Book Review - Eleven Month
सैमसंग के फोन से इस किताब की समीक्षा टाइप करते यह जानकर आश्चर्य हुआ कि लेखक ने सैमसंग फोन से ही टाइप करते हुए छत्तीसगढ़ राज्य सिविल सेवा परीक्षा के अभ्यर्थियों की आपबीती को एक किताब का रूप दिया है। ये वाकई बड़े धैर्य का काम है, इसके लिए लेखक और लेखन दोनों को साधुवाद।
कल जब यह किताब पढ़ने को मिली तो कुछ हद तक निराशा हाथ लगी, तारतम्य बन नहीं पाया और इस वजह से 2-3 पेज से और आगे पढ़ना मुश्किल हो गया, इसके लिए मैं लेखक से क्षमा चाहता हूं। पता नहीं लेखक किताब की इन मात्रात्मक गलतियों को देख पा रहे हैं या नहीं, क्योंकि लगभग हर दूसरे तीसरे वाक्य में मात्रात्मक त्रुटियां हैं, चलिए एक बार मात्रात्मक त्रुटियों को नजर अंदाज कर भी दिया जाए तो पाठक आगे वाक्य विन्यास में हो रही गलतियों में फंस जाता है। अब इसमें छपाई से संबंधित कोई तकनीकी समस्या है या उन्होंने किताब की प्रूफ रीडिंग नहीं कराई है, ये तो वही बेहतर बता पाएंगे।
वैसे भी एक नयी रचना तैयार करना, मानसिक रूप से खुद को रोज उसके लिए तपाना, कथानक तैयार करना, हास्य व्यंग्य का पुट डालना, पात्र बुनना ये सब काम बहुत समय और धैर्य की मांग करती है, वाकई ये बड़ी मेहनत का काम है, ऐसे में एक किताब का मूल श्रृंगार यानि कि भाषा और व्याकरण ही अशक्त प्रतीत हो तो कष्ट होता है।
एक चीज यह भी समझ से परे है कि पाठक वर्ग कैसे इन चीजों को नजरअंदाज कर रहा है, या तो उन्हें स्पष्टत: दिखाई नहीं दे रहा होगा या ऐसा भी हो सकता है कि सिविल सेवा अभ्यर्थी न होने की वजह से इस किताब के असली पाठक वर्ग की मुझे समझ नहीं होगी।
किताब के संदर्भ में एक महती जरूरत यह भी है कि जैसे एक किताब छपती है, भले ही उसके अंदर का कच्चा माल कैसा भी हो लेकिन फेसबुक लेखन और ब्लाॅग लेखन से इतर किताब की अपनी एक नैतिक मांग होती है कि उसमें भाषा और व्याकरण संबंधी त्रुटियां ना के बराबर हों। क्योंकि किताब ऐसी चीज है कि कल को जैसे आप या हम रहें न रहें, हमारे अंश रूप में तो ये किताब रहेगी ही।
चलते चलते : आशा है कि लेखक इन बातों को सकारात्मक रूप में लेंगे और जल्द ही इस किताब के द्वितीय संस्करण की छपाई में व्यस्त हो जाएंगे लेकिन द्वितीय संस्करण की छपाई से पूर्व उनसे मेरा यह आग्रह है कि उन्हें इस किताब को एक दो बार बढ़िया तरीके से प्रूफ रीडिंग की प्रक्रिया से गुजारना चाहिए।
गलतियों की भरमार है। |
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