भारत के अधिकतर बड़े-बड़े एनजीओ लोगों को जमकर मूर्ख बनाते हैं, अधिकांश एनजीओ का चरित्र ऐसा ही है, अपवादों में अपवाद कोई होगा उनकी बात अगर छोड़ दी जाए तो सब ऐसे ही हैं। आप देखिएगा कि भारत में अधिकतर बड़े एनजीओ बड़े बड़े मेट्रो सिटी से ही निकलकर आते हैं जिन शहरों का खुद का हवा पानी और बाकी चीजों का मामला सबसे खराब होता है। असल में एनजीओ का सिस्टम हमारे यहाँ बहुत जटिल है। अधिकतर बड़े एनजीओ की नींव अतिभावुकता में टिकी होती है, आपको सही गलत समझने में ही अरसा लग जाएगा लेकिन समझ नहीं आएगा कि भीतर चल क्या रहा है। एनजीओ का सिस्टम ही ऐसा रहता है, हो भी क्यों न क्योंकि वे अपने रिसोर्स का एक बड़ा हिस्सा छवि बनाने में ही लगाते हैं, तमाम तरह के खड़यंत्र अपनाते हैं ताकि एक मजबूत छवि बन सके। क्योंकि उन्हें भारतीयों की मानसिकता का पता होता है कि एक बार सेलिब्रिटी वाली छवि बन गई, एक बार उस छवि के कारण विश्वास बन गया, तो फिर लोग दिल खोलकर दान देते हैं।
अब मूल बात पर आते हैं कि बड़े बड़े एनजीओ जो आम लोगों से इतना चंदा इकट्ठा करते हैं, इसका आखिर करते क्या हैं। दानदाता जो थोड़ा बहुत यह सोचता है कि चलिए एनजीओ अपना खर्चा भी हमारे चंदे से निकालता होगा लेकिन लोगों के लिए थोड़ा ही सही कुछ तो करता ही होगा, लोगों तक थोड़ी तो मदद पहुंचती होगी, लेकिन ऐसा नहीं है। लोगों के लिए जो काम भी होता है उसमें भी पीआर वाली चीज गहरे से जुड़ी होती है, सीधे तौर पर समझा जाए तो लोगों की मदद करने का दिखावा करना और उसको फोटो वीडियो के माध्यम से डाक्यूमेंट करना ही असली पीआर होता है। भले लोगों को सुनकर यकीन नहीं होगा लेकिन हकीकत यह है कि लोगों तक कुछ भी नहीं पहुंचता है, कुछ भी नहीं, एक चवन्नी भी नहीं, जो पहुंचता भी है वह वस्तु के नाम पर पीआर मटेरियल ही होता है।
अब हेमकुंट फाउंडेशन पर आते हैं। ये भी एक एनजीओ है, लेकिन अपवादों में अपवाद है, हो भी क्यों न, गुरूनानक की सेवा वाली संस्कृति पर जो टिका हुआ है। जैसा कि मैंने ऊपर लिखा है कि एनजीओ का नेक्सस इतना जटिल होता है आम लोगों को समझ ही नहीं आता है कि उन्हें मूर्ख बनाया गया ऐसे में लोगों के मन में सवाल आ सकता है कि इस एनजीओ के साथ अलग क्या है। अलग यह है कि सेवा का सच्चे अर्थों में पालन होता है, ढोंग नहीं होता है, जबरन मीठी बातें करने वाली चीजें नहीं होती है, अतिभावुकता नहीं होती है, फोटो वीडियो और डाक्यूमेंटगिरी ही करके छवि चमकाने वाली चीज नहीं होती है, मीडियाबाजी नहीं होती है, उससे कहीं अधिक ध्यान लोगों की सेवा करना होता है, इनका काम ही इनकी पहचान होती है। एक भीतर से महसूस करने वाली चीज भी होती है कि कौन वास्तव में लोगों के लिए काम कर रहा है।
हेमकुंट फाउंडेशन आज दिल्ली, मुंबई इन दो शहरों में लोगों को आक्सीजन की सेवा कर रहा है, बाकी और शहरों की अभी मुझे जानकारी नहीं है, जिन्हें सेवा का अर्थ नहीं पता उन्हें बताता चलूं कि सेवा का अर्थ होता है मुफ्त। लोगों को मुफ्त में आक्सीजन सिलेंडर दिया जा रहा है। ऐसे समय में जहाँ लोगों को बेड नहीं मिल रहा है, आक्सीजन सिलेंडर के लिए हाहाकार मचा हुआ है, सरकार भी जब भारत के आम लोगों के लिए 150, 400, 600 रूपए के अलग-अलग पैकेज में वैक्सीन देने की बात कह रही है, ऐसे में हेमकुंट क्या कर रहा है, मुफ्त में आक्सीजन सिलेंडर वितरण कर रहा है और लोगों की जान बचा रहा है।
आज इस संस्था का जिक्र इसलिए भी कर रहा हूं क्योंकि ये वही संस्था है जिसे कुछ महीने पहले मीडिया किसानों को पानी पिलाने, खाना खिलाने की वजह से आतंकवादी संस्था कह रही थी, खूब दुष्प्रचार किया गया था। और आज यही आतंकवादी संस्था लोगों की जान बचाने का काम कर रही है। लेकिन आप देखेंगे कि वो मीडिया चैनल आज इतनी ईमानदारी भी नहीं रख रही कि अपने पुराने आतंकवादियों को फिर से याद कर सके ताकि लोगों तक मदद पहुंचे, क्यों क्योंकि एक तरफ तो ये आक्सीजन बांटकर लोगों की जान बचा ही रहे हैं और वहीं दूसरी ओर किसानों को इस गर्मी से बचाने के लिए आज भी पानी और शर्बत की सेवा भी कर रहे हैं।
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