एक परिचित हैं। उम्र में मेरे ठीक दुगुने हैं। गजब मेहनती, तंदुरूस्त, भोजन और स्वास्थ्य के प्रति गजब की सजगता। लेकिन शायद मेरे अलावा दुनिया का हर दूसरा आदमी इन्हें जमकर गरियाता है। अगले का स्वभाव ही ऐसा है। कुछ समय तक मैं भी इन्हें गरियाने वालों में से एक था लेकिन अब मैं ऐसा बिलकुल नहीं करता हूं। और ये हमेशा पता नहीं क्यों खासकर मेरे से अच्छे से सहज होकर पेश आते हैं, मैं भी उनका बराबर सम्मान करता हूं।
अब गरियाने की वजह पर आते हैं। एक शब्द होता है "काइयां"। तो आजतक आपने जितने भी काइयां अपने अभी तक के जीवन में देखे होंगे, ये उनके भीष्म पितामह हैं। छोटे-छोटे ठेले वालों को इतना तंग कर देते हैं कि अगला विवश होकर इन्हें छूट दे देता है, जबकि इनकी मासिक पेंशन उस ठेले वाले की कुल वार्षिक आय से अधिक होगी। लेकिन इनसे कौन जीते। अभी हाल ही में शहर में एक जगह दृष्टिबाधित लोगों का शिविर लगा, उन सभी के लिए भंडारा लगा था, इनको पता चल गया, ये उसमें भी भोजन करने चले गये और यह जानकारी उन्होंने खुद मुझे दी कि फलां जगह भोजन करके आया हूं, स्वादिष्ट खाना था। अब यह सुनकर मैं मुस्कुरा ही सकता था।
हममें से लगभग हर कोई सब्जियां लेने बाजार जाता है। ये महाशय हमेशा शाम को ठीक दिन ढलने के वक्त जाते हैं, कारण आप समझ गये होंगे, उस दौरान हर कोई बाजार समेट रहे होते हैं तो बची खुची सब्जियां मुंह मांगी कीमत पर बहुत सस्ते में मिल जाती है। जब से मुझे यह तथ्य पता चला, मैं इस तथ्य की गहराई पर गया तब मैंने सोचा कि इन जैसे लोगों का भी समाज में होना बेहद जरूरी है, ये अगर नहीं होंगे तो उन सब्जियों का उपयोग आखिर कौन करेगा। उस दिन से मैंने उन्हें गरियाना छोड़ दिया और उनका प्रशंसक बन गया। सनद रहे, एक काइयां कभी भोग नहीं करता, और इसलिए एक काइयां व्यक्ति जब दुनिया छोड़ कर जाता है तो सबसे अधिक पूंजी दूसरों के लिए पीछे छोड़ जाने वाला वही होता है।
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