मुसेवाल की हत्या के बाद एक शोर उठ रहा है ये तो गन कल्चर है , गलत कल्चर है। तो मैं बता दूं किसी बड़े विद्वान ने लिखा था जट्ट वो कबीला है जो कमर में तलवार बांध कर हल चलाता है। ये इसलिये कहा गया क्योंकि जिस इलाके में जट्ट आबादी रही है वो एक ऐसी जगह पर स्थित है जहाँ से बहुत हमलावर भारत आते थे। हमलावर आते ही या तो राजवाड़े उनको जी हजूरी से अपनी जान बचा लेते थे या फिर नई रिश्तेदारी बना कर खुद को सुरक्षित कर लेते थे । मगर जो किसान थे जिनमें में अलग अलग जातीय थी और खेती करने के कारण उन में जट्ट शब्द ही प्रचलन में था तो ये सब हमलावरों के सामने अकेले पड़ जाते थे और तब इनको खुद के लिए हल के साथ हथियार रखना जरूरी था ।
आज भी भारतीय सेना में बड़ी गिनती इन हल और हथियार के कल्चर वालों की है और हर रोज तिरंगे में लिपट कर घर आते हैं ताकि आप आराम से सो सकें। मुझे बताओ किसान किसी भी जाति का क्यों ना हो उसके घर पर क्या कोई हथियार नही है ? लाठी, जेली, गंडासी, कुल्हाड़ी तो हर किसान के घर पर मिलेगी । मुसेवाल के गीत में हथियार भी थे तो ट्रैक्टर हल भी थे , पशु भी थे और खेत भी थे । उसके गाने ऐसे नहीं थे कि आप अपनी बहन माँ के साथ ना देख सकें।
मुसेवाल की शव यात्रा में उसके बाप ने अपने ही बेटे के स्टाइल में अपने पट पे थापी मार के आसमान की ओर हाथ किया, बेटे के जज्बे को बुलंद किया। बेटे के शव के पास खड़े पट पर थापी मारना हर किसी के जिगरे में नही होता, उसके लिए आपके पीढ़ियों का डीएनए काम करता है और ये थापी सबूत है कि इस इलाके के लोग सदियों तक किस तरह से हमलावरों से लड़ते आये।
माफ करना हम उस कल्चर के वंशज है जो सदियों तक देश के दुश्मनों से लड़े, हम जी हजूरी और रिश्तेदारी करने वाले नहीं है।
आज भी भारतीय सेना में बड़ी गिनती इन हल और हथियार के कल्चर वालों की है और हर रोज तिरंगे में लिपट कर घर आते हैं ताकि आप आराम से सो सकें। मुझे बताओ किसान किसी भी जाति का क्यों ना हो उसके घर पर क्या कोई हथियार नही है ? लाठी, जेली, गंडासी, कुल्हाड़ी तो हर किसान के घर पर मिलेगी । मुसेवाल के गीत में हथियार भी थे तो ट्रैक्टर हल भी थे , पशु भी थे और खेत भी थे । उसके गाने ऐसे नहीं थे कि आप अपनी बहन माँ के साथ ना देख सकें।
मुसेवाल की शव यात्रा में उसके बाप ने अपने ही बेटे के स्टाइल में अपने पट पे थापी मार के आसमान की ओर हाथ किया, बेटे के जज्बे को बुलंद किया। बेटे के शव के पास खड़े पट पर थापी मारना हर किसी के जिगरे में नही होता, उसके लिए आपके पीढ़ियों का डीएनए काम करता है और ये थापी सबूत है कि इस इलाके के लोग सदियों तक किस तरह से हमलावरों से लड़ते आये।
माफ करना हम उस कल्चर के वंशज है जो सदियों तक देश के दुश्मनों से लड़े, हम जी हजूरी और रिश्तेदारी करने वाले नहीं है।
By - Palvinder Khaira
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