Thursday, 1 October 2020

हाथरस रेप केस और हमारा मीडिया -

जब निर्भया केस हुआ था, तब हम इंजीनियरिंग के फाइनल इयर में थे। उस समय फेसबुक में इतना कचरा नहीं फैला था, विज्ञापन नाम की चीज नहीं थी, क्योंकि फेसबुक उतना प्रचलन में भी नहीं था। वेब पोर्टल भी उतने नहीं थे, गिने चुने वेब पोर्टल और वही चुनिंदा न्यूज चैनल। चैनलों में तू तू मैं मैं अभी की तुलना में थोड़ा तो कम ही था। यह सब इसलिए बता रहा क्योंकि उस घटना के पहले दिन से अगले एक दो महीनों तक मैंने खूब न्यूज देखा था। सारे वेब-पोर्टल वेबसाइट आदि नाप लिया था, खूब यूट्यूब और न्यूज चैनलों को फोन और लैपटाप में देखा, कई बार कैफे से दर्जनों मीडिया फुटेज डाउनलोड करके लाता और देखता, अलग ही चूल मची हुई थी। सब कुछ अच्छे से याद है, आतिफ असलम ने "अब कुछ कुछ करेगा पड़ेगा" नाम का एक क्रांतिकारी गाना भी उसी समय लांच किया था, मैं कई दिन तक रोज उस गाने को सुनता रहा। इंटरनेट तब खूब महंगा हुआ करता, फिर भी मैंने जमकर पैसे खर्च किए। 1 GB के बहुत से कूपन वाॅलेट में लेकर घूमता था, मैं तब से फोन में न्यूज देखने लग गया था, लैपटाप में कनेक्ट करके खोज खोज कर देखा करता। वो ऐसा समय था, जब मेरे साथ के युवा 1 GB का कूपन महीने भर चला लेते थे।
उस समय हर कोई रेप के बारे में बात करने लगा था। निर्भया केस चूंकि थोड़ा ज्यादा वीभत्स हो गया था तो लोग बड़े आनंद से दिन रात जिक्र करते रहते, अपनी खोखली संवेदना परोसते रहते, एक‌ अलग तरह का‌ मुद्दा जो मिल गया था। कोई फाँसी मांग रहा था, तो कोई पुलिस को कोस रहा था, तो कोई सरकारी तंत्र को लेकर फायर हो रहा था, लेकिन खुद के समाज में परिवार में खराबी है, इस पर किसी का ध्यान नहीं था। ऐसे भी मित्र इस विषय पर चर्चा करते पाए जाते जो एक दिन पहले खुद किसी लड़की से बदतमीजी छेड़छाड़ किए रहते थे, मतलब घोर आश्चर्य। अरे! दूसरों का क्या कहा जाए हम खुद भी कोई कम बदतमीज नहीं था, जिसको जो मन किया बोल जाता था, काॅमन सेंस नाम की चीज ना के बराबर थी। जैसा समाज था, उसी समाज के ही तो हम बाॅय-प्रोडक्ट थे, कुछ गुण तो आने ही थे। लेकिन इतनी काॅमन सेंस तब भी थी कि मोमबत्ती जलाने वालों के साथ तब भी खड़ा होना शर्म का काम लगता था, चूतियापा तो लगता ही था साथ ही एक अजीब किस्म का अपराध बोध महसूस होता था। 
तो इस पूरे प्रोसेस में एक चीज जो मैंने नोटिस की थी वो यह कि जैसे ही निर्भया प्रकरण हुआ था। उसके बाद से ही देश के अलग अलग कोनों से रेप और छेड़छाड़ वाली खबरों की बाढ़ सी आ गई थी, हर दूसरे दिन कोई न कोई रेप की खबर, क्षेत्रीय से लेकर राष्ट्रीय न्यूज चैनल, हर जगह न्यूज में रेप की खबरें छाई हुई थी। लगभग दो तीन महीने तक रूक रूककर यह सिलसिला चलता रहा फिर धीरे से बंद हो गया। 
अब चूंकि उस समय फेसबुक एकदम नया था, तो यहाँ इन सामाजिक मुद्दों पर ज्ञान पेलने और संवेदना व्यक्त करने की बाढ़ नहीं आई थी। लेकिन निर्भया केस, अन्ना आंदोलन और केजरीवाल के राजनीति में प्रवेश और 2014 के चुनाव के बाद जो सोशल मीडिया का कबाड़ा होना शुरू हुआ, वह आज तक बदस्तूर जारी है।
महीनों तक न्यूज छानते छानते एक चीज स्पष्ट हुई थी कि रेप जैसी घटनाएँ हमारे समाज में निरंतर होती रहती है। क्योंकि जब निर्भया रेप केस हुआ था, उसी के कुछ समय बाद उससे कहीं अधिक भयावह एक रेप केस की घटना छत्तीसगढ़ के एक गाँव में हुई थी, लेकिन चूंकि गाँव की घटना थी, नार्थ इंडिया या दिल्ली के आसपास का इलाका नहीं था, इसलिए मामला दब गया, किसी वेब पोर्टल तक में नहीं आ पाया, खैर। एक चीज तो स्पष्ट है कि इस देश में जब भी कभी निर्भया रेप केस या हाथरस रेप केस जैसा कुछ हटके कुछ ट्रिगर करने जैसा वाकया सामने आता है तो पूरे देश में रेप की घटनाओं की कवरेज अचानक ही बढ़ जाती है।

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