Saturday, 6 August 2022

किसान का बेटा अधिकारी नेता बना है -

( शीर्षक में आप दोनों जेंडर को लेकर चलिए, सुभीते के लिए बस मैंने एक को ही लिया है, जेंडर बाइस नहीं हूं। )

हमारे यहाँ आए दिन ऐसी खबरें देखने सुनने में आती है कि किसान का बेटा अधिकारी बन गया, नेता बन गया, फलां‌ व्यक्ति जो छोटा सा होटल चलाता था उसका बेटा अधिकारी बन गया, रिक्शेचालक की बिटिया कलेक्टर बन गई आदि आदि। सरकारी नौकरी की तैयारी के समय यह खूब देखने में आया कि पिता लोहार हैं, मैकेनिक हैं, ड्राइवर हैं या श्रम से जुड़ा कोई काम करते हैं, बच्चे को बहुत मेहनत करके पढ़ाया और बेटा/बेटी अधिकारी बन गये। इसमें भी पिता के काम को छोटा और बच्चे के नौकरी लग जाने को महानता की तरह प्रस्तुत किया जाता है, जबकि उसी श्रम से, उसी काम की वजह से बच्चा नौकरी पाता है, समझ नहीं आता कि इसमें श्रम का प्रकार छोटा कैसे हुआ। यहाँ तक कि प्रधानमंत्री तक के लिए यह कहा गया कि चायवाला प्रधानमंत्री बन गया, मानो चाय बेचना बहुत निम्न स्तर का काम हो। राष्ट्रपति जी के लिए भी गाँव की पृष्ठभूमि और आदिवासी समाज को कमतर बताकर राष्ट्रपति बनने को एक ऊंचाई की तरह प्रस्तुत किया गया। ठीक इसी तरह आज उपराष्ट्रपति जी के मामले में किसान परिवार से आया यह कहकर किसानी को लाइन खींचकर छोटा करने का काम किया जा रहा है।

कुछ बातें समझ ही नहीं आती है कि जैसे कोई अगर नौकरी पा लेता है तो इसमें बार-बार यह क्यों कहा जाता है कि गाँव से था, किसान परिवार से आया। मतलब यह सब कहकर आप कौन सा भाव लोगों के अंदर डालना चाहते हैं। सब कुछ इस तरह से प्रस्तुत किया जाता है कि जीवन में उसने महान काम‌ किया है, दो कदम आगे बढ़ा है यानि किसानी फालतू है, उससे आगे की चीज किसी की नौकरी करना है। जब देश की दो तिहाई आबादी गाँव से ही आती है, किसान परिवार ही अमूमन सबका बैकग्राउंड रहा है तो किसान के बच्चे ही तो नौकर बनेंगे, अब इसमें गाँव और किसानी को बार-बार इतना नीचा क्यों दिखाना। क्या फाॅर्मल कपड़े पहनकर आफिस में बैठने वाली चाकरी करना ही महानता है। क्या किसान का इस देश में कोई योगदान नहीं है। देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ ही किसान है फिर भी किसानी को बार-बार इतना हत्तोसाहित क्यों किया जाता है? किसानी के बिना आपका एक भी दफ्तर दो दिन भी नहीं चल पाएगा इस सच्चाई को आप कब तक अस्वीकारेंगे?

ठीक इसी तरह किसानी से ही जुड़े या श्रम के जितने भी आयाम हैं, चाहे वह वजन उठाने से लेकर खाना परोसने का, या शारीरिक स्किल वाले वे जितने भी काम हों, ऐसा करने वालों के बच्चों को हेय क्यों माना जाता है कि उनकी नौकरी लग जाने पर माता-पिता और घर के बैकग्राउंड को एकदम लाचारी के साथ प्रस्तुत किया जाता है।

हम इस सब दोगली मानसिकता से आखिर कब ऊपर उठेंगे?

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