Sunday, 16 June 2024

- ट्रेडर हूं -

अभी साल भर पहले पहाड़ों में एक जगह घूमने गया था। वहां यंगस्टर्स का एक ग्रुप आया हुआ था, कुछ उसमें से आईटी सेक्टर में नौकरी वाले थे, एक का अपना कोचिंग सेंटर था, लेकिन उनमें से एक इंसान हटके था, उसके हाव-भाव भी थोड़े अलग ही थे। मैंने जब उसके काम के बारे में पूछा तो उसने बताया कि ट्रेडर हूं। यह शब्द सुनते ही मुझे काॅलेज के दिनों का मकान मालिक याद आ गया, जिनके यहां हम रहते थे। वह भी ट्रेडर था, एसीसी का सीमेंट और कुछ-कुछ बिल्डिंग मटेरियल बेचता था। मैंने भी लड़के को पूछा कि कौन से सीमेंट का काम चलता है। फिर उसने कहा कि अरे भाई आपने अलग समझ लिया, मैं सीमेंट खरीदी बिक्री वाला नहीं हूं, मैं शेयर मार्केट में ट्रेडिंग करता हूं। उस दिन मुझे इस ज़मात के बारे में पता चला, इससे पहले सचमुच मुझे इस बारे में कुछ भी नहीं पता था। धीरे-धीरे और कुछ लोगों से पता चला और खुद भी थोड़ी बहुत जानकारी ली तो समझ आया कि ये एक तरह का आनलाइन जुआ हुआ, जिसमें लोग सप्ताह के पांच दिन कम्प्यूटर के सामने लगे रहते हैं। 

ट्रेडिंग के बारे में और विस्तार से जानकारी इकट्ठा करने पर यह भी पता चला कि कैसे बड़े सुनियोजित तरीके से शेयर मार्केट लोगों को जुआ खिलाती है, सरकार का भी समर्थन प्राप्त है। खुद प्रधानमंत्री गृहमंत्री और यहां तक की वित्तमंत्री भी लोगों को ट्रेडिंग करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, कि फलां कंपनी के शेयर पर आप जुआ खेलिए, सरकार आराम से बैठे-बैठे उसमें खूब टैक्स वसूलती है। कुछ विश्वसनीय कंपनियों के शेयर खरीद कर रखने में या म्युचल फंड में पैसा लगाने में कोई खास समस्या नहीं अगर आपके पास सही जानकारी हो लेकिन ये ट्रेडिंग तो सरासर जुआ है। ताश के पत्ते की तरह किससे हिस्से कब कौन सा नंबर आएगा किसे मालूम है लेकिन लोग लगे पड़े हैं। 

आनलाइन जुए के बहुत नुकसान हैं। आजकल के युवाओं में झटके से अमीर बनाने का गजब का भूत सवार है, हर दस में से एक युवा आज इस आनलाइन जुए की चपेट में आता जा रहा है। आनलाइन जुए से भयंकर तनाव आता है, चिढ़चिढ़ापन होता है, मानवीय संवेदना खत्म होती है। अपने आसपास बहुत से नौकरीपेशे सभ्रांत परिवारों के बच्चों को घर जमीन बिकवाते देख रहा हूं, कुछ एक ने तो आत्महत्या ही कर ली। क्या गजब समय चल रहा है, पूछो तो बड़े गर्व से कहते हैं - ट्रेडर हूं। और तनाव ऐसा कि 20 की उम्र में 35 के दिखने लगे हैं। 

मैंने आजतक किसी ताश या पट्टी वाले जुए में विरले ही लोगों को आत्महत्या करते देखा है, लेकिन इस वाले धंधे में तनावग्रस्त होने वाले और आत्महत्या करने वालों की संख्या कहीं अधिक है, क्योंकि इसमें आपको आभासी माध्यम से रातों रात करोड़पति बनाने के सपने दिखाए जा रहे हैं, आपको सफल बनाने की घुट्टी पिलाई जा रही है, जबकि अगर आप प्रत्यक्ष बैठकर ताश का जुआ खेलते हैं वहां आपको ऐसी घुट्टी नहीं पिलाई जाती है, आपको पता रहता है कि ये तो विशुध्द जुआ है, क्राइम है, पकड़ा गये तो पुलिस कार्यवाही करेगी। लेकिन ड्रीम 11 जैसे एप्प में और शेयर मार्केट में ट्रेडिंग को कभी जुए की संज्ञा नहीं दी जाती है, जबकि वो तो सारे जुओं का बाप है, शायद इसलिए तो उसे सरकारी संरक्षण प्राप्त नहीं है? वैसे भी ताश के जुए का पैसा भारत के आम गरीब मध्यमवर्गीय लोगों के बीच ही घूमता रहता है लेकिन इसके ठीक विपरित ये तमाम आनलाइन जुए का पैसा बड़े उद्योगपतियों के पास पहुंचता है। इसलिए अगर किसी को जल्दी अमीर बनने का चस्का लगा हो तो बेहतर है कि वह नीचे लेवल पर ताश जुआ ये सब चुपके से कर ले, न कि किसी बड़े उद्योगपति को या यूं कहें कि सीधे सरकार को फायदा पहुंचाए। 

इति‌।

Saturday, 15 June 2024

भारत को समझने के लिए लोकमानस से जुड़ी चीजों को स्वीकार करना जरूरी है -

पूरे विश्व में भारत का भूगोल सबसे अलग तरह का है। जब टेक्टानिक प्लेट अलग हुए, धरती अनेक जीवों के रहने के लिए तैयार हुई, इंसानों का उद्भव हुआ, जंगली और पशुवत तरीके से रहते हुए जब इंसान ने सभ्य होने तक की दूरी तय की, तब इंसान अनुकूलन खोजने लगा, वह ऐसी जगहों की तलाश में रहा जहां वह अच्छे से जीवन बिता सके। इसी क्रम में परिवहन के साधन तैयार हुए, लोग एक जगह से दूसरी जगह नापने लगे। सभ्यताएं विकसित हुई। लेकिन भारत इसमें एक ऐसा देश रहा जिसके हिस्से सर्वाधिक भौगोलिक विविधता आई। अपने उपमहाद्वीपीय भूगोल की बनिस्बत इस देश को सब कुछ नसीब हुआ, कुदरत की खूब नेमत बरसी। इसे एक लंबा समुद्री क्षेत्र मिला, उसमें पश्चिमी और पूर्वी घाट के जंगल पठार पहाड़ मिले। थार के विशाल गर्म मरूस्थल मिले तो वहीं लद्दाख का ठंडा मरूस्थल भी आया, उसी से जुड़ा हिमालय रूपी एक विशाल बर्फीला मस्तक मिला। हर तरह की नदियां मिली, खारे मीठे पानी की झील मिली, 3 बड़े मौसम मिले और साथ ही 3 और छोटे मौसम बोनस में मिले। कुल मिलाकर अपने शैशवस्था में अनेक सभ्यताओं के पलने बढ़ने के लिए भारत एक किसी मां के कोक की तरह था, अनेक सभ्यताएं यहां आई, पली बढ़ी। इसके ठीक विपरित आक्रमणकारी भी आए, अलग-अलग भूखंडों से आने वाले लोगों के लिए भारतभूमि किसी आश्चर्य से कम नहीं था, सबके लिए यह प्रयोगशाला रही। एक ऐसी प्रयोगशाला जहां सबने अपने स्तर पर अच्छे बुरे प्रयोग किए और साथ ही अपनी थोड़ी बहुत पहचान भी देते गये। एक लोकतांत्रिक देश के रूप में पहचान मिलने के बावजूद इस देश में 15-20 साल तक पुर्तगाली आराम से गोवा में शासन करते रहे, फ्रांसिसियों की काॅलोनी चलती रही, औरोविल नामक वैश्विक गांव भी यहीं बना, जहां दुनिया के 120 से अधिक देशों के लोग निवासरत हैं। 1964 के युध्द के बाद इसने तिब्बतियों को भारत के अलग-अलग कोनों में बसाया, दिल्ली ने तो नाइजीरिया वालों को अपना पड़ोसी ही बना गया, बांग्लादेशी तो किसी आश्रित देश के बाशिंदो की तरह आज भी भारत के हर कोने में है। यही इस देश का सोशल फैब्रिक है। तब जाकर इस देश को इतनी संस्कृतियां इतनी भाषाएं नसीब हुई। और तभी आज हम इसे विविधताओं का देश कह पाते हैं। 

भारत जैसे विविधताओं से जड़ित देश में कभी भी आप एकरैखिक होकर चीजों को नहीं देख सकते हैं, आपको मल्टी लेवल पर जाकर चीजों को देखना होता है। जैसे उदाहरण के लिए भले हम न्याय की बात करते हैं, समानता की बात करते हैं, सामाजिक न्याय की बात करते हैं, रंग जाति धर्म पंथ लिंग के आधार पर किसी प्रकार का विभेद न करने की बात करते हैं लेकिन बावजूद इसके कुछ चीजें ऐसी होती है जिसे आपको लोक में प्रचलित अवधारणाओं के अनुसार लेकर चलना होता है, वरना आपके सामने समस्या पैदा हो सकती है। 

उदाहरण के लिए जैसे अगर आप अहमदाबाद से इंदौर आ रहे हैं, तो आपको समझाइश दी जाती है कि अकेले सफर न किया जाए, खासकर रात के समय तो बिल्कुल भी नहीं, बकायदा पुलिस प्रशासन के बैरिकेट में लिखा होता है कि कानवाय में चलें। क्यों क्योंकि भील समुदाय की अपनी उग्रता के आप शिकार हो सकते हैं। ऐसा नहीं है कि पूरा समुदाय ऐसा करता है, लेकिन एक बड़ी संख्या जिसके हाथ आप लग गये, या तो आप पर तीर से हमले होंगे या फिर वे आपका हाथ पांव तोड़ेंगे, फिर आपको लूटेंगे। आप कहेंगे कि आज भी ऐसा होता है तो जी हां आज भी ऐसा होता है। 

छत्तीसगढ़ के ही एक जिले में ( इसी राज्य का हूं इसलिए अपनी सुरक्षा के लिए नाम नहीं लिख रहा हूं ) कुछ इलाकों में आज भी पुलिस जाने से कतराती है, चुनाव कराने तक से डरती है, क्योंकि डर रहता है कि कब स्थानीय लोग बर्बरता में उतर कर कुछ न कर जाएं। जानकारी के लिए बता दूं कि वह नक्सल प्रभावित क्षेत्र नहीं है और छत्तीसगढ़ में महिलाओं को जलाने वाली सर्वाधिक घटनाएं उसी इलाके में होती है। 

ठीक इसी तरह पश्चिम बंगाल-झारखण्ड बार्डर में संथाल परगना के कुछ इलाको में रात में सफर करना ठीक नहीं माना जाता है, इसमें कोई पूर्वग्रह नहीं है, यह लोक का यथार्थ है जिसकी अनदेखी आप नहीं कर सकते। अभी कुछ महीने पहले ही एक स्पेनिश कपल जो बाइक में घूम रहे थे, उस इलाके में घूमते हुए एक स्थानीय व्यक्ति ने बिना पूछे जबरन आकर उनका खाना खा लिया था, इसी से उनको थोड़ा इलाके का हिंट मिल जाना चाहिए था, लेकिन वे नहीं समझ पाए। उन्होंने भारत को स्पेन समझते हुए उसी क्षेत्र में कैंपिंग किया, अंततः उनका कैंपिंग एक बुरे हादसे में तब्दील हो गया, 7-8 लोगों ने मिलकर पहले लड़के को पीटा, लड़की का रेप किया, कुछ लूटपाट भी की। अब इसमें क्या ही कहा जाए, क्या इससे भारत देश खराब हो जाएगा, नहीं बिल्कुल नहीं। आप भारतीय हों या विदेशी आपको खुद पहले जिस जगह में आप जा रहे हैं, वहां की वस्तुस्थिति इतिहास भूगोल के बारे में पता होना चाहिए, वरना जानकारी के अभाव में आप ऐसे अनहोनी को न्यौता दे जाते हैं। 

इसके अलावा पंजाब हरियाणा के लोग शेष भारत के लोगों को थोड़े तेवर वाले लग सकते हैं, क्योंकि शताब्दियों से उन‌ इलाकों ने आक्रांताओं से दो-दो हाथ किया है। हिमाचल का व्यक्ति उत्तराखण्ड वालों की तुलना में कम विनम्र मिलेगा, क्योंकि सेब खुबानी अखरोट से आ रहे पैसे से आर्थिक समृध्दि के साथ-साथ अकड़ भी विरासत में मिल जाती है। बिहार के व्यक्ति में आपको अजीब सी जीवटता देखने को मिलेगी, क्योंकि एक बड़े तबके ने पीढ़ियों तक खूब बाढ़ की विभीषिका झेली है, तो कहीं वहां के आम आदमी का एक खचाखच भरी जीप कमांडर में ऊपर बैठकर सफर करना भी उसके लिए जीवन की लक्जरी से कम नहीं। ऐसे न जाने‌ कितने उदाहरणों की एक लंबी फेहरिस्त है।

इस तरह भारतभूमि को इसके लोक में रचे बसे यथार्थ के आधार पर देखना जरूरी है, वरना बहुत सी चीजें आपके सामने घटित हो जाएंगी और आपको कभी समझ ही नहीं आएगा कि वास्तव में आखिर ऐसा क्यों हुआ?



Saturday, 8 June 2024

कंगना को कूट दिया -

2020 में किसान आंदोलन के समय कंगना राणावत ने आंदोलनरत किसानों को लेकर तमाम तरह की घटिया टिप्पणी की थी। तब लोगों ने उसका खूब विरोध किया था। एक व्यक्ति ने तो अपनी कार के बोनट में कंगना का एक पुतला लगा लिया था, जहां भी आंदोलन स्थल में गाड़ी रूकती, लोग उस पर जूते चप्पल बरसाते थे। अब इसी से विरोध का स्तर समझिए। 

किसान आंदोलन के दौरान 700 से अधिक किसान शहीद हुए। मुंह उठाकर सबको खलिस्तानी आतंकवादी कहा गया, कंगना उनमें से एक थी, जिसकी ज़बान छुरी की तरह चली थी। 2020 से 2024 के दौरान इस पूरे चार साल में पंजाब हरियाणा में छोटे बड़े बहुत से चुनाव हुए, उसके प्रचार के लिए भाजपा नेता गांवों की ओर गये, न जाने कितने नेताओं को विरोध स्वरुप घेर कर‌ मारा गया। गांव के गांव बहिष्कार कर रहे थे, घुसने तक नहीं दिया गया। 

इसी क्रम में आज कंगना राणावत को चंडीगढ़ एयरपोर्ट में सीआईएसएफ की महिला जवान कुलविंदर कौर ने थप्पड़ जड़े। कुलविंदर ने कहा - " किसान आंदोलन में कंगना राणावत ने धरने पर बैठने वाली महिलाओं को यह बोला था कि 100-100 रुपए के लिए धरने पर बैठती हैं, तब मेरी मां भी वहां बैठी थी।" कुलविंदर का गुस्सा जायज था। भला वह यह सब जैसे सहती, कूट दिया। बताता चलूं कि कुलविंदर उस मिट्टी से है, जिन्होंने सदियों तक सीमावर्ती लूटेरों आततियों से मुल्क की रक्षा की, देश की सीमाओं में आज भी ये अपने अद्भुत शौर्य पराक्रम और समर्पण के लिए जाने जाते हैं। कुलविंदर उस उधम सिंह की मिट्टी से है जिस महान क्रांतिकारी ने जलियांवाला बाग हत्याकांड के अपराधी जनरल डायर को सजा देने की तड़प को 21 साल तक अपने भीतर जिंदा रखा और लन्दन में जाकर गोली मारी। कुलविंदर के भीतर भी वही खून बहता है। 

भगत सिंह की इस मिट्टी ने कभी अन्याय को अपने ऊपर हावी होने नहीं दिया। अगर किसी ने गलत किया या गलत कहा, तो उसे अपने भीतर दहकती आग की तरह जिंदा रखा और एक दिन सही मौका देखकर सूद समेत वापस कर दिया। कुलविंदर के भीतर भी वही खून है वही आग है, जिस खून ने कभी सीने में गोली खाने से परहेज नहीं किया, भला वह नौकरी और सस्पेंड होने से क्या डरती। इसलिए बिना परवाह किए सीधे कूट दिया और यह भी साबित कर दिया कि इस मुल्क में किसी की मनमानी नहीं चलेगी, कुछ भी उल्टा सीधा बोल के आप बच नहीं सकते हैं, आपका बराबर हिसाब किया जाएगा। 

जियो कुलविंदर, तुम पर गर्व है। 🙌

#kulwindarkaur

Friday, 7 June 2024

नवीन पटनायक और उड़ीसा -

आज से 20-25 साल पहले जब भी उड़ीसा का नाम जहन में आता था तो हर कोई उसे एक पिछड़े गरीब राज्य की संज्ञा देता था। बचपन में पापा की नौकरी उड़ीसा बार्डर में ही थी, 1990-95 की बात होगी, वे बताते हैं कि उन सीमावर्ती ग्रामीण इलाकों में इतनी गरीबी थी कि लोग घर के आंगन में धोने के लिए रखे गये जूठे बर्तन इसलिए भी चुराकर ले जाते थे कि उनमें थोड़ा बहुत जूठा अन्न खाने के लिए चिपका हुआ रहता था। और तो और छोटे बच्चे घर में नमक तक मांगने आते थे ताकि नमक चाटकर भूख शांत कर सकें। सन् 2001 के आसपास की ही एक घटना याद आ रही है, मेरे एक रिश्तेदार अपनी स्पलेंडर बाइक में अपनी बेटी के यहां उड़ीसा जा रहे थे, रास्ते में कहीं निवृत होने के लिए कुछ मिनट के लिए रूके होंगे, उतने में किसी ने पीछे से सिर में डंडे से वार किया और गाड़ी चोरी करके ले गये। गाड़ी के अलावा उनका चश्मा, घड़ी, चप्पल और पेंट कमीज तक ले गये थे। इसी से अंदाजा लगा लिया जाए कि किस हद तक गरीबी थी। मुख्यधारा के समाज से दूर जंगल वाले इलाकों में होने वाली ऐसी कुछ छुट-पुट घटनाओं की वजह से राज्य की छवि एक गरीब राज्य के रूप में सबके सामने थी। लेकिन जब से नवीन पटनायक ने बतौर मुख्यमंत्री काम करने शुरू किए, इस पूरी छवि का एक तरह से कायापलट ही कर दिया। सब तरफ शानदार सड़कें बनवाई, इंफ्रास्ट्रकचर डेवलप किया, राज्य को गरीबी वाली छवि से मुक्त किया, लोगों को शांत किया। 

उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर है। देश का एकलौता ऐसा शहर है जिसके पास ग्रीन कैपिटल का तमगा है, आपको भुवनेश्वर जाते ही यह महसूस हो जाएगा। ट्रैफिक मैनेजमेंट भी बहुत शानदार है। व्यवस्थित बसाहट है। साल भर रहते हुए मैंने खुद इन चीजों को महसूस किया है। मैंने इस शहर को चौक चौराहों में, दुकानों में, ठेलों रेहड़ियों में, फल सब्जी के बाजार में, नुक्कड़ चौपाटी में, लोगों की अभिव्यक्ति में हर जगह महसूस किया है, लोगों के पास जो भी कम अधिक है, उसे लेकर उनके भीतर तनाव नहीं है, खुमारी में रहते हैं, खुश रहते हैं। और यही एक राजनेता की सबसे बड़ी सफलता है कि उसने लोगों के लिए ऐसी व्यवस्था बनाई, जिसमें वे तनावमुक्त होकर जीवन जी रहे हैं। भारत में उड़ीसा के अलावा सिक्किम में मैंने लोगों को इतना शांत पाया है। इन राज्यों में आप जाएंगे, और अगर आपमें दृष्टि है तो लोक-व्यवहार में अलग से ही फर्क महसूस होता है। सिक्किम में भी पवन कुमार चामलिंग रहे, जो भारतीय राजनीति के एकलौते ऐसे नेता हैं जिन्होंने लगातार 25 वर्षों तक शासन किया, दूसरे नंबर पर नवीन‌ पटनायक हैं जो 24 साल तक सत्ता में रहे। भारतीय राजनीति में बहुत कम ही नेता हुए हैं, जो ऐसा कर पाए हैं। लोगों की भावनाओं को ट्रिगर किए बिना राजनीति में बने रहना आज के समय में तो अब निरा स्वप्न जैसा हो गया है। पवन कुमार चामलिंग और नवीन पटनायक जैसे नेता इस मामले में अपवाद ही रहेंगे। 

साइक्लोन फनी के समय मैंने खुद राजधानी भुवनेश्वर का हाल देखा है, दो तिहाई पेड़ तहस-नहस हो गये थे, इतनी खराब स्थिति थी कि 10 दिन तक राजधानी में बिजली व्यवस्था ठप थी। इस बीच आपदा प्रबंधन की पूरी टीम युद्ध स्तर पर लगी हुई थी। 1 महीने बाद जब मैं वापस भुवनेश्वर लौटा तो मैंने स्टेशन से बाहर निकलते ही कैब में गुजरते हुए जब इस शहर को देखा तो मैं अवाक रह गया। कहीं से भी ऐसा नहीं लग रहा था कि यहां महीने भर पहले इतना भयावह साइक्लोन आया था। ये नवीन बाबू के तैयार किए आपदा प्रबंधन टीम का कमाल था। बताता चलूं कि उड़ीसा की आपदा प्रबंधन टीम इतनी पारंगत है कि जब कहीं भी देश में कोई आपात स्थिति आती है तो यहां की टीम से सलाह मश्विरा किया जाता है, क्योंकि उड़ीसा हर साल दो साल में साइक्लोन झेलता है, तो वह इससे निबटना जानता है।

नवीन पटनायक जिसे पूरा राज्य प्यार से नवीन बाबू के नाम से पुकारता है, उन्हें उड़िया भाषा तक नहीं आती है, इसके बावजूद एक उड़ियाभाषी राज्य को उन्होंने 24 साल तक संभाला, यह मामूली बात नहीं है। भारतीय राजनीति के इतिहास में यह अपने आप में एक उपलब्धि ही कही जाएगी। नवीन बाबू के सीएम रहते हुए कंधमाल में एक बड़ी नस्लीय हिंसा की घटना हुई थी, मीडिया में खूब बवाल मचा था, लेकिन इन्होंने उस घटना को जिस तरह से संभाला वह अपने आप में एक नजीर थी। 

स्वास्थ्य के क्षेत्र में जो एक बेहतरीन काम हुआ वह है - बिजू कार्ड। यह कार्ड आम लोगों के लिए संजीवनी की तरह काम कर रहा है। आयुष्मान कार्ड की तरह ही इसमें हास्पिटल में इलाज संबंधी छूट मिलती है, लेकिन जहां आयुष्मान कार्ड में नियम कानून बंदिशें हैं, वहां इस कार्ड के साथ ऐसा नहीं है, आयुष्मान कार्ड में मोटा मोटा सिर्फ बेडचार्ज से आपको राहत मिलती है, लेकिन इसमें ऐसी कोई बंदिश नहीं है, बिजू कार्ड के साथ आप बड़ी से बड़ी सर्जरी या कोई भी गंभीर बीमारी हो या कोई ट्रांस्प्लांट हो, इस कार्ड के माध्यम से आप निःशुल्क करा सकते हैं। आम गरीब लोगों के लिए यह तो वरदान की ही तरह है। यूं समझिए कि एम्स जो सुविधाएं देता है, उससे कहीं अधिक सुविधा तो स्थानीय लोगों को बिजू कार्ड के माध्यम‌ से ही मिल जाती है।

जब देश की हॉकी टीम को कोई राज्य गोद लेकर ट्रेनिंग देने के लिए तैयार नहीं था, तब नवीन बाबू ने उन्हें गोद दिया, उड़ीसा ने उन्हें तैयार किया। उड़ीसा के ही कलिंग स्टेडियम में प्रैक्टिस करते हुए उन्होंने 19वें एशियाई खेलों में ऐतिहासिक स्वर्ण पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया था। यह कोई मामूली बात नहीं थी। इसके अलावा 2020 ओलंपिक में भालाफेंक में स्वर्ण पदक लाकर देश का नाम रोशन करने वाले नीरज चोपड़ा की नींव तैयार करने में भी इस स्टेडियम की महती भूमिका रही है। 

नवीन पटनायक से आज के नेताओं को यह सीखने की जरूरत है कि राजनीति कैसे की जाती है और मीडिया मैनेजमेंट कैसे किया जाता है। नवीन बाबू बहुत कम बोलते हैं, इतना कम कि मीडिया के पसीने छूट जाते हैं कि आखिर इनसे क्या ही पूछा जाए। चाहे राष्ट्रीय मीडिया हो या क्षेत्रीय मीडिया, इतने संक्षेप में जवाब देते हैं कि कोई उलूल-जुलूल सवाल कर ही नहीं पाता है। विपक्ष के नेता भी उनके बारे में कभी कोई खराब टिप्पणी नहीं कर पाते हैं, क्योंकि उन्होंने राजनीति का‌ अपना एक‌ मानक स्तर बनाकर रखा है, वे किसी को उस स्तर से नीचे गिरने नहीं देते हैं। उनका अपना शांतचित्त व्यक्तित्व, उनका कम शब्दों में ही गंभीर बात कह जाना, और ब्यूरोक्रेसी को स्पेस देते हुए उनसे बेहतर काम लेना, यही उनका पीआर था, यही उनकी पहचान थी। 

नवीन बाबू के व्यक्तित्व के बारे में लोगों को बहुत कुछ पता नहीं है, वही पुराने नेताओं की तरह हमेशा सादा सफेद कुर्ता पजामा पहनते हैं। वे कभी लाइमलाइट में नहीं रहते हैं, मीडिया से जितना जरूरी होता है, उतनी ही बात रखते हैं, और यही एक सुलझे हुए राजनीतिज्ञ की पहचान है। उनके इस इस्पात रूपी व्यक्तित्व की सबसे बड़ी ताकत जो मुझे लगता है वो यह है कि वे अपने दैनिक दिनचर्या को लेकर बहुत सजग रहे हैं, समय पर सात्विक भोजन और समय पर नींद उनके व्यक्तित्व का हिस्सा रहा है। नवीन बाबू के बारे में जानने के लिए उनकी लिखी गई किताबों के बारे में जानना जरूरी है। खासकर "The Garden of Life" किताब जो healing plants को लेकर उन्होंने लिखा है, इसे पढ़ा जाना चाहिए, उनके व्यक्तित्व के ठहराव की समझ विकसित करने के लिए यह किताब जरूरी है। 

इस बार नवीन बाबू की पार्टी हार गई है। लोग उदास हैं, किसी नेता के हारने के बावजूद उस व्यक्ति को कहीं इस देश में ऐसा इमोशनल सपोर्ट मिलते मैंने तो नहीं देखा है। जब वे सत्ता में भी थे तब विरोधी खेमे को भी कभी सोशल मीडिया में या कहीं और किसी प्रकार की अव्यवस्था को लेकर घटिया भाषा बोलते या अपशब्द कहते नहीं देखा है, जैसा बाकी राज्यों में दिखता है। उनके हारने के बाद आज लोग भावुक हो रहे हैं जिनमें विपक्ष के लोग भी हैं, और यह कोरी भावुकता नहीं है, भाषा से, भाव-भंगिमा से अलग से समझ आ रहा है कि वास्तव में यह राज्य के लिए एक बेहतरीन अभिभावक की तरह था, जिसकी कमी आने वाले समय में लोगों को खलेगी। 

You made odisha proud Naveen babu...blessings with you.