Thursday, 22 April 2021

Let's talk about Hemkunt Foundation -

भारत के अधिकतर बड़े-बड़े एनजीओ लोगों को जमकर मूर्ख बनाते हैं, अधिकांश एनजीओ का चरित्र ऐसा ही है, अपवादों में अपवाद कोई होगा उनकी बात अगर छोड़ दी जाए तो सब ऐसे ही हैं। आप देखिएगा कि भारत में अधिकतर बड़े एनजीओ बड़े बड़े मेट्रो सिटी से ही निकलकर आते हैं जिन शहरों का खुद का हवा पानी और बाकी चीजों का‌ मामला सबसे खराब होता है। असल में एनजीओ का सिस्टम हमारे यहाँ बहुत जटिल है। अधिकतर बड़े एनजीओ की नींव अतिभावुकता में टिकी होती है, आपको सही गलत समझने में ही अरसा लग जाएगा लेकिन समझ नहीं आएगा कि भीतर चल क्या रहा है। एनजीओ का सिस्टम ही ऐसा रहता है, हो भी क्यों न क्योंकि वे अपने रिसोर्स का एक बड़ा हिस्सा छवि बनाने में ही लगाते हैं, तमाम तरह के खड़यंत्र अपनाते हैं ताकि एक मजबूत छवि बन सके। क्योंकि उन्हें भारतीयों की मानसिकता का पता होता है कि एक बार सेलिब्रिटी वाली छवि बन गई, एक बार उस छवि के कारण विश्वास बन गया, तो फिर लोग दिल खोलकर दान देते हैं।

अब मूल बात पर आते हैं कि बड़े बड़े एनजीओ जो आम लोगों से इतना चंदा इकट्ठा करते हैं, इसका आखिर करते क्या हैं। दानदाता जो थोड़ा बहुत यह सोचता है कि चलिए एनजीओ अपना खर्चा भी हमारे चंदे से निकालता होगा लेकिन लोगों के लिए थोड़ा ही सही कुछ तो करता ही होगा, लोगों तक थोड़ी तो मदद पहुंचती होगी, लेकिन ऐसा नहीं है। लोगों के लिए जो काम भी होता है उसमें भी पीआर वाली चीज गहरे से जुड़ी होती है, सीधे तौर पर समझा जाए तो लोगों की मदद करने का दिखावा करना और उसको फोटो वीडियो के माध्यम से डाक्यूमेंट करना ही असली पीआर होता है। भले लोगों को सुनकर यकीन नहीं होगा लेकिन हकीकत यह है कि लोगों तक कुछ भी नहीं पहुंचता है, कुछ भी नहीं, एक चवन्नी भी नहीं, जो पहुंचता भी है वह वस्तु के नाम पर पीआर मटेरियल ही होता है। 

अब हेमकुंट फाउंडेशन पर आते हैं। ये भी एक एनजीओ है, लेकिन अपवादों में अपवाद है, हो भी क्यों न, गुरूनानक की सेवा वाली संस्कृति पर जो टिका हुआ है। जैसा कि मैंने ऊपर लिखा है कि एनजीओ का नेक्सस इतना जटिल होता है आम लोगों को समझ ही नहीं आता है कि उन्हें मूर्ख बनाया गया ऐसे में लोगों के मन में सवाल आ सकता है कि इस एनजीओ के साथ अलग क्या है। अलग यह है कि सेवा का सच्चे अर्थों में पालन होता है, ढोंग नहीं होता है, जबरन मीठी बातें करने वाली चीजें नहीं होती है, अतिभावुकता नहीं होती है, फोटो वीडियो और डाक्यूमेंटगिरी ही करके छवि चमकाने वाली चीज नहीं होती है, मीडियाबाजी नहीं होती है, उससे कहीं अधिक ध्यान लोगों की सेवा करना होता है, इनका काम ही इनकी पहचान होती है। एक भीतर से महसूस करने वाली चीज भी होती है कि कौन वास्तव में लोगों के लिए काम कर रहा है।

हेमकुंट फाउंडेशन आज दिल्ली, मुंबई इन दो शहरों में लोगों को आक्सीजन की सेवा कर रहा है, बाकी और शहरों की अभी मुझे जानकारी नहीं है, जिन्हें सेवा का अर्थ नहीं पता उन्हें बताता चलूं कि सेवा का अर्थ होता है मुफ्त। लोगों को मुफ्त में आक्सीजन सिलेंडर दिया जा रहा है। ऐसे समय में जहाँ लोगों को बेड नहीं मिल रहा है, आक्सीजन सिलेंडर के लिए हाहाकार मचा हुआ है, सरकार भी जब भारत के आम लोगों के लिए 150, 400, 600 रूपए के अलग-अलग पैकेज में वैक्सीन देने की बात कह रही है, ऐसे में हेमकुंट क्या कर रहा है, मुफ्त में आक्सीजन सिलेंडर वितरण कर रहा है और लोगों की जान बचा रहा है।

आज इस संस्था का जिक्र इसलिए भी कर रहा हूं क्योंकि ये वही संस्था है जिसे कुछ महीने पहले मीडिया किसानों को पानी पिलाने, खाना खिलाने की वजह से आतंकवादी संस्था कह रही थी, खूब दुष्प्रचार किया गया था। और आज यही आतंकवादी संस्था लोगों की जान बचाने का काम कर रही है। लेकिन आप देखेंगे कि वो मीडिया चैनल आज इतनी ईमानदारी भी नहीं रख रही कि अपने पुराने आतंकवादियों को फिर से याद कर सके ताकि लोगों तक मदद पहुंचे, क्यों क्योंकि एक तरफ तो ये आक्सीजन बांटकर लोगों की जान बचा ही रहे हैं और वहीं दूसरी ओर किसानों को इस गर्मी से बचाने के लिए आज भी पानी और शर्बत की सेवा भी कर रहे हैं। 



Thursday, 15 April 2021

भारतीय समाज और वसुधैव कुटुंबकम की हकीकत -

 साभार - विजेंद्र दीवाच

एक साल पहले जब कोरोना फैलना शुरू हुआ उसी समय मुस्लिम समाज के एक प्रोग्राम पर मीडिया की नजर पड़ गई।मीडिया द्वारा सारे मुस्लिमों को देश विरोधी घोषित कर दिया गया।

सारे न्यूज चैनल,अखबार और सोशल मीडिया में मुस्लिम समाज के खिलाफ जमकर जहर उगला।एक दिन नहीं,लगातार कई महीनों तक इस इस प्रोग्राम को देशद्रोही बताकर प्रचारित और प्रसारित करते रहे।

अब आम आदमी जो पूरे दिन कहीं भी काम कर रहा है वहां भी यही खबर,घर आकर टी वी देखे तो वही खबर,किसी दुकान पर चल रहे टी वी पर वही खबर,बाल कटाने गया वहां भी यही खबर।

अब ना चाहते हुए भी आम आदमी जो साजिश की जा रही है उसमें फंसेगा ही।उसे ऐसी फर्जी और झूठी खबर पर यकीन आयेगा ही।क्योंकि हर कहीं वह एक ही चीज देख रहा है।

मुस्लिम समाज के खिलाफ इतना गन्दा माहौल बनाया कि गांव में छोटा मोटा सामान बेचने आने वाले लोगों को बड़े गौर से देखे जाने लगा कि कहीं यह मुस्लिम तो नहीं है? यदि मुस्लिम है तो भगा दिया जा रहा था कि कहीं यह थूककर कोराेना ना फैला दे।

एक समुदाय विशेष के प्रति इतनी नफरत रखने वाले लोग देश के बंटवारे का कारण किसी और को बताकर अपने को महान देशभक्त मानते हैं।इससे बड़ा मजाक क्या होगा?

ऐसे लोगों के मुंह पर हमेशा वसुधैव कुटुंबकम् का नारा रहता है और साथ में ही जातीय दंभ भी कूट कूटकर भरा रहता है।

इन लोगों ने ही किसानों को आतंकवादी कहा, गालियां दी और सिर फाड़े।किसान आंदोलन को बदनाम करने की हर कोशिश की गई। किसान नहीं डगमगाये तो अब किसानों के टेंटों में आग लगानी शुरू कर दी है।सर्दी में पानी और गर्मी में आग,इतनी नफरत अपनों से ही,यह तो वही कर सकता है जो वसुधैव कुटुंबकम् के नारे को जेब में लेकर चलता है।

कोरोना और किसान आंदोलन ने हमारे भारतीय समाज की थोथी नैतिकता को खोल के रख दिया है।

जिस तरह पिछले साल मुस्लिम समाज को कोरोना फैलाने का पूरा जिम्मेदार ठहराया गया था क्या इस बार जो हजारों की संख्या में प्रतिदिन कोरोना से मर रहे लोगों की मौत का जिम्मेदार कुंभ के मेले और विश्व गुरु नेताओं की चुनावी रैलियों को ठहराया जाएगा?हम सबको पता है बिल्कुल नहीं। क्योंकि समाज दोगलापन रखता है।अपनी गलती तो कभी मानता ही नहीं है।

वसुधैव कुटुंबकम् नारे को सदियों से बोलते आए हैं और दूसरी और अपने ही लोगों का जातिगत समीकरण बिठाकर शोषण करते आए हैं।

इन लोगों ने वसुधैव कुटुंबकम् नारे की वैसी ही ऐसी - तैसी की है जैसी उस दीवार की होती है जिस पर लिखा होता है कि - यहां पेशाब करना मना है। वहीं सबसे ज्यादा पेशाब करके एक मजबूत दीवार को भी गला सड़ा के गिरने जैसी हालत में ले आते हैं।देखते हैं हमारे समाज के खोखले आदर्शों की नींव पर बनी दीवार कब तक टिकती है?

Monday, 5 April 2021

Lagging in Corona Cases Calculation -

जैसे अगर कोई ट्रेवलर लगातार घूम रहा है, और सोशल मीडिया में अपनी चीजें अपडेट कर रहा है, तो कई बार क्या होता है कि उनके अपडेट में लैग रहता है यानि वे अपडेट करने में कुछ दिन पीछे चल रहे होते हैं, पुराना अपडेट डाल रहे होते हैं, मैं आल इंडिया राइड कर रहा था तो सिर्फ एक दिन ऐसा करना पड़ गया था क्योंकि उस दिन अपडेट करना भूल गया था तो अगले दिन अपडेट किया था।

कोरोना के आँकड़ों के साथ भी ऐसा ही है, आँकड़ों का भौकाल बहुत जबरदस्त होता है, जितना बड़ा नंबर आप टीवी में अखबार में देखेंगे, उतना आपका डर बढ़ेगा, आप खुद ही कठोर नियम बनाने की माँग करेंगे, लाॅकडाउन की माँग करने लगेंगे, यानि आप खुद ही सरकार के हाथ में कोड़ा देंगे और पीठ दिखाकर कहेंगे कि लीजिए नीलापन आते तक मारिए, सरकार का योगदान इसमें बस यही रहेगा कि आपके सामने कोड़ा लाकर रख देगी, फिर बाकी आगे का काम आप आसान कर ही देंगे। कोरोना के आँकड़ों के साथ मोटा मोटा यही हो रहा है, केस पड़ा हुआ है, करोड़ों की संख्या में डाटा पड़ा है, अपडेट आज करो, कल करो, महीने चार महीने बाद करो, क्या फर्क पड़ता है। 

जैसे आज अगर मीडिया में 10,000 कोरोना केस और 50 लोगों के मृत्यु की खबर दिखाई जा रही है, क्या पता वास्तव में कुल 1000 केस आए हों और 5 लोगों की मृत्यु हुई हो और बाकी डेटा पुराना बैकलाॅग वाला जोड़ दिया गया हो, आपको कौन सा एक-एक व्यक्ति का नाम बताया जा रहा है, कोई माँगेगा भी नहीं। 

बहरहाल मैं आईपीएल के फिर से शुरू होने के इंतजार में हूं तब तक कोरोना के इस स्टेज-2 के खत्म होने की पूरी संभावना है, मुझे जम्बूद्वीप के लोगों के भूलने की परंपरा और सरकारी तंत्र की लैगिंग वाली इस बैटिंग पर पूरा भरोसा है।

Saturday, 3 April 2021

Glimpse from Tikri Border

 ये पोस्ट सिर्फ उनके लिए है जिन्होंने दिल्ली के बार्डर में हो रहे किसान आंदोलन को प्रत्यक्ष सामने से नहीं देखा है। ये नजारा बहादुरगढ़ वाली रोड यानि टिकरी बाॅर्डर का है, किसान आंदोलन की वजह से कितना सड़क जाम हो रहा है, नहीं हो रहा है, मीडिया क्या दिखा रही है, आप इस तस्वीर से समझ सकते हैं, इस तस्वीर में आपको एक आइडिया मिल जाएगा कि किसान कैसे पिछले चार महीनों से सड़क को ही अपना घर बना बैठा है, बस इसलिए ताकि आने वाली नस्लें इतनी गुलाम ना बन जाएं कि जुल्म के खिलाफ आवाज उठाना ही भूल जाएं। ये रोड बहुत अच्छी है, एक तरफ किसानों की बसावट है, और दूसरा साइड पूरा खाली रहता है, मैं खुद कई बार इस रास्ते से गुजरा हूं, गाड़ी चलाने वाला चाहे तो आराम से 100 से अधिक की गति से गाड़ी चला ले। इसी वजह से कई बार कुछ एक किसानों की दुर्घटना में मौत भी हो गई क्योंकि बीच में कहीं डिवाइडर नहीं है। आपको किसानों की हुंकार सुननी है तो गाॅजीपुर बार्डर जाएं, है सबसे छोटा लेकिन यूट्यूब में सबसे ज्यादा कटेंट वहीं से आ रहा है। अगर आपको किसानों की दिलेरी देखनी है तो सिंघु बार्डर जाइए, आपको वहाँ सारे रंग देखने को मिलेंगे, और हो भी क्यों न, आंदोलन जो यहीं से शुरू हुआ था। और अगर आपको किसानों का धैर्य देखना है तो टिकरी बाॅर्डर जाइए, सबसे शांत लेकिन ये बार्डर अपने भीतर बहुत कुछ लेकर बैठा है। सरकार को अगर किसी बाॅर्डर से सबसे अधिक घबराना चाहिए तो वह टिकरी बाॅर्डर है। टिकरी बाॅर्डर सबसे बड़ा है, 16 किलोमीटर लंबाई में फैला हुआ है, सोचिए कैसा नजारा होगा। मैं गया था तो घूमते घूमते थक गया था, दोपहर से शाम हो गई थी।