Friday, 20 April 2018

~ कुमाऊं में रहना है, तू-तड़ाक करना है ~

                     ये साढ़े तीन साल का लड़का प्रीतेश, जब इसने मुझसे पहली बार बात की तो इसने कुछ यूं कहा - तू कहां से आया है? तू क्या करता है? मुझे शुरूआत में बड़ा अटपटा लगा कि कैसे ये मुझे तू पे तू बोले जा रहा है। पर वो तो मुझे "तू" ही बोलने वाला हुआ। प्रीतेश की आमा(मां) ने एक बार जब उसे ऐसा बोलते सुना तो उन्होंने प्रीतेश को डांट लगाई कि ऐ! भैया बोला कर। फिर भी प्रीतेश ठहरा ठेठ पहाड़ी वो तो मुझे तू ही कहता, वो जब भी मेरे पास आता, मुझसे बातें करता तो हमेशा मुझे "तू" करके ही संबोधित करता। प्रीतेश मेरे पास सिर्फ दो चीजों के लिए आता एक मैं और मेरा लैपटाॅप, उसे लैपटाॅप से उतना लगाव था ही नहीं जितना कि मुझसे था, मुझसे इसलिए क्योंकि‌ एक बार मैंने उसे पकड़कर ऊंचाई में गेंद जैसा उछाल दिया था, मेरे ख्याल में तो उसे ये भी समझ आ गया था कि मैं लंबा हूं तो सबसे ज्यादा ऊंचाई तक उसे मैं ही उछालूंगा, तभी तो वो मुझे ही इस मामले में वरीयता देने वाला हुआ। अब वो एक चीज उसे इतनी पसंद आई कि रोज उसको गेंद की तरह ऊपर उछलने का शौक हो गया, वो खाल्ली ठहरा मुझ छै फुटिए को ही तंग करने वाला हुआ। जब आता, दरवाजा खटखटाता और हमेशा आकर यही कहता - ऐ! तू मुझे ऊपर उ़छाल दे एक बार।
लेकिन इसके ठीक उलट जो किताब पढ़ने वाले यानि जो स्कूल जाने वाले बच्चे थे वे मुझे आप कहते। फिर भी कुमाऊंनी हिन्दी में तो तू का चलन है‌ ही। बाद में ध्यान दिया तो समझ आया कि संबोधन में "तू" कहना तो कुमाऊंनी हिन्दी का एक जरूरी हिस्सा हुआ, मिठास है बल इसमें भी। तभी तो दीदी, बोज्यू(भाभी) लोग भी मुझे तू ही बोलने वाले हुए। यहां यूपी बिहार टाइप तुम या आप नहीं चलता, यहां की हिन्दी को "तू-तड़ाक" में ही विश्वास है। यहाँ का "तुम" भी "तू" और यहाँ का "आप" भी "तू" है। यहाँ के "तू" में बड़ा अपनापन है रे।


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