साल भर के अंतराल के बाद मेरी मुलाकात देव सिंह पापड़ा (रिटायर्ड आर्मीमैन) जी से हुई जो मुनस्यारी के पापड़ी-पैकुती गाँव के मूल निवासी हैं, वे अकेले ही पिछले कई सालों से डानाधार स्थित माँ नंदा देवी मंदिर की देखरेख करते आ रहे हैं।
मैं - यार दा, पहचाना?
देव सिंह जी - हां आप हर साल तो आते ही हो यहाँ।
मैं - जी और अभी मंदिर परिसर में सब ठीक?
देव सिंह जी - हां, सब ठीक ही हुआ।
मैं - ये बताइए वहाँ जो किनारे में पानी के स्टोरेज के लिए जो आयताकार गड्ढा बनवाया है आपने, उस पर लोगों ने दारू की बोतलें फोड़ रखी है? कुछ करवा दो यार उसका। वही एक जगह बड़ी खराब हो रखी है।
देव सिंह - अब मैं कितनों को समझाऊं, जिसे शराब पीकर बोतल फोड़नी ही है, उसे कोई कैसे रोके। मैंने तो यहाँ के रखरखाव के लिए, यहां की समस्याओं को लेकर कितने मंत्रियों को खत लिखा, पर कुछ नहीं होने वाला हुआ। तब मुझे लगा कि जो करना है, मुझे ही करना है।
मैं - अच्छा। ठीक है, ये बताइए, अभी जो मंदिर परिसर की ये सुंदरता है, आपके भगीरथ प्रयास के कारण ही आज ये मुनस्यारी का सबसे फेमस टूरिस्ट स्पाॅट बन चुका है, तो ये पहले से ऐसा था क्या?
देव सिंह जी - अरे नहीं तो। पहले यहां जानवर,घोड़े, खच्चर आया करते थे, जहाँ आज जो आपको ये फूल दिख रहे हैं उसके जगह कांटे ही कांटे थे, कांच ही कांच था। लोहे के ये जो बाड़े थे, इसको भी सब उखाड़ कर ले गये, चुराकर बेच दिया, पता नहीं क्या किया, ये टंकी को ढंकने का जो लोहे का ढक्कन था, वो भी लोग ले गये। वो वहाँ मंदिर के गेट का पल्ला भी ले गये, इसे तो मैंने दुबारा बनवाया।
मैं - तो इन सबके लिए आपको गाँव के लोगों ने सहयोग दिया होगा?
देव सिंह जी - नहीं। गाँव वालों ने कोई सहयोग नहीं दिया।
मैं - अच्छा, बाहर के कुछ लोगों ने सहयोग किया होगा फिर?
देव सिंह जी - बाहर वालों ने भी नहीं किया। मैंने तो इसे मां की कृपा समझकर अपने बलबूते खुद ही काम करता रहा। जब उन्होंने मेरे सिर में पटक दिया कि आपने आवाज उठाया तो आप ही झेल लो, तो मैंने उसे झेल लिया। लोग ये कहते थे कि ये फौजी बुड्ढू भाग जाएगा, ये कुछ नहीं कर सकता है। मैंने जो है अपने दिल से लगाकर, अपने लगन से करके दिखाया उनको। मैंने कहा कि पांच साल से रहूंगा और करके दिखाया।
मैं - तो आप यहाँ इस मंदिर परिसर को कब से संभाल रहे हैं?
देव सिंह जी - मैं यहाँ 2013-14 से हूं।
मैं - जी, अच्छा।
देव सिंह जी - लाइट के लिए भी कुछ नहीं किया तो फिर मैंने गांव वालों से लड़ाई करके दो लाइट यहाँ पर लाया, एक वहाँ गेट पर लगाया और दूसरा यहाँ लगाया।
मैं - यार दाज्यू, लोगों तक मैं आपकी बात पहचाऊंगा।
देव सिंह जी - यहाँ तो मेरा ऐसा है न कि जो चढा़वे का पैसा है, दानपेटी का, वो सारा इकट्ठा करके जो भी कुछ होता है, उसी से मैं ये हर साल होने वाले मेले का पूरा आयोजन ये जितना भी चूना, गेरू, पेंट सब उसी से कराता हूं, मैं इसके लिए किसी को मांगता नहीं हूं, किसी के आगे हाथ नहीं फैलाता हूं।
मैं - यहाँ के प्रशासन से किसी प्रकार का कोई सहयोग नहीं मिलता?
देव सिंह जी - कोई कुछ नहीं। ये सब ऐसी हैं, सढ़े हुए आदमी हैं। आते हैं, जाते हैं।
मैं - पिछले बार जो एसडीएम थे उनसे आपने तो सहयोग के लिए बात की थी क्या?
देव सिंह जी - हां, एक बार क्या हुआ कि वो इन्क्वायरी करने जैसा यहाँ आए थे, मैं इधर गार्डन की कुराई कर रहा था। उन्होंने मुझे कहा - आप मडुवे की रोटी बनाओ, यहाँ का लोकल सब्जी बनाओ, टेंट लगाने की व्यवस्था बनाओ।
मैं - यानि ज्ञान देकर चले गये।
देव सिंह जी - हां और बोले कि उसमें से जो भी फायदा होगा, उसमें से चार भाग करके उसका एक भाग ब्लाक को देंगे, एक भाग गांव को देंगे, एक भाग हम लेंगे और एक भाग आपको देंगे।
मैं - हद है।
देव सिंह जी - मैंने तो सर पकड़ किया। उस समय बस हां हां करते गया, दूसरा मैंने उन्हें एक शब्द नहीं बोला। वो अपना बोलकर चले गये फिर दुबारा न तो कभी मिले न ही इस बारे में कोई बात हुई।
मैं - तो फिर अभी और क्या सोचा?
देव सिंह जी - ऐसा है कि ये मंदिर परिसर तो मेरे लिए मां समान है, अब मां की सेवा करने में क्या सोचना।
Maa Nanda devi temple, Munsyari |
Dev Singh Papra ji inspecting the temple premise |
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