Friday, 21 January 2022

जब गिरता है एक बड़ा पेड़ -

जब गिरता है एक बड़ा पेड़,
आस पड़ोस के छोटे-मोटे पेड़,
करते हैं रूदन,
मनाते हैं शोक,
बहाते हैं आँसू।
जब गिरता है बड़ा पेड़,
लगती है भीड़,
सांत्वना देने वालों की,
श्रध्दांजलि देने वालों की।
जब गिरता है बड़ा पेड़,
तब गुण गाए जाते हैं,
पेड़ के उत्कर्ष की,
उसके वैभव की,
उसकी विपुलता की।
जब गिरता है एक बड़ा पेड़,
तो इसके साथ पैदा होता है एक संकट,
संकट पेड़ की शाखाएँ काट लेने की,
उन शाखाओं की खूशबू से इत्र बना,
उसकी हिस्सेदारी सूंघ लेने की।

मेरे शहर आने से - सुरेंद्र प्रबुध्द

मेरे शहर आने से
इसके तमाम मंदिरों की घण्टियों को
एक साथ बजकर घाटियों में गूंज
पैदा कर देना चाहिए था
आकाशी धुएं के बीच पतंगबाजी के शौकीनों को
थोड़ा सा सहज होकर
खिलखिलाकर गाकर दिखाना चाहिए था
मैं शहर को सम्भावना मानने वालों के पास
बड़ी हसरतें लिए आया था
वैसे मुझे अपने बारे में कोई ग़लतफ़हमी नहीं थी
गाँव छोड़ते वक्त
पनघट में एक गाय मिली थी
काठ की घण्टियाँ बजाते हुए
उसे मैं आमंत्रण देने की स्थिति में पहुंच गया हूँ
कि अब वह भू माफ़ियाओं के द्वारा गोचर पर कब्ज़ा कर लेने और जंगल के उजड़ जाने के कारण
यहीं शहर चरने चली  आ जाए
लॉन में कैदी घाँस और बगीचे में बंद हरियाली पर सतृष्ण नजर गड़ाए
फुटपाथ पर पड़े
कुछ मुड़े-तुड़े अखबार खा लिया करे
जिसमे काले अक्षरों में
क्रिकेट, फ़िल्म ,कविता
स्वतंत्रता,समता, समाजवाद
जैसे भारी भरकम शब्द
जरूर छपे होंगे
उनसे पेट भरे तो रंभाए
न भरे तो बम्भाए
और किसी उफनती रैली में दम तोड़ दें
ताकि शहर के गौसेवक
उसके स्वर्गारोहण का शानदार समारोह
आयोजित करने हेतु उत्साह से जुट जाएं
मेरे 
रहने,न रहने
होने न होने
आने न आने
जाने न जाने का
कहाँ मतलब रह जाएगा ----
वैसे मेरे आने से
स्कूल के तमाम बच्चों  की
किलकारियों को
एक साथ दीवार फांद कर
जय घोष पैदा कर देना चाहिए था
शायद ऐसा हो भी सकता था
लेकिन यह बदहवास ,बेहया और बांझ शहर
अपनी रौ में खालिस बकबक, भकभक कर रहा था
मेरा आना मेरे लौटने की शुरुआत बन रहा था----

Thursday, 20 January 2022

Highway to the stars - 13

And they met again in a cafe, she was along with her friends, by the time when they are leaving the place, she was like i am coming with my friend and then rainfall started. they stopped due to the rainfall. boy came back and said ok i am leaving bye..she said - don't say bye, we will meet again.

20 Jan 2022

Tuesday, 18 January 2022

Highway to the stars - 12

Talked with her twice, she was trying to flirt with the boy.

19 Jan 2022

स्कूली बच्चों के साथ प्रयोग -

अलग-अलग क्लास में जाकर बच्चों को एक चीट बनाने को कहें, उसमें क्लास के हर बच्चे को किसी भी एक बच्चे का नाम लिखने को कहें और चीट को गुप्त रखते हुए उसे वापस आपके पास आकर जमा करें, यह नाम किसी का भी हो सकता है। बड़ी क्लास से परहेज करें, छोटे क्लास में इस प्रयोग को आजमाएँ। आप सारे चीट को अपने पास रखें और इस बारे में बच्चों को कोई जानकारी न दें। आप जब सभी चीट को खोलकर देखेंगे तो पाएंगे कि कुछ बच्चे ऐसे होंगे जिनका नाम किसी ने नहीं लिखा होगा, आपको ऐसे सभी बच्चों की लिस्ट बनाकर उन्हें विशेष ध्यान देना है।

Dream, 17 Jan 2022

Highway to the stars - 11

Changed her Picture

18 Jan 2022

Sunday, 16 January 2022

उसके भीतर हिमालय बसता है -

हिमालय सी मजबूती है उसमें,
चट्टान सा दृढ़ ह्रदय लेकर चलती है,
जैसी क्षणभंगुरता और भोलापन,
जैसी शीतलता और एकाकीपन हिमालय के पास है, 
वैसा सब उसके पास भी है, 
जैसी सह्रदयता हिमालय में है,
वैसी उसमें भी है,
कठोरता और कोमलता का अद्भुत सम्मिश्रण है वो।
जब टूटती है उसकी चोटियाँ,
जब आता है शीतल हवाओं का प्रकोप,
जब गिरती है मजबूत चट्टानें,
फिर भी वह अडिग खड़ी रहती है,
फिर से एक लंबी साँस लेकर,
अपनी जड़ों को मजबूत करती जाती है।
जब तक जीवन का अस्तित्व है, तब तक,
निराशा रूपी बादल छंटनी करती रहेगी तब तक,
सामने दुःखों का पहाड़ भी क्यों न आ जाए,
वह खिलती रहेगी अनंत काल तक।।

Highway to the stars - 10

Had a conversation over phone during the dream. smiled and laughed.

16 Jan 2022

Friday, 7 January 2022

Contradictions -

एक लड़का रहा, वह जब भी ट्रेन से सफर कर घर से आता, स्टेशन से हमेशा कुछ किताबें खरीद लाता, वह कितना पढ़ता नहीं पढ़ता मुझे पता नहीं लेकिन साथ रहने वाले उस लड़के की वजह से मुझ खुरापात इंसान को विवेकानंद, चाणक्य और कुछ कुछ लोगों की किताबें पढ़ना नसीब हुआ, बाद में वही लड़का अपने दूर की मासी की बेटी से अफेयर के चक्कर में पुलिस केस तक झेला।

एक और लड़का रहा, उसके जिस्म में लगे टैटू से लेकर कमरे की दीवारों तक हर जगह भगत सिंह छाए हुए थे, भगत सिंह की किताबों और उनके विचारों की भले उसे उथली जानकारी थी लेकिन भगत सिंह का फैन था बंदा। चूंकि मैं कभी एक जगह लंबे समय तक नहीं रहा तो जगह बदलने के पहले किताबें बाँट दिया करता, इसे भगत सिंह वाली किताबें दे दी। एक‌ दिन‌ मुझे यह लड़का दारू पीकर एक महिला से बदतमीजी करते हुए मिला, मैं सुलह न करवाता तो शायद पुलिस केस तक की नौबत आ जाती।

एक महिला मित्र रही, खूब सामाजिक सोच की अपने को दिखाती रही, अमृता प्रीतम मानो उनके रग रग में बसती हों। मेरी सामाजिकता को हथियार बनाते हुए बड़े शौक से गंभीर चर्चाएं करती, मुझे हमेशा से शक रहा कि असली छवि यह नहीं है, एक दिन महिला ने मुझे बताया कि एक लड़की प्रेगनेंट है, उम्र 17 है, लड़का धोखा दे रहा है, उसे लड़के से बदला लेना है, कानूनी सलाह चाहिए, ऐसी कुछ अतिभावुक कर देने वाली कहानियाँ परोसती रहीं। इन सब कहानियों को सुनाने के पीछे जो मकसद छुपा था, वह जब पता चला, मुझे संपर्क खत्म करना पड़ा, मुझे पता नहीं था कि लोग इस हद तक हिंसा और दोगलेपन को जी सकते हैं। 

एक और महिला मित्र रहीं, पढ़ाई में बहुत तेज। एक प्लेटफार्म में लघु कहानियाँ लिखते रहे, वहीं बातें हुई‌। महिला मित्र ने अपने आप को दुनिया की सबसे दुखियारी महिला की तरह पहले दिन‌ से प्रोजेक्ट किया, चूंकि अलग-अलग राज्य के रहे, तो मैंने पलटकर कभी कुछ नहीं पूछा, महिला‌ मित्र को कुछ समय के लिए कुछ किताबें चाहिए होंगी, बहुत जरूरी किताबें थी इतनी जरूरी थी कि मुझे वो किताबें वापस चाहिए थी, कौन सी किताबें थी, यह बताना जरूरी नहीं समझ रहा हूं। तो हुआ यूं कि समय गुजरने के बाद मैंने महिला मित्र को कहा कि किताबें मुझे चाहिए थी, हो सके तो लौटा दीजिए। महिला मित्र ने महीने भर तक गोल गोल घुमाया, परिवार के सदस्य की गंभीर बीमारी की बात कही। मैंने जब अपने स्तर पर पता किया तो बीमारी अस्पताल वाली बात झूठ निकली, मेरे पैरों तले मानो जमीन खिसक चुकी थी। 

एक और मित्र रहे। मित्र बहुत ही बढ़िया मस्तमौला इंसान। साथ में हमने पढ़ाई की। मित्र की सारी चीजें बहुत बढ़िया रही। लेकिन उनके साथ बस एक ही दिक्कत रही कि वे लंगोट के कच्चे रहे, हर दूसरे दिन उनका नाड़ा ढीला। बनना उनको लाट साहब था, बातें भी बड़ी-बड़ी लेकिन दिन रात लड़कियों का जिक्र। साल भर अलग-अलग प्रेम संबंधों में ही लिप्त रहते, मुझे भी दिन रात लव गुरू की तरह यही सब के बारे में प्रवचन दिया जाता, लेकिन मेरी आदत रही कि मैंने कभी ऐसे लोगों को गंभीरता से नहीं लिया इसलिए अप्रभावित ही रहा। बंदे में हिंसा नहीं थी, मेरे प्रति कभी खराब व्यवहार नहीं रहा इसलिए मित्रवत रिश्ते बने रहे,‌ फिर एक दिन मित्र ने मेरे ही आसपास के महिला मित्रों को निशाने पर लेना शुरू कर दिया, उनसे जबरदस्ती संपर्क करना बातें करना शुरू किया, जब मेरी जानकारी में यह बात आई तो मैंने मित्र को बिना बताए हमेशा के लिए दूरी बना ली, मैं आजीवन उनको वजह नहीं बताऊंगा कि मैं उनसे क्यों दूर हुआ हूं। वे सही गलत का आँकलन स्वयं कर लें।

एक करीबी महिला‌ मित्र रहीं। हमारी अच्छी दोस्ती थी, अब नहीं है। मैं जब भी उसके घर जाता, पानी के गिलास में पानी पीने से लेकर सोफे में बैठने तक हर जगह मैंने जातिगत शुचिता का भाव उनके घरवालों में देखा जिसे मैंने हमेशा नजर अंदाज ही किया क्योंकि मैंने पहले भी ऐसा कई घरों में देखा हुआ है। एक दिन महिला मित्र की सरकारी नौकरी लगती है, उनका इंटरव्यू रहता है, मुझे फोन आता है कि स्टेशन लेने आ जाऊं और वहीं से आफिस तक छोड़ जाऊं वरना इंटरव्यू मिस हो जाएगा और नौकरी से हाथ धोना पड़ सकता है, अब चूंकि घर के अन्य पुरूष सदस्य सुबह उठ नहीं पाएंगे और आफिस तक नहीं ले जा पाएंगे‌ इसलिए मुझे कहा गया। मैंने उस वक्त यह नहीं सोचा कि इतना गंभीर मसला है, और घरवाले सुबह नहीं आ सकते। खैर, वह समय ऐसा था कि मैं अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा था, मानसिक स्थिति ऐसी थी नहीं कि इतना कैलकुलेशन करता, फिर भी मैंने कभी अपने ऐसे समय में भी किसी को मदद के लिए ना नहीं किया। स्टेशन जाने पर मित्र ने कहा कि घर छोड़ दूं, घरवाले ही आफिस छोड़ देंगे। जिसे मुझे दुनिया की सबसे बड़ी इमरजेंसी कहकर एक दिन रात से तंग करने की हद तक फोन किया गया, वह इतनी सामान्य बात थी कि मुझे वह सारा कुछ भीतर तक कचोट गया। महिला मित्र चाहती तो सच कह देती कि सुबह आकर घर छोड़ देना लेकिन इतना प्रपंच क्यों रचा गया, यह समझ नहीं आया। मैंने कभी पलटकर पूछने की जरूरत नहीं समझी क्योंकि बाद में मुझे सब समझ में आ गया था। असल में कई बार बहुत छोटी-छोटी घटनाएँ ही काफी होती हैं। और फिर मैंने खुद से एक दिन यह सवाल पूछा कि क्या अमुक व्यक्ति को मैं अपने सुख में या दुःख में याद करता हूं, जवाब नहीं में आया और फिर मैंने हमेशा के लिए उनसे दूरी बना ली।

To be continued....

Tuesday, 4 January 2022

Say it loud ?

जर्नलिज्म की पढ़ाई के दौरान एक प्रोफेसर ने क्लास में एक दिन किसी को कहा कि धीरे बोलने से काम नहीं चलेगा, ऊंची आवाज में बोलना सीखिए, पता नहीं क्यों लाउड बोलने को उनके द्वारा जस्टिफाई करना सही नहीं लगा। साफ-साफ हिंसा का तत्व दिखा था। उस बात से आज भी घुटन होती है, जब-जब टीवी चैनलों में लोगों को ऊंची आवाज में बात करते देखता हूं तो उनकी बात याद आ जाती है, बात सिर्फ टीवी की नहीं है, टीवी में किसी दूसरी दुनिया के लोग तो आते नहीं हैं, सुबह से शाम रोज की दिनचर्या में आए दिन हमारे आसपास लोग इसी तरीके से तो पेश आते हैं, जैसे लोग वैसा समाज वैसा ही टेलीविजन। चहुंओर यही तो है‌। अपनी बात कहूं तो तुरंत केमिकल रिएक्शन होने लगता है कि सही नहीं हो रहा है, तुरंत किनारे हो लेता हूं, पता नहीं लोग इन सब चीजों को लेकर इतना सहज कैसे हो जाते हैं। काॅलेज में भी उस दौरान वैसी ही सहजता सब तरफ फैली हुई थी, उस सहजता ने इस हद तक असहज किया कि अगले दो सेमेस्टर 0.00% की रिकाॅर्ड उपस्थिति रही क्योंकि राज्य ही छोड़ दिया था।