चूंकि जनता को भी राजा की तरह भोग ऐश्वर्य और आलस्य की तलब लगी हुई थी इसलिए वे भी कभी कभार राजा के कहने पर सड़कों पर घंटी बजाने निकल जाते थे। राजा भी जनता के क्षमतानुसार ऐसे छोटे-मोटे काम ही उनसे कराता रहता था। आम लोगों को राजा ने छुटपुट भोग के साधन उपलब्ध करा दिए थे, सबके नशे का बराबर ख्याल रखा जा रहा था, ताकि कुछ गंभीर दूरगामी बड़े काम करने की, सोचने की कभी जरूरत ही न पड़े। जनता भी खुश थी, उसके सारे दिमागी रास्ते इस हद तक बंद कर दिये गये थे कि वह राजा के बताए गये प्रयोगों को ही सबसे महान वैज्ञानिक प्रयोग मानकर चलते थे क्योंकि हरामखोरी उनमें भी कम नहीं थी इसलिए वे भी इस चलताऊ भोग से खुश ही थे। कभी-कभी जब भोग के साधन खत्म होने लगते, कोई समस्या होने लगती, चीजें नियंत्रण से बाहर होने लगती तो राजा तुरंत धन और दैनिक जीवन की उपभोग की वस्तुओं को मुफ्त में बाँटने का ऐलान कर देता, वो बात अलग है कि यह सब चीजें उन तक कभी नहीं पहुंचती लेकिन जनता तुरंत अपना सारा दुःख दर्द भूलकर वापस सामान्य हो जाती थी, राजा किसी एक मंझे हुए डाॅक्टर की भांति थी, उसे पता होता था कि ऐसी बीमार प्रजा की बीमारी को लंबे समय तक यथावत बनाए रखने के लिए कब कौन सी दवाई पेनकिलर के रूप में देनी है।
राजा के पास पेनकिलर्स की कमी नहीं थी। राजा के पास वफादार महंतों और सामंतों की पूरी फौज थी जो उसके लिए नये-नये पेनकिलर्स इजाद कर देते थे। एक बार राज्य को भीषण महामारी ने अपनी चपेट में ले लिया, इस बार वास्तव में चीजें नियंत्रण से बाहर हो रही थी, राजा को अपने सभी वफादार लोगों को काम पर लगाना पड़ गया ताकि चीजें नियंत्रण में रहें और राजा की छवि पर आंच न आए। चीजें कुछ हद तक नियंत्रित हुई, इसकी खुशी में राजा ने अपने वफादार लोगों के लिए पुष्पवर्षा तक करवाया। जनता भी यह सब देखकर गर्व से सीना चौड़ा करने लगी, सीना चौड़ा करते हुए गर्व करना भी उन्होंने राजा से ही सीखा था क्योंकि राजा बार-बार विकट परिस्थितियों में भी सीना चौड़ा करने की बात करके लोगों में साहस भर देता था।
महामारी का दौर गुजर चुका था। कभी पता ही नहीं चला कि कितने लोग उस महामारी में चल बसे। माहौल ऐसा बन पड़ा कि जिनका कोई अपना दुनिया से चला गया उनको भी इस भ्रम में रखा गया कि कारण महामारी हो यह जरूरी नहीं। खैर, महामारी का दंश झेल चुकी जनता का जीवन पटरी पर लौटने लगा था। इसी बीच राजकोष खत्म होने की नौबत आ गई। राजा चूंकि एक सिध्दहस्त मनोविज्ञान के डाॅक्टर की तरह था तो उसने इसका भी उपाय निकाल लिया। उसने राज्य की सुरक्षा और भविष्यलक्षीय उद्देश्यों को जनता के सामने रखकर टैक्स की वसूली दोगुनी कर दी। जनता भले ही मन मस्तिष्क से थक चुकी थी, मृतप्राय स्थिति में थी, लेकिन झटका तो उसे तब भी लगा जब दोगुने टैक्स की बात आई। लेकिन झटके को कम करने के लिए चूंकि राजा ने पहले ही उपाय ढूंढ लिए थे इसलिए उसे बहुत अधिक विरोध या अड़चनों का सामना नहीं करना पड़ा। इस बार राजा ने लोगों की अपने राज्य के प्रति निष्ठा पर ही सवाल खड़ा कर दिया था, आमलोग भी नाराज हुए कि इतनी निष्ठा दिखाने के बावजूद उनकी राज्यभक्ति पर कैसे सवाल खड़ा किया जा सकता है। इस बार जनता ने राजा को खुश करने के लिए, अपनी निष्ठा का निर्वहन करने के लिए सारी जिम्मेदारी अपने कंधो पर लेने की ठान ली।
राजा और प्रजा दोनों गुपचुप तरीके से अपनी तैयारी में थे। राज्य का स्थापना दिवस नजदीक आ रहा था तो राजा ने राज्य की अस्मिता को और अधिक मजबूती से पेश करने के लिए राज्य के प्रतीक चिन्ह का बड़ा सा स्मारक बना दिया और उसे देशवासियों के समक्ष एक तोहफे की तरह प्रस्तुत किया, स्मारक देखकर लोगों की आँखे चौंधिया गई लेकिन जनता तो जनता थी, इस बार वो राजा से एक कदम आगे निकल गई। राज्य के स्थापना दिवस के ठीक पहले आम लोगों ने खुद अपने शरीर के अलग-अलग हिस्सों में राज्य का प्रतीक चिन्ह गुदवा लिया, आमजन स्थापना दिवस के दिन कमीज उतारकर अपना प्रतीक चिन्ह दिखाते हुए राज्य भर में रैली कर रहे थे, अद्भुत दृश्य था। राजा यह सब देखकर आह्लादित हो उठा क्योंकि इस बार राजा को पेनकिलर देना नहीं पड़ा था, जनता खुद अपने लिए पेनकिलर बनाने लगी थी।
कुछ झलकियां अधुनिक लगते हैं।
ReplyDeleteभैया, पूरी कहानी आधुनिक घटनाओं से प्रेरित है।
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