गुरूनानक देव यूनिवर्सिटी, अमृतसर के प्रोफेसर परमजीत एस. जज जो कि इंडियन सोशियोलाॅजिकल सोसायटी के भूतपूर्व अध्यक्ष भी रहे हैं, उन्होंने सिध्दू मूसेवाला को लेकर अंग्रेजी में विस्तारपूर्वक एक लंबा लेख लिखा है, लेख का हिन्दी अनुवाद करने की एक अधकचरी कोशिश की है। उस महान शख्सियत सिध्दू मूसेवाला के लिए इसे एक छोटी सी श्रध्दांजलि का टुकड़ा समझा जाए....
सिद्धू मूसेवाला की हत्या के बाद पंजाबी संगीत के एक सुनहरे युग का भी अंत हो गया। मूसेवाला ने दो समानांतर लेकिन विशिष्ट पंजाबी संगीत परंपराओं का मिश्रण प्रस्तुत किया, पंजाबी संगीत के शौर्य और वीरता वाले गायन में उन्होंने वेस्टर्न रैप का टच दिया।
सिद्धू मूसेवाला की हत्या के बाद पंजाबी संगीत के एक सुनहरे युग का भी अंत हो गया। मूसेवाला ने दो समानांतर लेकिन विशिष्ट पंजाबी संगीत परंपराओं का मिश्रण प्रस्तुत किया, पंजाबी संगीत के शौर्य और वीरता वाले गायन में उन्होंने वेस्टर्न रैप का टच दिया।
27 वर्षीय सिद्धू मूसेवाला के पहले कोई भी गायक-गीतकार पंजाब की विभिन्न संगीत परंपराओं को मिलाकर उन्हें पश्चिमी रैप से जोड़ नहीं पाया था। अभी लोग उसकी हत्या के पीछे संभावित कारणों और साजिशों के बारे में चर्चा करने में लगे हैं। इन सब से इतर, हमें गायन और गीत लेखन में मूसेवाला के योगदान को नहीं भूलना चाहिए।
उनकी मृत्यु के बाद, कुछ पत्रकारों ने मूसेवाला की तुलना महान 27-प्रसिद्ध संगीतकारों जैसे ब्रायन जोन्स, जिमी हेंड्रिक्स, जेनिस जोप्लिन, जिम मॉरिसन, कर्ट कोबेन और रॉबर्ट जॉनसन से की- जिनकी मृत्यु उनके तीसवें जन्मदिन से पहले हुई थी। लेकिन यह वर्गीकरण विडंबनापूर्ण है, क्योंकि इससे पता चलता है कि अधिकांश पंजाबी गायक-गीतकार अमर सिंह चमकीला को भूल गए हैं, जिन्होंने 1980 के दशक में पंजाबी संगीत को फिर से परिभाषित करने की प्रक्रिया शुरू की थी। जब 1988 में उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई, तो वह उस समय के सबसे लोकप्रिय पंजाबी गायक थे और वे मूसेवाला की उम्र के ही थे जब उनकी मृत्यु हुई थी।
चमकीला मर्डर मिस्ट्री को कभी भी नहीं सुलझाया गया, कोई ठोस निर्णय नहीं आया, हालांकि सिख उग्रवादियों को दोषी ठहराया गया था, क्योंकि उस समय खालिस्तान आंदोलन सक्रिय था। मूसेवाला की हत्या, जाहिर है, जांच के दायरे में है और शायद कुछ समय के लिए होगी। हालांकि, उनके अंतिम संस्कार में पिछले पचास वर्षों में पंजाब में सबसे ज्यादा भीड़ जमा हुई थी। उनके गायन ने क्षेत्रवाद और भाषा की सीमाओं को पार कर दिया, इस वजह से उन्हें भारत और पाकिस्तान में पंजाबियों और प्रवासी भारतीयों के साथ-साथ कनाडा में गोरों और अश्वेतों के बीच लोकप्रियता मिली। इस कारण से भी उनकी कविता और गायन को पंजाब की संस्कृति और इतिहास के संदर्भ के रूप में रखने की जरूरत है।
लोक गीतों, खासकर सार्वजनिक रूप से गाए जाने वाले गीतों की पंजाबी संस्कृति में महत्वपूर्ण भूमिका है। पाकिस्तानी मूल की संयुक्त राज्य अमेरिका की इतिहासकार फ़रीना मीर बताती हैं कि क्यों काल्पनिक प्रेमगाथाएं, जिन्हें किस्सा के नाम से जाना जाता है, पंजाब के इतिहास और संस्कृति की एक अनिवार्य विशेषता है। वह वर्णन करती है कि क्यों, पंजाब के अपने प्रसिद्ध ऐतिहासिक लेख, "चार बाग-ए-पंजाब" में, गणेश दास सोहनी-महिवाल, मिर्जा-साहिबान और हीर-रांझा के किस्से का वर्णन करने के लिए एक तिहाई स्थान देते हैं। जैसा कि मीर कहते हैं - ये प्रेमगाथाएं प्रेम की कथा से परे पंजाब के इतिहास का हिस्सा अधिक हैं।
मैं कहता हूं कि ये प्रेमगाथाएँ हमें समकालीन समाज के पुनर्निर्माण में भी मदद करते हैं, और इसके अलावा, वे रूपकों का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं जो पंजाबी संस्कृति को दर्शाते हैं। ये रूपक न केवल अतीत में, बल्कि आज भी पंजाब में सांस्कृतिक और सामाजिक प्रथाओं के रूप में प्रासंगिक हैं।
पंजाब के दो परिभाषित प्रेम गाथागीत जो इसकी सांस्कृतिक छवि का प्रतिनिधित्व करते हैं, हीर-रांझा और मिर्जा-साहिबान हैं। उनकी कहानियों ने उन्हें बेहद लोकप्रिय बनाया है, लेकिन वे अन्य तत्वों को समान रूप से साझा करते हैं: जैसे कि दोनों पंजाब से जुड़े हैं, और उनके नायक जट्ट हैं और मुसलमान हैं। हालांकि, दोनों गाथागीतों में पुरुष नायक अपने दोहरे चरित्र का विरोध करते हुए देखे जा सकते हैं। यानी नायक अपने प्रिय को पाने के लिए बहुत अलग तरीके चुनते हैं। रांझा खुद को एक हिंदू योगी के रूप में समर्पित करता है वहीं मिर्जा अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए शिष्टता और वीरता का रास्ता चुनता है।
हीर-रांझा और मिर्ज़ा-साहिबान के कई संस्करण हैं, लेकिन वारिस शाह के हीर और मिर्जा का चरित्र जो कि शुरू में पीलू द्वारा लिखा गया, वह सबसे लोकप्रिय है। लोकगीतों के ये दो सबसे प्रसिद्ध संस्करण एक और विशेषता साझा करते हैं - उनके सभी नायकों का अंत दुख:द होता है। (मूलतः हीर-रांझा को दामोदर गुलाटी द्वारा लिखा माना जाता है, जिसे वारिस शाह ने फिर से लिखा और उसमें सुखद अंत को त्रासदी में बदल दिया।) जबकि हीर-रांझा, हीर के चाचा के षडयंत्रों के कारण मारे गये, वहीं मिर्जा-साहिबान के दुखःद अंत के लिए साहिबान के भाई जिम्मेदार थे।
दोनों प्रेम गाथाएँ पंजाबी संस्कृति में एक विरोधाभास का प्रतिनिधित्व करती हैं। पंजाबी संस्कृति में प्रेम की व्यापक धारणा यह है कि यह मौजूदा मानदंडों के खिलाफ एक विद्रोह है, इसलिए इसे इतना सराहा जाता है। हीर-रांझा और मिर्जा-साहिबान में, पुरुष नायक अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए विभिन्न तरीकों का उपयोग करते हैं, लेकिन अंत में एक ही जगह आकर मिलते हैं। रांझा, योगी बाल नाथ के पास जाकर दीक्षा लेता है, और उनका आशीर्वाद लेते हुए हीर को अपनी दुआ में माँगता है। तब वह उस गाँव में जाता है जहाँ हीर की शादी होने वाली है और वह हीर की भाभी की मदद से उसे भगा ले जाता है। मिर्ज़ा-साहिबान के मामले में, मिर्ज़ा साहिबान की सगाई के बाद उसके गाँव में जाता है और वे दोनों वहाँ से भाग निकलते हैं, लेकिन उसके भाई उनका पीछा कर उन्हें पकड़ते हैं और उन्हें मार डालते हैं।
समय के साथ, महान सूफी कवि बुल्ले शाह रांझा को भगवान के प्रतीक के रूप में दर्शाते हुए ऊंचाइयों तक ले गये। वहीं दूसरी ओर, मिर्जा को एक योद्धा के रूप में गढ़ दिया गया। मिर्ज़ा का चरित्र कई पंजाबी लोक नायकों जैसे कि दुल्ला भट्टी, जग्गा डाकू, सुचा सुरमा और जियोना मौरह के लिए एक आदर्श की तरह रहा है, जो कि उनके कई गीतों में महिमामंडित भी हैं। सुचा सुरमा और जियोना मौरह मनसा क्षेत्र के हैं, जहां झगड़े, मारकाट और हत्या की घटनाएँ आम हैं। मनसा क्षेत्र शैक्षिक दृष्टि से भी अपेक्षाकृत कमजोर रहा, विशेष रूप से उच्च शिक्षा में। (हालांकि उसी मनसा क्षेत्र का मूसेवाला कनाडा से प्रशिक्षण प्राप्त इलेक्ट्रिकल इंजीनियर था।)
कई लोकगाथा आख्यानों में, संत और योद्धा रूपी ये दोनों चरित्र भिन्नताओं के बावजूद एक दूसरे से टकराते हुए दिखाई देते हैं। ऐसी भी कहानियाँ हैं जहाँ योध्दा सन्यासी बन गये और और सन्यासी योद्धाओं में बदल गये। कुछ अपवादों के साथ, जैसे कि दसवें सिख गुरु, जो संत सिपाही के रूप में पूजे जाते हैं, लोकगाथा के कथा में इन्हें समानांतर रूप से एक योद्धा और संत के रूप में दिखाया गया है। इसीलिए जैसे अतीत में मिर्ज़ा ने एक घोड़ी की सवारी करता था और तीर धनुष से लैस रहता था, वैसे ही आज का हीरो एक बड़ी कार चलाता है और बंदूक साथ लेकर चलता है। यह प्रतीकात्मकता युवाओं को आकर्षित करती है, लेकिन दोनों का सांस्कृतिक अर्थ अभी भी वही है।
इसलिए, हम देखते हैं कि मूसवाला ने योद्धाओं की परंपरा में गायन का रास्ता चुना। उन्होंने अपने संगीत वीडियो में हिंसक प्रतीकों को प्रस्तुत किया, और ऐसा करने वाले वे अकेले नहीं हैं। कई गायकों ने ऐसा किया है, उदाहरण के लिए, मनकरीत औलख, अमृत मान, कोरला मान, सिंगगा, दिलजीत दोसांझ, लाडी चहल और अन्य। यहां तक कि बानी संधू और गुरलेज़ अख्तर जैसी महिला गायक भी इस शैली के प्रतिनिधि रहे हैं।
मूसेवाला गायन संस्कृति के मिर्ज़ा परंपरा के वाहक थे, इसमें यह बाध्यता रहती है कि रोमांटिक गाने लिखे या गाये नहीं जाते हैं। उनके एक गाने "tochan" में स्वरों के बीच प्रेम की अनुभूति जैसे तत्व हैं लेकिन उनके गाने मिर्जा लोक गाथागीत के प्रेमी वाले परंपरा का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। अलग अलग परंपराओं का यह सम्मिश्रण मूसेवाला की असल शैली की सटीक व्याख्या करने को चुनौतीपूर्ण बनाता है। अवचेतन मन में जाने पर समझ आया कि शायद उनके गाने पंजाबी गायन शैली "द कावेेशारी" के एक और आयाम को छूते हुए दिखाई देते हैं।
Kaveeshari को संगीत के साथ या बिना गाया जा सकता है। इस परंपरा में महत्वपूर्ण गायक-गीतकार बाबू रजब अली, सोहान सिंह सीतल और करनेल सिंह पारस रहे हैं। पारंपरिक गायन के विपरीत, Kaveeshari शैली में लंबी व्याख्याएँ होती है जिसमें एक गाने का कंटेंट प्रमुखता से उभर कर आता है। इस शैली में प्रत्येक श्लोक में दस या पंद्रह लाइनें होती हैं, जबकि सामान्यतः एक गीत में प्रत्येक गीत के लिए चार से छह लाइनें होती हैं। कावेशारी की शैली भी अलग है, क्योंकि इसमें गायन के दौरान संगीत बहुत ही सीमित मात्रा में या ना के बराबर रहता है।
मूसेवाला ने अपने गीतों को कावेेशारी शैली में लिखा था, लेकिन उसका प्रस्तुतिकरण उन्होंने पश्चिमी रैप में किया है जहां अमूमन गानों में म्यूजिक का डाॅमिनेंस रहता है। मजे की बात यह कि म्यूजिक कितना भी डाॅमिनेंट हो, वह मूसेवाला की मोटी और तेज आवाज को दबा नहीं सकता था। मूसेवाला द्वारा किए गये इस अभिनव प्रयोग ने मिर्ज़ा योद्धा परंपरा और कावेशारी के माध्यम से दो समानांतर लेकिन अलग -अलग पंजाबी गायन परंपराओं को जोड़ा। और इसे उन्होंने पश्चिमी रैप के रूप में प्रस्तुत किया। यही कारण रहा है कि उन्हें दुनिया भर में सराहा गया जब उन्होंने 2015 में अपना सिंगिंग करियर शुरू किया था।
एक गीतकार के रूप में, मूसेवाला ने पंजाब की सांस्कृतिक विरासत का एक समृद्ध मिश्रण पेश किया। पंजाबी के मालवा बोली के स्पर्श के साथ ग्रामीण शब्दावलियों के संयोजन ने उनके गीतों को नया आयाम दिया। वे अक्सर रूपकों और प्रतीकों का प्रयोग करते थे, जिसकी कभी-कभी गलत तरीके से व्याख्या और आलोचना की जाती थी। एक गीत जिसमें एक ऐतिहासिक सिख शख्सियत "Mai bhago" का उल्लेख है, उस पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इसमें, उन्होंने यह कहने की कोशिश की थी कि लोगों को आधुनिक पंजाबी लड़कियों के पीछे भागने के बजाय Mai bhago से प्रेरणा लेनी चाहिए। महिलाओं पर एक और गीत में एक युवा और बहादुर लड़की को पेश किया जो बिल्कुल Jeona maurh की तरह लगती है। अपनी मां के बारे में लिखा गया उनका गीत एक ट्रेंड-सेटर बन गया था। उनका प्रसिध्द गीत "295" धर्म की राजनीति और मीडिया की एक कड़ी आलोचना थी। गाने में यह कहा गया है कि आए दिन धर्म के नाम पर झगड़े फसाद होते हैं, यदि आप सच बोलते हैं तो आपको आईपीसी की धारा 295 के तहत पकड़ लिया जाएगा और अगर आप जीवन में कुछ अच्छा करते हैं तो लोग आपसे नफरत करेंगे।
जब हम सिध्दू मूसेवाला को एक रचनात्मक गीतकार और गायक के रूप में देखते हैं, तो वह एक ऐसे ट्रेंड-सेटर के रूप में उभरता है जो पंजाबी जीवनशैली और संस्कृति के मजबूत पहलुओं को सामने रखकर लोगों में एक उम्मीद की किरण लेकर आता है। उसके वीडियो में बंदूकें दिखाई देती हैं, लेकिन बॉलीवुड फिल्म के पोस्टर से शुरू होने से योद्धाओं के कथानक तक पूरी यह भारतीय संस्कृति युद्ध और हत्याओं के विवरण से भरी हुई है। मूसेवाला उस पंजाबी परंपरा का हिस्सा था जिसमें एक प्रेमी और योद्धा रचनात्मक रूप से एक दूसरे में समाहित हो जाते हैं लेकिन जब उन्होंने अपने संगीत में खुद को एक प्रेमी लड़के के रूप में पेश नहीं किया इसका अर्थ यह है कि उन्होंने मिर्ज़ा को एक प्रेमी के रूप में खारिज कर दिया। तब मिर्जा के पास क्या बचा, एक ऐसा बागी जिसने केवल डाकुओं ने उच्च नैतिक आधार को बरकरार रखा। मूसेवाला के कुछ गीतों में हमें ऐसी छवि देखनी को मिलती है। बहादुरी और साहस की विशिष्ट पंजाबी परंपरा का उनका संयोजन जिसमें आशावादिता का पुट दिखाई देता है। अंत में यही कि कोशिश करने से दुनिया में सब ठीक हो जाता है, करते रहिए। लेकिन अभी उसे अलग कर दें। तब तक के लिए यही कि पंजाब में जल्द ही एक और मूसेवाला नहीं आने वाला है।
बहुत ही ज्ञानवर्धक 🤗🙏🙏🙏
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