Thursday, 20 October 2016

~ Les Miserables by Victor Hugo ~

एक ऐसा उपन्यास जिसमें छिपा है फ्रांसिसी क्रांति के समय का फ्रांस और जिसे उन्नीसवीं सदी में सबसे ज्यादा ख्याति मिली।
आज से लगभग 150 साल पहले ये नावेल आई थी, लेकिन आज भी इस नावेल पर फिल्में बन रही है, अब तक लगभग 13 फिल्में बन चुकी हैं।
उपन्यासकार विक्टर ह्यूगो को इस नावेल को लिखने में लगभग 17 साल लगे..1845 में उन्होंने लिखना शुरू किया..और 1862 में उनकी ये नावेल प्रकाशित हुई।उस समय प्रचलित लगभग सभी भाषाओं में इसका अनुवाद किया गया।

मैंने कुछ महीने पहले जब ये नावेल पढ़ा था तो ऐसा लगा कि मैं किसी दूसरी दुनिया में हूं, इस नावेल का 2350 पेज का इंग्लिश वर्जन जो मेरे फोन में पीडीएफ में था...मैंने 3 दिन में खत्म कर दिया।
सच कहता हूं मैंने इससे पहले कभी किसी किताब को इतनी शिद्दत से नहीं पढ़ा है।
आप यकीन नहीं करेंगे, मैं कुछ दिन तो ढंग से सो भी नहीं पाया..एक अलग ही स्टेट आफ माइंड, मेरी हालत तो ठीक कुछ वैसी थी जैसी हिमाचल के कौलंतक पीठ के कौलाचारी लोगों की होती है, कहा जाता है कि वे दो-दो दिन तक लगातार ध्यान में लीन रहते हैं।

अब मैं आपको नावेल के बारे में कुछ बताता हूं जो आपको हिन्दी में कहीं और शायद ही मिले।
नावेल पर सबसे पहली फिल्म 1908 में बनकर आई, उसके बाद से इस नावेल की विषयवस्तु पर फिल्में बनती गई। मेरी नजर में तो ये एक ऐसा बेजोड़ नावेल है जो सबके पढ़ने लायक चीज है। अच्छा इस पर एक फिल्म बनी है 1957 में और एक दूसरी 1978 में, ये दोनों फिल्में यूट्यूब में है।अभी हाल ही में 2012 में इस पर जो फिल्म बनी है वो तो आपको आसानी से मिल जायेगी। लेकिन बात वही है मैंने जब पूरी नावेल पढ़ने के बाद इन फिल्मों को देखा तो ऐसा लगा कि शहद पहले पी लिया हो और अब शक्कर का स्वाद लेने बैठा हूं।

1862 में जब ये नावेल प्रकाशित हुई थी तो पहले ही दिन इसकी 48000 कापियां बिक गई, लोग घंटों तक लाइन में लगे रहते, इस किताब की वजह से आए दिन ट्रैफिक जाम होता।किताब के कापीराइट एवं किताब बेचने को लेकर दुकानदारों के बीच मारपीट,झगड़े होना आम बात हो गई थी।
इस उपन्यास को "सामाजिक अन्याय का महाकाव्य" कहा गया।
उन्नीसवीं सदी में किसी और नावेल ने इतनी प्रसिद्धि नहीं पाई, संपूर्ण यूरोप में इस किताब ने धूम मचा दी।अमेरिका में जब ये नावेल पहुंची उस समय वहां गृहयुद्ध चल रहा था।
अमेरिका में इस नावेल के प्रभाव का अंदाजा आप इस घटना से लगाइएगा..युध्द में जब सैनिक बंदूक लेकर जाते तो हमेशा अपने साथ ये किताब लेकर जाते..कैंपों में या खाली समय में कोई एक सैनिक अपनी टोली के सभी सैनिकों को इस नावेल को सुनाता और सेना का मनोबल बढ़ाता।
अमेरिकी सैनिक एक दूसरे को lee miserables नाम से संबोधित करते।

"Les Miserables" यानी "विपदा के मारे"।
विक्टर ह्यूगो ने नावेल के बारे में कहा - मुझे नहीं पता कि इस नावेल को कितने लोग पढ़ेगें, लेकिन मैं ये कहना चाहता हूं कि ये नावेल सबके लिए है।
ह्यूगो ने प्रकाशकों से गुजारिश करी कि इस नावेल की सस्ती कापियां निकाली जाए ताकि ये जन-जन तक पहुंचे। जब नावेल छप गई तो ह्यूगो ने अपने प्रकाशक को एक सांकेतिक तार भेजा जिसमें उन्होंने एक (?) लिखा था..जवाब में प्रकाशक ने उसी अंदाज में (!) भेजा।
अब आप समझ सकते हैं कि हालात कैसे होंगे।
नावेल की प्रसिद्धि तो हुई साथ ही इसका दूसरा पहलू ये भी था कि इस नावेल को लेकर नेशनल एसेंबली में बहस होने लगी, नावेल पर कैथोलिक चर्च ने 240 बार आक्रमण किया।
वेटिकन के कंसर्वेटिव लोग इस नावेल के सामाजिक प्रभाव को भलीभांति समझ चुके थे, फ्रांस में वर्षों तक इस नावेल पर बैन लगा दिया गया।उस समय के फ्रेंच न्यूजपेपर "the constitutional" ने अपने अखबार में लिखा - अगर इस नावेल की बातें अमल हो गई तो कोई भी सामाजिक ढांचा अस्तित्व में नहीं रहेगा।

इस नावेल का हिन्दी में प्रकाशन भी हो चुका है।
अभी कुछ दिन पहले जब इस नावेल का हिन्दी अनुवाद किताब के रूप में मेरे हाथों लगा है तो महसूस हुआ कि इसके बारे में आपको बताना चाहिए।
हिन्दी में ये किताब दो भागों में प्रकाशित हुई है।



पहला भाग जिन्होंने लिखा है वो हैं गोपीकृष्ण गोपेश जो आज इस दुनिया में नहीं हैं..उन्होंने लगभग 60% अनुवाद कर लिया था जो कि इस नावेल के पहले भाग के रूप में है।
जीवन के अंतिम दिनों में वे अपनी बेटी से, अपने परिजनों से कहते..बस दो साल और मिल जाते..लेकिन कोई उनके मर्म को समझ नहीं पाता कि वे ऐसा क्यों कह रहे हैं बाद में जब उनके कमरे की चीजों को उनकी बेटी ने देखा तो उनको इस किताब का ये अधूरा अनुवाद मिला..उन्होंने फिर इसे प्रकाशित कराया साथ ही इसके बचे हुए भाग के लिए प्रोफेसर लाल बहादुर वर्मा को कहा..उन्होंने इस शेष बचे भाग का अनुवाद किया है।
हिन्दी में इसका यह पहला संपूर्ण अनुवाद है।

विक्टर ह्यूगो की जब मृत्यु हुई तो उस समय उनकी शवयात्रा में लगभग तीस लाख लोग शरीक हुए।कहा जाता है कि उन्नीसवीं सदी में पूरे विश्व में कहीं किसी और व्यक्ति के लिए इतनी भीड़ इकट्ठी नहीं हुई।

ये एक बच्ची की पेंटिंग है। इस पेंटिंग के पीछे विक्टर ह्यूगो का एक पूरा का पूरा illustration है।जब भी इस किताब का जिक्र हुआ इस पेंटिंग का भी जिक्र होता, पेंटिंग को इस किताब के लोगो के रूप में हमेशा जगह मिलती।
और तो और ये पेंटिंग उन्नीसवीं सदी की सबसे प्रसिद्ध पेंटिंग में से एक थी और हो भी क्यों न, विक्टर ह्यूगो का दृष्टान्त जो इसमें समाया था।

No comments:

Post a Comment