Thursday, 8 March 2018

Directive principles of states policy (DPSP)

भाग-4

अनुच्छेद (36-51)

राज्य के नीति-निदेशक तत्व


संवैधानिक दर्जा :-
- यह आयरलैण्ड के संविधान से लिए गए हैं।
- अंबेडकर जी ने इन तत्वों को विशेषता वाला बताया है।
- विशिष्ट निर्देश हैं जिनका स्वरूप सिध्दान्त और आदर्श जैसा है।
- यह राज्य के द्वारा शासन में मार्गदर्शी सिध्दान्त के रूप में है।
- ये राज्य के शासन में मौलिक हैं।
- इसमें राज्य का वही अर्थ बताया गया है जो मौलिक अधिकारों के लिए प्रयुक्त है, अर्थात् 'राज्य' में केन्द्र एवं राज्य सरकारों के अलावा स्थानीय प्राधिकारी भी शामिल हैं। (अनुच्छेद-36)
- नीति-निदेशक तत्व न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं हैं। (अनुच्छेद-37)

विशेषता:-
- राज्य नीतियों और कानूनों को प्रभावी बनाते समय इन तत्वों को ध्यान में रखेगा।
- नीति-निदेशक तत्व भारत शासन अधिनियम 1935 में उल्लिखित अनुदेशों के शासन हैं। ये अनुदेश ही निदेशक तत्व हैं।
- नीति-निदेशक तत्व के उद्देश्य न्याय में उच्च आदर्श, स्वतंत्रता और समानता को बनाये रखना है अर्थात् लोक कल्याणकारी राज्य का निर्माण है।
- नीति-निदेशक तत्व की प्रकृति गैर न्यायिक है अर्थात् न्यायालय द्वारा इन्हें लागू नहीं किया जा सकता।
- विधि की संवैधानिकता के अंतर्गत न्यायालय इनको देख सकता है।
श्रेणियां :-
नीति-निदेशक तत्व पर गांधीजी, अंबेडकर, नेहरू और अन्य राष्ट्रीय नेताओं के विचारों का प्रभाव दृष्टव्य है।

नीति-निदेशक तत्वों की तीन व्यापक श्रेणियां हैं-
1/ समाजवादी सिद्धांत :-
लक्ष्य सामाजिक और आर्थिक न्याय प्रदान करना।

अनुच्छेद- 38
लोक कल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक न्याय द्वारा सामाजिक व्यवस्था सुनिश्चित करना।

अनुच्छेद- 39
राज्य अपनी नीतियां इस प्रकार संचालित करेगा कि -
a)सभी नागरिकों (पुरुष और स्त्री) को आजीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त हों।
b)सामूहिक हित के लिए भौतिक संसाधनों का समान वितरण।
c)धन और उत्पादन के साधनों का केन्द्रीकरण ना हो।
d)पुरुष और स्त्रियों के लिए समान कार्य के लिए समान वेतन।
e)पुरुष और स्त्री कर्मकारों के स्वास्थ्य और बच्चों के सुकुमार अवस्था का दुरुपयोग ना हो।
f)बालकों को स्वास्थ्य विकास के अवसर।
g)अनुच्छेद-39 अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि उच्चतम न्यायालय का निर्णय है कि मूल अधिकारों के निर्वहन में इस अनुच्छेद की सहायता ली जा सकती है।
h)अनुच्छेद 39-A 42वें संविधान संशोधन 1976 द्वारा जोड़ा गया। {समान न्याय और निशुल्क विधिक सहायता}।

अनुच्छेद- 41
काम पाने की, शिक्षा पाने की, बेगारी, बुढ़ापा, बीमारी और निःशक्तता की दशाओं में लोक सहायता पाने का अधिकार।

अनुच्छेद- 42
कार्य की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं तथा प्रसूति सहायता प्राप्त करने का उपबंध।

अनुच्छेद- 43
कामगारों के लिए न्यूनतम मजदूरी, अच्छा जीवन स्तर तथा सामाजिक और सांस्कृतिक अवसर प्रदान करना।
अनुच्छेद- 43(a)
उद्योगों के प्रबंध में कर्मकारों की भागीदारी सुनिश्चित करना।

अनुच्छेद- 47
पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊंचा करना तथा लोक स्वास्थ्य का सुधार करना।

2/ गांधीवादी सिध्दान्त :-
ये सिद्धांत राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान गांधीजी के द्वारा स्थापित योजनाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं।

अनुच्छेद- 40
ग्राम पंचायतों का गठन और इन्हें आवश्यक शक्तियां प्रदान कर स्वशासन की ईकाई के रूप में कार्य करने की शक्ति देना।

अनुच्छेद- 43
ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योगों, व्यक्तिगत या सहकारिता के आधार पर इनका विकास करना।

अनुच्छेद- 46
अनुसूचित जातियाँ, जनजातियां और अन्य दुर्बल वर्गों की शिक्षा, आर्थिक हित की वृध्दि शोषण से रक्षा का प्रयास करना।

अनुच्छेद- 47
पोषण स्तर और जीवन स्तर में सुधार का प्रयास करना और मादक पेय और हानिकारक औषधियों के औषधीय प्रयोजन को छोड़कर अन्य प्रयोगों पर प्रतिबंध लगाना।

अनुच्छेद- 48
कृषि एवं पशुपालन की वैज्ञानिक प्रणालियों का विकास, दुधारू पशुओं की नस्ल में सुधार और गौ-वध का प्रतिषेध करना।
अनुच्छेद- 48(a)
पर्यावरण का संरक्षण, उसका संवर्धन और उसकी रक्षा।

उदार बौध्दिक सिद्धांत :-
उदारवादी विचारधारा से प्रेरित विचार जो राज्य को निर्देशित किए गए हैं-

•अनुच्छेद 44 - एकसमान नागरिक संहिता।
भारत में सिर्फ गोवा राज्य में लागू है।

•अनुच्छेद 45 - सभी बच्चों को 14 वर्ष की आयु पूरी करने तक निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देना।
(76वें संविधान संशोधन अधिनियम 2002 के द्वारा आयु के प्रावधान को बदला)

•अनुच्छेद 48 कृषि और पशुपालन की आधुनिक और वैज्ञानिक प्रणालियों का विकास।
•अनुच्छेद 48(a) पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1972 (42वें संविधान संशोधन के द्वारा)

•अनुच्छेद 49 राष्ट्रीय महत्व वाले विषयों, घोषित कलात्मक और ऐतिहासिक स्मारकों, स्थान और वस्तुओं का संरक्षण करना।

•अनुच्छेद 50 राज्य की लोक सेवाओं में न्यायपालिका को कार्यपालिका से पृथक करना।

•अनुच्छेद 51 अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि करना, राष्ट्रों के बीच न्यायपूर्ण और सम्मान के संबंधों को बनाये रखना।
            अंतर्राष्ट्रीय विधि और संधि बाध्यताओं के प्रति आदर बढ़ाना तथा अंतर्राष्ट्रीय विवादों के मध्यस्थ द्वारा निपटाने को प्रोत्साहन करना।




नीति-निदेशक तत्वों का महत्व :-
1)जन शिक्षण की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।ये सिध्दान्त राज्य के उद्देश्यों और लक्ष्यों की जानकारी देते हैं अर्थात् यह स्पष्ट होता है कि राज्य एक लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना के लिए कृत संकल्पित है।
2)इन सिध्दान्तों के पीछे जनमत की शक्ति होती है अतः इस एक कारण कोई भी सरकार इनकी अवहेलना नहीं कर सकती।
3)नीति-निदेशक तत्वों का महत्व इस बात में है कि ये नागरिकों के प्रति सकारात्मक उत्तरदायित्व है।
4)राजनीतिक अस्थिरता की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
5)संविधान की व्याख्या में सहायक।
संविधान के अनुसार नीति-निदेशक तत्व देश के शासन में मूलभूत हैं अर्थात् देश के प्रशासन में उत्तरदायी सभी सत्ताएं नीति-निदेशक तत्वों द्वारा ही निर्देशित होंगी।
6)न्यायलयों के लिए मार्गदर्शक का कार्य या मार्गदर्शी आदर्श के रूप में हैं।
7)शासन के मूल्यांकन का आधार हैं।
8)कार्यपालिका पर अंकुश लगाती है।

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