Wednesday, 22 June 2022

तेरे बाबा बनाम मेरे बाबा

बहुत समय से यह देखने में आ रहा है कि राम रहीम, निर्मल बाबा, रामपाल, आसाराम, राधे माँ जैसे बाबा जब जेल की सलाखों के पीछे गये, उन पर आपराधिक मामले दर्ज हुए तो एक बड़ी सभ्रांत आबादी जो उन्हें नहीं जानती थी, वे उनके भक्तों पर खूब हँसते रहे हैं कि कैसे लोग इन क्रिमिनल बाबाओं का समर्थन करते हैं। वो बात अलग है कि यही पढ़े-लिखे सभ्य लोग सुबह शाम अपने मनोरोग के आवश्यकतानुसार तरह-तरह के बाबाओं का जमकर डोज लेते हैं जैसे कि सद्गुरू, गौड़ गोपाल दास, श्री श्री रविशंकर, आचार्य प्रशांत, बीके शिवानी, रावतपुरा सरकार आदि आदि। ( दिवंगत बाबाओं का नाम‌ नहीं ले रहा हूं, इनकी लंबी लिस्ट बन जानी है)

बात ऐसी है कि बाजार में चरस कोकेन बेचने वाली अलग-अलग दुकानें हैं, अब भले इसमें कोई दुकानदार मृदु व्यवहार का हो या कठोर व्यवहार करने वाला, बेचेगा तो वह कोकेन चरस ही, मूल्य में 19-20 का फर्क हो सकता है, कोकेन की गुणवत्ता पैकिंग आदि अलग-अलग हो सकती है, लेकिन है तो सबके पास नशे का ही सामान और अंतिम ध्येय उसी नशीले पदार्थ का वितरण ही करना है, सब अपना व्यापार ही तो कर रहे हैं, बाबागिरी नामक आपराधिक व्यापार‌। ऐसा व्यापार जो लोगों की चेतना को, उनके विवेक को कच्चा चबाकर, उनको दिगभ्रमित कर अपनी नींव मजबूत करता है। वैसे वास्तव में देखा जाए तो असल में चरस कोकेन ड्रग्स बेचने वाले देश समाज को उतना पीछे नहीं ढकेल रहे हैं जितना ये बाबा लोग ढकेल रहे हैं।

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