फिर पता चला कि हमें स्कूल में जिन मास्टरजी लोगों ने पढ़ाया था, चूंकि वे वर्तमान में शिक्षाकर्मी हैं तो वे भी इस आंदोलन का हिस्सा हैं।
ये वही हिन्दी पढ़ाने वाले शिक्षक हैं --
- जिन्हें आज भी बाइक चलानी नहीं आती, दहेज में एक 100cc की गाड़ी मिली थी वो पिछले दस साल से पड़ी हुई है। सर ने कभी बाइक सीखने की ओर ध्यान ही नहीं दिया।
- सर को साइकल पसंद है वे आज भी साइकल से ही स्कूल जाते हैं. कहीं शादी समारोह में भी जैसे पंद्रह बीस किलोमीटर जाना है, अपने साइकल में ही निकल लेते हैं।
- आज वे जहाँ पर शिक्षाकर्मी के रूप में कार्यरत हैं, उनके घर से स्कूल सौ किलोमीटर दूर है पर वे आज के समय में भी रोज सुबह अपनी साइकल से निकलते हैं। समय को ध्यान में रखते हुए एक तय दूरी साइकल में ही तय करते हैं फिर बस ले लेते हैं या फिर साइकल वहीं छोड़कर किसी बाइक वाले से लिफ्ट ले लेते हैं।
- इतने संपन्न तो हैं कि चाहते तो शहर में घर बना लेते, पर आज भी गांव में ही रहते हैं। खेती-बाड़ी भी संभालते हैं।
~ इसके बाद याद आए मुझे अपने संस्कृत के एक टीचर। इस बार मैं दीवाली में घर गया था, मैं बाइक से जा रहा था वे साइकल में सामने से आ रहे थे।पता चला कि वे आज भी साइकल से ही स्कूल जाते हैं।
~ फिर याद आए केमेस्ट्री के टीचर, उन्हें भी गाड़ी से डर लगता था वे आज भी हीरोपुक टाइप का कुछ चलाते हैं।
और ये टीचर्स आज शिक्षाकर्मी हैं जो अपनी मांगों को लेकर आंदोलन पर हैं। ये सारे टीचर्स लगभग पैंतीस चालीस की उम्र के आसपास के होंगे, पर यकीन मानिए आज भी उनमें से एक के पास भी कार, बंगला या कोई बड़ी संपत्ति नहीं है। असल में इन चीजों को उन्होंने कभी अपनी जरूरत समझी भी नहीं। बच्चों को पढ़ाना ही उनका एकमात्र धर्म रहा और वे आज भी विकट परिस्थितियों में अपना गुरुधर्म निभा रहे हैं।
ऐसे टीचर्स सिर्फ मेरे जीवन में नहीं है आप सबके जीवन में भी है। हमारे शिखर तक पहुंचने में, सफलता नामक जूस पीने में, सुविधाएँ हासिल करने में इनका योगदान रहेगा ही रहेगा। दुनिया की कोई ताकत इस सच को नहीं झुठला सकती।
चलते-चलते...
इन शिक्षकों को न तो मैं मौन समर्थन दे पा रहा हूं, न ही उनके फैसले के विरुद्ध कुछ सोच पा रहा हूं। बस उनकी पीड़ा को खुली आंखों से समझने का प्रयास कर रहा हूं। और ये समझने का प्रयास ही इनकी सबसे बड़ी आवश्यकता है और ये आवश्यकता बिना एक चीज के अधूरी ही रहेगी और उस अधूरेपन का नाम है "सम्मान"। और ये सम्मान हमारे टीचर्स को किसी भी हाल में मिलना ही चाहिए।