मैं भूलता कम हूं,
जीवन के उन पहलुओं को जो मेरे ह्रदय के किसी कोने को आहिस्ते से अपनी बातों से, अपनी मासूमियत से उसने छू लिया था...
लेकिन मैं भूलता भी बहुत हूं,
जैसे कि मुझे संख्याएँ याद नहीं रहती, लोगों के जन्मदिन तक याद नहीं रहते, इस वजह से लोग मुझे बिल्कुल उसकी तरह बुध्दू, सढू़ कह जाते हैं, लेकिन वे उस अंदाज में नहीं कह पाते, जैसा वो कहती है, इसलिए मैं उनकी बातों को ध्यान नहीं देता हूं...
फिर मुझे वो अहसास याद आ जाता है जो कहीं न कहीं मुझे उससे बात करते हुए मिला, आज भी मिलता है, एक छोटा सा अहसास,
जिसे मैं चाहकर भी भूल नहीं पाता हूं,
जिसे मैं ऐसे लिखकर नहीं बोल पाता हूं,
एक कोई ऐसी चीज, जो शायद हमारी बातों के बीच उस धुंध सी हवा में कहीं घुली तो रहती है,
ठंडक और राहत देने के लिए,
सारी थकान और निराशा मिटा देने के लिए,
चेहरे पर एक भीनी सी मुस्कान भर देने के लिए,
पर वो दिखती नहीं है,
सचमुच उसे ना भूलना एक अलग सुखद अहसास है,
उसे ऐसे स्मृतियों में कैद रखना सूकून देता है,
लगता है जैसे मैंने अपने स्मृतिवन में एक ऐसा नगीना पाया है जिसे मैं सुन सकता हूं, जिससे मैं जी भर के बातें कर सकता हूं, शायद वह भी मुझसे जी भर के बातें करती है।
शायद वह मुझे समझती है, इसलिए भी मुझे उससे जुड़े एक एक पहलू याद रहते हैं।
शायद वह बहुत कीमती है, लेकिन वह खुद को ऐसा कहलाना पसंद ना करती हो, इसलिए भी मैं उसे ऐसा कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाता हूं।
जीवन के उन पहलुओं को जो मेरे ह्रदय के किसी कोने को आहिस्ते से अपनी बातों से, अपनी मासूमियत से उसने छू लिया था...
लेकिन मैं भूलता भी बहुत हूं,
जैसे कि मुझे संख्याएँ याद नहीं रहती, लोगों के जन्मदिन तक याद नहीं रहते, इस वजह से लोग मुझे बिल्कुल उसकी तरह बुध्दू, सढू़ कह जाते हैं, लेकिन वे उस अंदाज में नहीं कह पाते, जैसा वो कहती है, इसलिए मैं उनकी बातों को ध्यान नहीं देता हूं...
फिर मुझे वो अहसास याद आ जाता है जो कहीं न कहीं मुझे उससे बात करते हुए मिला, आज भी मिलता है, एक छोटा सा अहसास,
जिसे मैं चाहकर भी भूल नहीं पाता हूं,
जिसे मैं ऐसे लिखकर नहीं बोल पाता हूं,
एक कोई ऐसी चीज, जो शायद हमारी बातों के बीच उस धुंध सी हवा में कहीं घुली तो रहती है,
ठंडक और राहत देने के लिए,
सारी थकान और निराशा मिटा देने के लिए,
चेहरे पर एक भीनी सी मुस्कान भर देने के लिए,
पर वो दिखती नहीं है,
सचमुच उसे ना भूलना एक अलग सुखद अहसास है,
उसे ऐसे स्मृतियों में कैद रखना सूकून देता है,
लगता है जैसे मैंने अपने स्मृतिवन में एक ऐसा नगीना पाया है जिसे मैं सुन सकता हूं, जिससे मैं जी भर के बातें कर सकता हूं, शायद वह भी मुझसे जी भर के बातें करती है।
शायद वह मुझे समझती है, इसलिए भी मुझे उससे जुड़े एक एक पहलू याद रहते हैं।
शायद वह बहुत कीमती है, लेकिन वह खुद को ऐसा कहलाना पसंद ना करती हो, इसलिए भी मैं उसे ऐसा कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाता हूं।
बहुत खूब।दिल के जज्बात लिख दिये आपने।
ReplyDeleteजी, बहुत बहुत धन्यवाद
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