Thursday, 15 April 2021

भारतीय समाज और वसुधैव कुटुंबकम की हकीकत -

 साभार - विजेंद्र दीवाच

एक साल पहले जब कोरोना फैलना शुरू हुआ उसी समय मुस्लिम समाज के एक प्रोग्राम पर मीडिया की नजर पड़ गई।मीडिया द्वारा सारे मुस्लिमों को देश विरोधी घोषित कर दिया गया।

सारे न्यूज चैनल,अखबार और सोशल मीडिया में मुस्लिम समाज के खिलाफ जमकर जहर उगला।एक दिन नहीं,लगातार कई महीनों तक इस इस प्रोग्राम को देशद्रोही बताकर प्रचारित और प्रसारित करते रहे।

अब आम आदमी जो पूरे दिन कहीं भी काम कर रहा है वहां भी यही खबर,घर आकर टी वी देखे तो वही खबर,किसी दुकान पर चल रहे टी वी पर वही खबर,बाल कटाने गया वहां भी यही खबर।

अब ना चाहते हुए भी आम आदमी जो साजिश की जा रही है उसमें फंसेगा ही।उसे ऐसी फर्जी और झूठी खबर पर यकीन आयेगा ही।क्योंकि हर कहीं वह एक ही चीज देख रहा है।

मुस्लिम समाज के खिलाफ इतना गन्दा माहौल बनाया कि गांव में छोटा मोटा सामान बेचने आने वाले लोगों को बड़े गौर से देखे जाने लगा कि कहीं यह मुस्लिम तो नहीं है? यदि मुस्लिम है तो भगा दिया जा रहा था कि कहीं यह थूककर कोराेना ना फैला दे।

एक समुदाय विशेष के प्रति इतनी नफरत रखने वाले लोग देश के बंटवारे का कारण किसी और को बताकर अपने को महान देशभक्त मानते हैं।इससे बड़ा मजाक क्या होगा?

ऐसे लोगों के मुंह पर हमेशा वसुधैव कुटुंबकम् का नारा रहता है और साथ में ही जातीय दंभ भी कूट कूटकर भरा रहता है।

इन लोगों ने ही किसानों को आतंकवादी कहा, गालियां दी और सिर फाड़े।किसान आंदोलन को बदनाम करने की हर कोशिश की गई। किसान नहीं डगमगाये तो अब किसानों के टेंटों में आग लगानी शुरू कर दी है।सर्दी में पानी और गर्मी में आग,इतनी नफरत अपनों से ही,यह तो वही कर सकता है जो वसुधैव कुटुंबकम् के नारे को जेब में लेकर चलता है।

कोरोना और किसान आंदोलन ने हमारे भारतीय समाज की थोथी नैतिकता को खोल के रख दिया है।

जिस तरह पिछले साल मुस्लिम समाज को कोरोना फैलाने का पूरा जिम्मेदार ठहराया गया था क्या इस बार जो हजारों की संख्या में प्रतिदिन कोरोना से मर रहे लोगों की मौत का जिम्मेदार कुंभ के मेले और विश्व गुरु नेताओं की चुनावी रैलियों को ठहराया जाएगा?हम सबको पता है बिल्कुल नहीं। क्योंकि समाज दोगलापन रखता है।अपनी गलती तो कभी मानता ही नहीं है।

वसुधैव कुटुंबकम् नारे को सदियों से बोलते आए हैं और दूसरी और अपने ही लोगों का जातिगत समीकरण बिठाकर शोषण करते आए हैं।

इन लोगों ने वसुधैव कुटुंबकम् नारे की वैसी ही ऐसी - तैसी की है जैसी उस दीवार की होती है जिस पर लिखा होता है कि - यहां पेशाब करना मना है। वहीं सबसे ज्यादा पेशाब करके एक मजबूत दीवार को भी गला सड़ा के गिरने जैसी हालत में ले आते हैं।देखते हैं हमारे समाज के खोखले आदर्शों की नींव पर बनी दीवार कब तक टिकती है?

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