दीपा और मानसी दोनों बचपन की सहेलियाँ हैं। एक ही स्कूल में पढ़ती हैं। खास बात ये कि दोनों का जन्म 2035 में हुआ, अभी 2050 आते-आते वो 10th क्लास में पहुंच चुकी हैं। दोनों एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ते हैं, साथ-साथ स्कूल जाते हैं। एक बार दीपा दो दिनों तक स्कूल न आई, मानसी दीपा के घर गई तो पता चला कि उसकी तबियत कुछ ठीक नहीं है, उसे टाइफाइड हो गया है। दीपा ने मानसी से कहा कि बस कल तक ठीक हो जाऊंगी, परसों से साथ में स्कूल जायेंगे।
दोनों सहेलियां आज स्कूल समय पर पहुंच चुकी हैं, आज स्कूल में खेल का आयोजन हो रहा है, दीपा की तो अभी-अभी तबियत ठीक हुई है तो उसने खेल से दूरी बना ली है। मानसी तो वैसे भी कुछ नहीं खेलती तो वे दोनों आज स्कूल के मैदान में बैठे बातें कर रहे हैं---
दीपा - आजकल पानी कितना खराब हो गया है न, इसी कारण मैं जबरन बीमार पड़ गई। देख न मानसी घर के पानी का भी भरोसा नहीं रहा अब।
मानसी - पता है मेरे पापा अभी कुछ दिन पहले काम के सिलसिले में शहर को गये थे, वहां एक लीटर की पानी की बोतल दो सौ रूपये मिल रही है।
दीपा - अरी! दो सौ रुपए, तुझे पता है मेरे नौनिहाल में आज भी एक झील है, वहां का पानी कोई भी पी सकता है, सबके लिए मुफ्त है, बाहर से आकर बहुत लोग वहां बसने लग गए हैं, और न अब वहां बहुत लोग पानी का धंधा करने लगे हैं, तो गंदगी वहां भी आती जा रही है। अभी तो उस झील का पानी सबके लिए मुफ्त है, शायद कल उसमें भी रूपये चुकाने न पड़ जाएं।
दीपा और मानसी हंसने लगते हैं..
मानसी - हां रे! झील के सभी किनारों पर बाड़ा लगा दिया जाएगा और फिर वहां पर एक आफिस बन जाएगा, हेहे। और, और लाइन से टोकन लेना पड़ेगा फिर पानी मिलेगा।
दीपा - मुझे कभी-कभी लगता है कि लोग न पागल हो गये हैं। कभी-कभी सोचती हूं बड़ी होकर डाक्टर बनूंगी या फिर ऐसे आफिस में बैठने वाली कोई मैडम, जब मैं ऐसा सोचने लगती हूं तो लगता है मैं ही पागल हूं। फिर मैं सोचती हूं मेरे पास अपनी जमीन होती, एक झील सा तालाब उस पर होता तो कितना अच्छा होता।
मानसी - हां फिर हम दोनों मस्त कुर्सी लगा कर लोगों को पानी बेचते, खूब कमाई होती। हमको आगे और पढ़ाई करने की जरूरत ही न पड़ती।
दीपा( माथा पीटते हुए) - हाय राम! मुझसे भी अब ना होती ये पढ़ाई। पढ़-लिख के वैसे भी क्या करेंगे, मुझे तो शहर जाने का वैसे भी मन नहीं करता, मैं तो सोचती हूं यहीं रहकर मां-बाबा के काम में हाथ बटाऊंगी।
मानसी - तू सही कहती है। लेकिन मेरे बाबा 12th के बाद न मुझे शहर भेज देंगे। वे तो अभी से बोलते भी हैं कि मानसी तू अपनी बुआ के यहां रहकर कालेज की पढ़ाई करना। मैं भी कुछ बोल नहीं पाती। पता है दीपा, बुआ जहां रहती हैं वो शहर बहुत गंदा है, जगह-जगह गंदी नालियां हैं, और न वहां पास में कुछ फैक्ट्रियां हैं तो आए दिन छत पर और घर में भी काले धूल की परत चढ़ जाती है। पता है बुआ दिन में तीन से चार बार झाड़ू लगाती है।
दीपा - मानसी तू न जाना मुझे छोड़के। उस शहर में तू कैसे रहेगी। रहने दे पागल कालेज की पढ़ाई, हम अपने इस गांव में ही ठीक हैं। तू काला धूल बता रही है, मुझे तो सुनके ही डर लगने लगा है, लोग तो वहां पानी में भी उतना ही खर्च करते होंगे जितना अपने घर को काले धूल से बचाने में।
मानसी - पता नहीं कैसे रहते होंगे, एक बार मैं छुट्टियों में गयी थी तो जाते ही बीमार पड़ गयी थी, हां तेरे ही जैसा कुछ रोग हो गया था मुझे, पानी से ही होने वाली कोई नई सी बीमारी थी, पता नहीं कुछ अजीब सा नाम था, अभी याद नहीं आ रहा, हेहेहे।
दीपा(हंसते हुए) - तेरे बाबा के पास तो जमीन भी है, एक तालाब खुदवाने को क्यों नहीं कहती। कम से कम तुझे शहर जाना नहीं पड़ेगा।बस एक पानी साफ करने की मशीन लगाएंगे और फिर दोनों बहनें तालाब किनारे बैठकर राज करेंगे।
मानसी - हां, एक बार बाबा कह रहे थे कि तालाब खुदवाना भी बहुत मुश्किल हो चुका है। अच्छे कारीगर नहीं मिलते आजकल, किसी को तालाब बनाने की समझ नहीं है, और वैसे भी सरकारी दांवपेंच और ये गांव के पंचायत की दखल। और बाबा ये भी कह रहे थे कि बारिश तो उतनी होती नहीं, भू-जल स्तर भी तो दिनों-दिन नीचे जा रहा है।
दीपा - तभी मेरे बाबा कहते हैं कि नया तालाब खुदवाना अपने ही पैर में कुल्हाड़ी से वार करना है। मुझे आज उनकी बात समझ आ रही है।
मानसी - अच्छा ठीक है। तुझे पता है कल बुआ फोन करके कहती है कि उनके पड़ोस में कल निगम से मिलने वाले पानी को लेकर दो लोगों के बीच ऐसे जमकर झगड़ा हुआ, एक ने बंदूक से दूसरे को गोली मार दी। बुआ बता रही थी कि तब से कालोनी में पानी को लेकर दहशत का माहौल है।
दीपा - तू देखते जा मानसी आगे और क्या-क्या होता है। ये तो अभी शुरूआत है। तुझे पता है मेरे छोटे भाई ने एक नयी सनक पकड़ ली है, उसे पता नहीं किसने पट्टी पढ़ा दी है, वो आये रोज घर में प्लास्टिक की थैलियां इकट्ठा करता है और हमारे एक पुराने कमरे में इकट्ठा करता जा रहा है, पूछने पर वो कहता है कि रहस्य है रहस्य।
मानसी - मेरे भैया तो आजकल अखबारों में लिखने लगे हैं, मुझे बताते रहते हैं, कभी-कभी तो बोर कर जाते हैं। पता नहीं शहर जाकर कैसे हो गये हैं।
भैया ने कल कुछ सुनाया था, तुझे वो मैं सुनाती हूं-
"तबाही के मुहाने पर खड़ी है फिर भी ये दुनिया न जाने किस तसव्वुर में मगन मालूम होती है।"
दीपा और मानसी ठहाके मारकर हंसने लगते हैं..!
क्रमशः ........
दोनों सहेलियां आज स्कूल समय पर पहुंच चुकी हैं, आज स्कूल में खेल का आयोजन हो रहा है, दीपा की तो अभी-अभी तबियत ठीक हुई है तो उसने खेल से दूरी बना ली है। मानसी तो वैसे भी कुछ नहीं खेलती तो वे दोनों आज स्कूल के मैदान में बैठे बातें कर रहे हैं---
दीपा - आजकल पानी कितना खराब हो गया है न, इसी कारण मैं जबरन बीमार पड़ गई। देख न मानसी घर के पानी का भी भरोसा नहीं रहा अब।
मानसी - पता है मेरे पापा अभी कुछ दिन पहले काम के सिलसिले में शहर को गये थे, वहां एक लीटर की पानी की बोतल दो सौ रूपये मिल रही है।
दीपा - अरी! दो सौ रुपए, तुझे पता है मेरे नौनिहाल में आज भी एक झील है, वहां का पानी कोई भी पी सकता है, सबके लिए मुफ्त है, बाहर से आकर बहुत लोग वहां बसने लग गए हैं, और न अब वहां बहुत लोग पानी का धंधा करने लगे हैं, तो गंदगी वहां भी आती जा रही है। अभी तो उस झील का पानी सबके लिए मुफ्त है, शायद कल उसमें भी रूपये चुकाने न पड़ जाएं।
दीपा और मानसी हंसने लगते हैं..
मानसी - हां रे! झील के सभी किनारों पर बाड़ा लगा दिया जाएगा और फिर वहां पर एक आफिस बन जाएगा, हेहे। और, और लाइन से टोकन लेना पड़ेगा फिर पानी मिलेगा।
दीपा - मुझे कभी-कभी लगता है कि लोग न पागल हो गये हैं। कभी-कभी सोचती हूं बड़ी होकर डाक्टर बनूंगी या फिर ऐसे आफिस में बैठने वाली कोई मैडम, जब मैं ऐसा सोचने लगती हूं तो लगता है मैं ही पागल हूं। फिर मैं सोचती हूं मेरे पास अपनी जमीन होती, एक झील सा तालाब उस पर होता तो कितना अच्छा होता।
मानसी - हां फिर हम दोनों मस्त कुर्सी लगा कर लोगों को पानी बेचते, खूब कमाई होती। हमको आगे और पढ़ाई करने की जरूरत ही न पड़ती।
दीपा( माथा पीटते हुए) - हाय राम! मुझसे भी अब ना होती ये पढ़ाई। पढ़-लिख के वैसे भी क्या करेंगे, मुझे तो शहर जाने का वैसे भी मन नहीं करता, मैं तो सोचती हूं यहीं रहकर मां-बाबा के काम में हाथ बटाऊंगी।
मानसी - तू सही कहती है। लेकिन मेरे बाबा 12th के बाद न मुझे शहर भेज देंगे। वे तो अभी से बोलते भी हैं कि मानसी तू अपनी बुआ के यहां रहकर कालेज की पढ़ाई करना। मैं भी कुछ बोल नहीं पाती। पता है दीपा, बुआ जहां रहती हैं वो शहर बहुत गंदा है, जगह-जगह गंदी नालियां हैं, और न वहां पास में कुछ फैक्ट्रियां हैं तो आए दिन छत पर और घर में भी काले धूल की परत चढ़ जाती है। पता है बुआ दिन में तीन से चार बार झाड़ू लगाती है।
दीपा - मानसी तू न जाना मुझे छोड़के। उस शहर में तू कैसे रहेगी। रहने दे पागल कालेज की पढ़ाई, हम अपने इस गांव में ही ठीक हैं। तू काला धूल बता रही है, मुझे तो सुनके ही डर लगने लगा है, लोग तो वहां पानी में भी उतना ही खर्च करते होंगे जितना अपने घर को काले धूल से बचाने में।
मानसी - पता नहीं कैसे रहते होंगे, एक बार मैं छुट्टियों में गयी थी तो जाते ही बीमार पड़ गयी थी, हां तेरे ही जैसा कुछ रोग हो गया था मुझे, पानी से ही होने वाली कोई नई सी बीमारी थी, पता नहीं कुछ अजीब सा नाम था, अभी याद नहीं आ रहा, हेहेहे।
दीपा(हंसते हुए) - तेरे बाबा के पास तो जमीन भी है, एक तालाब खुदवाने को क्यों नहीं कहती। कम से कम तुझे शहर जाना नहीं पड़ेगा।बस एक पानी साफ करने की मशीन लगाएंगे और फिर दोनों बहनें तालाब किनारे बैठकर राज करेंगे।
मानसी - हां, एक बार बाबा कह रहे थे कि तालाब खुदवाना भी बहुत मुश्किल हो चुका है। अच्छे कारीगर नहीं मिलते आजकल, किसी को तालाब बनाने की समझ नहीं है, और वैसे भी सरकारी दांवपेंच और ये गांव के पंचायत की दखल। और बाबा ये भी कह रहे थे कि बारिश तो उतनी होती नहीं, भू-जल स्तर भी तो दिनों-दिन नीचे जा रहा है।
दीपा - तभी मेरे बाबा कहते हैं कि नया तालाब खुदवाना अपने ही पैर में कुल्हाड़ी से वार करना है। मुझे आज उनकी बात समझ आ रही है।
मानसी - अच्छा ठीक है। तुझे पता है कल बुआ फोन करके कहती है कि उनके पड़ोस में कल निगम से मिलने वाले पानी को लेकर दो लोगों के बीच ऐसे जमकर झगड़ा हुआ, एक ने बंदूक से दूसरे को गोली मार दी। बुआ बता रही थी कि तब से कालोनी में पानी को लेकर दहशत का माहौल है।
दीपा - तू देखते जा मानसी आगे और क्या-क्या होता है। ये तो अभी शुरूआत है। तुझे पता है मेरे छोटे भाई ने एक नयी सनक पकड़ ली है, उसे पता नहीं किसने पट्टी पढ़ा दी है, वो आये रोज घर में प्लास्टिक की थैलियां इकट्ठा करता है और हमारे एक पुराने कमरे में इकट्ठा करता जा रहा है, पूछने पर वो कहता है कि रहस्य है रहस्य।
मानसी - मेरे भैया तो आजकल अखबारों में लिखने लगे हैं, मुझे बताते रहते हैं, कभी-कभी तो बोर कर जाते हैं। पता नहीं शहर जाकर कैसे हो गये हैं।
भैया ने कल कुछ सुनाया था, तुझे वो मैं सुनाती हूं-
"तबाही के मुहाने पर खड़ी है फिर भी ये दुनिया न जाने किस तसव्वुर में मगन मालूम होती है।"
दीपा और मानसी ठहाके मारकर हंसने लगते हैं..!
क्रमशः ........