Sunday, 24 March 2019

जात पात हमारे गूणसूत्र में समाया हुआ है -

उसने कभी जात-पात को नहीं माना, उच्च वर्ग कहे जाने वाले परिवार से होते हुए भी कहीं भी बैठकर अपने दोस्तों के साथ एक थाली में खाना खा लेता, जूठा आइसक्रीम तक खा लेता और जातिगत ढकोसलों को रत्ती भर तवज्जो न देता। एक दिन एक सफाईकर्मी का झाडू़ उसके शरीर को स्पर्श कर जाता है, वह उस सफाईकर्मी को झाड़ू के एक सिक को चाटकर थूक के फेंकने को कहता है ताकि अशुभ ना हो। यह सब कुछ मेरी आंखों के सामने कुछ सेकेंड में हो जाता है।
मैं उससे पूछता हूं कि तुम तो कहते थे कि ऐसी दकियानूसी परंपराएं नहीं मानते, ये क्या था।
उसने कहा - मम्मी मानती है, मम्मी कहती है, इसलिए फाॅलो करना पड़ता है। ये सब के‌ लिए मम्मी बहुत गुस्सा करती है।
मैंने कहा - जब तुम‌ अपनी माताजी की बात का इतना ही सम्मान कर ही रहे हो तो तुम्हें फिर आज उस अछूत कहे जाने वाले अपने उस दोस्त का जूठा आइसक्रीम नहीं खाना चाहिए था।

उसने कहा - अरे नहीं वो बात अलग है, ये अलग है,‌ मेरी मम्मी भी जब झाड़ू लगाती है और मेरे शरीर में लग जाता है तो वह भी ऐसा करती है।

मैंने कहा - अगर सचमुच तुम्हारी माताजी ऐसा करती है तो उन्हें ऐसा करना बंद कर देना चाहिए। एक पल के लिए तुम ही सोचो कि उस झाड़ू को मुंह से लगाना कितना उचित है, जिस झाड़ू से सब तरफ की धूल मिट्टी साफ होती है, पता नहीं क्या क्या जो चिपका होता होगा इसमें, उस झाड़ू के एक टुकड़े को मुंह से लगाते हुए थूककर फेंकना, क्या यह तुमको कहीं से भी अपमान का विषय नहीं लगता है‌। एक झाड़ू के स्पर्श से हमारे शुभ अशुभ का निर्धारण भला कैसे हो सकता है।
देखो मैं तुम्हें गलत नहीं कह रहा हूं, मुझे बस हैरानी इस बात की है कि जब तुम खुद कहते हो तुम जात पात छुआछूत नहीं मानते हो, मिल जुलकर एक थाली में किसी के साथ भी खाना खा लेते हो, इतनी सधी हुई सोच रखते हो फिर भी ये झाडू चटवाने जैसा अमानवीय व्यवहार कैसे तुम्हें परेशान नहीं करता मैं समझ नहीं पा रहा हूं।
लड़का शांत हो गया।
फिर मैंने सोचा कि इससे ज्यादा कहना उचित नहीं है। शायद वह भी अपने जगह सही है, जिस परिवेश में वह बचपन से रहा है (खैर मेरी भी परवरिश ऐसी ही रही है) जो उसने देखा है, वही सीखता आया है, और शायद एक न एक दिन ये झाड़ू वाली बात भी वह समझ ही जाएगा। वह एक अच्छा डांसर है, बचपन से ही सुविधाओं में रहा है, एक मस्तमौला इंसान की तरह रहा है इसलिए गहराई में जाकर इन चीजों से उतना रूबरू नहीं हो पाया होगा। हमें सबकी सोच का सम्मान करना चाहिए, हम जैसा सोचते हैं जरूरी नहीं कि हर किसी की सोच हूबहू वैसी ही हो।

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