Friday, 28 February 2020

Glimpse of Rich tribal culture

मुझे बार-बार ये महसूस होता है कि आदिवासी समाज मुख्यधारा के सभ्य कहे जाने वाले समाज से कहीं अधिक आगे है।

उदाहरण 1 -
एक गाँव में मासिक धर्म संबंधी चर्चा चल रही थी। उसी दौरान एक महिला ने ऊंची आवाज में बिना किसी संकोच के मुझसे पूछा - ये सूती कपड़ों का पैड जो आप बता रहे हैं, इसे हमें चड्डी के अंदर फँसा के पहनना है ना?
उनका सवाल सुनकर थोड़ी सी हैरानी के साथ मुझे बेहद खुशी भी हुई, मासिक धर्म पर और खुलकर बात करने के लिए मुझे उस महिला से सबल मिला। 

उदाहरण 2 -
आदिवासी गाँव में भ्रमण के दौरान एक महिला से बातचीत हुई, वह मेरे सामने अपने स्तनों को खोलकर निस्संकोच अपने बच्चे को दूध पिला रही थी, उनकी सहजता ने मुझे आश्चर्यचकित कर दिया। मैं उस समय जानबूझकर थोड़ा असहज हुआ फिर उन्होंने अपने स्तनों को कपड़ों से थोड़ा सा ढंक लिया।
मन‌ में एक सवाल आ रहा था कि क्या मुख्यधारा के माॅर्डन कहे जाने समाज में इतना खुलापन है, इतनी सहजता है?

वास्तव में देखा जाए तो आज भी आदिवासी समाज शहरी समाज से कहीं आगे है चाहे बात जीवन मूल्यों की हो, लिंगानुपात की हो, समानता, बंधुता आदि मानवीय मूल्यों की हो, स्त्रियों के सम्मान की बात हो, इन सब में आदिवासी समाज कहीं अधिक समृध्द और परिष्कृत समाज मालूम होता है।







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