पहाड़ों में जब अंधेरा ढलने लगता है तो इंसानी बस्तियां धीरे धीरे अपने घरों की ओर सिमटने लगती हैं, फिर खाली होने लगते हैं बुग्याल और घने जंगल और जब घुप्प अंधेरा छा जाता है, चारों ओर सन्नाटा पसर जाता है, तब जाकर मध्यरात्रि को अपनी उपस्थिति दिखाने के लिए ऊंची आवाज लगाते हैं सियार। लेकिन क्या सिर्फ वे जंगली सियार ही होते हैं जो बुग्यालों में और जंगलों में हुंकार मारते फिरते हैं। असल में उनके साथ ही कुछ जंगली निशाचर भी अपने घरों से बाहर निकलते हैं, लेकिन वे बुग्यालों की ओर नहीं आते, बिल्कुल नहीं आते। इन निशाचरों में से आधे लोग रम व्हिस्की पीकर सड़कों पर टहलते हुए पहाड़ी और पंजाबी गीतों पर झूमते, शेरों शायरी करते मध्यरात्रि के पहले ही आहिस्ते अपने घरों को चले जाते हैं। बाकी बचे आधे लोग जो अपने घरों को जाते हैं, अन्य सामान्य लोगों की तरह अगली सुबह वे भी अपने ही घर के दरवाजे से बाहर को आते हैं लेकिन घर के अंदर प्रस्थान करने और सुबह घर से निकलने के बीच का यह समय क्या एक ही घर की चारदीवारी के भीतर खत्म हो जाता है या कोई विस्थापन होता भी है, क्या इस समयावस्था में मनुष्य मात्र की व्याकुलताएँ अपनी सीमा लांघती हैं या एक निश्चित दायरे में सिमटकर रह जाती हैं, यह प्रभु ही बेहतर जानता है। सारी असामान्य घटनाएँ जिसकी हमें जानकारी नहीं होनी चाहिए वह उस समयकाल में शनै: शनै: प्रभु की निगरानी में घटित हो रही होती है।
फिर अगली सुबह जब सब कुछ सामान्य हो जाता है, जीवन वही अपने पुराने खुशनुमा रंग में लौटने लगता है, दूर स्थित श्वेत हिमालय की चोटियों से सूरज की किरणें बिखेर देता है, ताकि अंधेरे का दंभ चूर-चूर हो जाए और सियार रूपी मानुषों को वापस एक सभ्य मनुष्य का दायित्व निभाना पड़े। और होता भी यही है, जो अदायगी के रस्म और अभिवादन के तौर तरीके रात्रिकाल में निभाए जाते थे, सुबह होते ही उनका लोप हो जाता है। फिर दिखते लगते हैं वही हँसते खिलते चेहरे, दूर गाँव से पीठ पर लादकर दूध लाती महिलाएँ और उनके साथ मीलों की दूरी तय कर पास के कस्बे में स्कूल की पढ़ाई करने आते बच्चे, हरे भरे घास के मैदानों की ओर अपने पशुधन को ले जाते गड़रिए, कुछ इस तरह देवभूमि की संस्कृति प्रातःकाल मंदिरों में पूजा पाठ करते, माथे में टीका लगाते, अपने से बड़ों को दोनों हाथों से प्रणाम करते संध्याकाल तक जीवंत अवस्था में बनी रहती है और फिर से सियार अंधेरा ढलने का इंतजार करते हैं।
No comments:
Post a Comment