Friday, 14 October 2016

~ भीड़ की मानसिकता ~

मैं उस समय 3rd या 4rth क्लास में था।
मोहल्ले  में लड़ाई चल रही थी, दो लोग एक तीसरे की चप्पलों से पिटाई कर रहे थे।
मैं बड़ी उत्सुकता से ये सब देख रहा था।
तभी दादी आई और एक हाथ से मुझे खींचते हुए घर ले गई, मैं बहुत जोर आजमाया, चिल्लाया लेकिन हाथ की पकड़ छुड़ाने में असफल रहा, बाद में घर में रो रोकर हाहाकार मचाया कि मुझे झगड़ा क्यों नहीं देखने दिए।
उस वक्त पापा ने मुझे एक शब्द नहीं कहा था।
जब मैं शांत हुआ तो फिर दादी ने बताया कि तुम बाप बेटे एक जैसे हो,
उन्होंने पापा की ओर इशारा करते हुए कहा - ये भी बचपन में ऐसा ही करता था जहां झगड़ा हुआ, झगड़ा पूरा देखे बिना वापस घर आता ही नहीं था और फिर रात को ठीक से खाना नहीं खाता था।

अभी कुछ दिन पहले की बात है..
मैं रात का खाना खाने होटल जा रहा था,
नौ बज चुके थे,
पहाड़ों में इस समय लगभग सारी दुकाने बंद हो जाती है।
मैं खाने की टेबल पर बैठा और कहा कि भाई एक थाली लगा देना।
उतने में ही बाहर लोगों के चिल्लाने की आवाज आई..
मामला ये हुआ कि पंद्रह बीस लोग एक लड़के को बुरी तरीके से पीट रहे थे..ईंट से उसका सर भी फोड़ दिया..एक लड़का तो कहीं से एक कुल्हाड़ी ले आया था, हवा में लहराने लगा।
भीड़ का गुस्सा इतना तेज था कि जो बीच बचाव करने आया उनको भी अच्छी खासी चोट लग गई..आखिर में लड़के को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा।
मामला शांत हुआ तो पता चला कि मार खाने वाला लड़का बहुत ही बड़बोला है साथ ही बिगड़ैल स्वभाव का है।
शराब के नशे में उसने अपशब्द कहे और लोगों ने उस पर गुस्सा उतार दिया।
लड़का एकलौता है, धन संपन्न परिवार से है।
नशे में धुत्त एक दफा उसने मेले में एक पुलिस वाले की पिटाई की और अपने दोस्त को फोन देकर वीडियो बनाने को कहा।
पुलिस कस्टडी में पूरे एक दिन उसकी पिटाई हुई..महीने भर तक चल नहीं पाया था।ये उस लड़के का इतिहास है।

होटल में काम करने वाला लड़का जो मेरे साथ ये सब देख रहा था, उसने मेरा हाथ पकड़ कर अंदर की ओर ले जाते हुए कहा, चलो चलो आप खाना खा लो, अब शटर गिराऊंगा।
मैं कमरे से तो यही सोचकर गया था कि पांच छः रोटी जाऊंगा लेकिन गिरते पड़ते चार रोटी में सिमटकर रह गया।
जो लोग झगड़े के बारे में चर्चा कर रहे थे वो कह रहे थे कि यार ऐसे गाली देगा तो कौन नहीं मारेगा यार, जो हुआ बहुत बढ़िया हुआ।
एक पहचान वाले ने कहा क्या सरजी फाइट देखे पूरा,मजा आया?
एक और ने कहा कि  यार अपने ही बीच का तो है, जो हुआ ठीक नहीं हुआ।
मैं तुरंत वहां से कमरे को आ गया, रास्ते में बार-बार गांधी याद आ रहे थे।

मैं जब उस लड़के को पीटते देख रहा था हमेशा की तरह मेरी धड़कने तेज हुई, बहुत गुस्सा भी आया कि कैसे इस भीड़ को मैं रोक दूं, एक बार को सोचा कि उनके बीच जाकर जोर से चिल्लाऊं, लेकिन भीड़ का उत्साह इतना ज्यादा कि कोई शराब के नशे में था तो कोई मारपीट करने के नशे में...।
सच कहूं तो मैं भीड़ के इस भयावह रूप से डर गया,
कमजोर पड़ गया।लाचार और बेबस बस देखता रहा।
टीस तो बहुत हुई कि हिमाचल की इन वादियों में ये सब क्या हो रहा है।
अब ऐसे मामले में सही गलत के बाड़े में क्या लोगों को बांधा जा सकता है?  नहीं बिल्कुल नहीं।
लेकिन कल रात मैं उस मार खाने वाले लड़के के साथ था न कि भीड़ के साथ।
चाहे वो मार खाने वाला लड़का कितना भी गलत क्यों न हो लेकिन मेरी वेदना, पीड़ा, सारी मनोस्थिति उसी लड़के के इर्द-गिर्द ही बनी रही।

क्या करूं हर बार अपना वही पुराना वादा दोहराता हूं कि चाहे मेरी आंखों के सामने हालात कैसे भी हों मैं कभी भीड़ की मानसिकता के साथ खड़ा नहीं होऊंगा।

मेरे साथ यही हो रहा है...
आसपास कहीं झगड़े होते हैं,
खींचा चला जाता हूं,
धड़कनें तेज होती है,
मन उदास होता है,
और आखिरकार मायूस सा चेहरा ले अपने घर को वापस लौट जाता हूं।
बचपन से आज तक बस यही हो रहा है।

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