मुनस्यारी में ये कहावत कहीं कहीं सटीक बैठती है। असल में यहां एक छोटे से व्यापारी हैं, उन्हें यहां आए ज्यादा समय नहीं हुआ है, बहुत ही मेहनती व्यक्ति हैं, मैं उनका नाम बदलकर उन्हें रोशन नाम से संबोधित करता हूं। रोशन जी बाहर से आए हैं, मतलब यहीं उत्तराखण्ड के ही किसी दूसरे जिले से हैं। उनकी मेहनत को देखकर कुछ लोग यानि कुछ व्यापारी वर्ग के सदस्य इतने आहत हुए कि उनको दुकान बंद कर सामान समेटने तक की धमकी दे डाली, क्योंकि उनके द्वारा की गई मेहनत से, नवाचार से क्षेत्रवासियों का तो भला हो ही रहा है, साथ ही उन गिने चुने दुकानदारों पर आने वाले ग्राहक कम हुए हैं जो ठीक उसी व्यापार में हैं जिस व्यापार में रोशन जी हैं। तो वे दुकानदार अपने बाहुबल का इस्तेमाल करते हुए दबाव बनाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।
रोशन जी भले और नेक आदमी हैं, किसी से ज्यादा कुछ बोलते नहीं हैं, कहीं इधर-उधर जाते भी नहीं, चुपचाप अपना काम करते रहते हैं, पब्लिक डोमेन में इस तरह रोशन जी के बारे में लिखने से उनके सामने और कोई विपदा न आए, इसलिए मैं उनके पेशे को लेकर भी गोपनीयता बरत रहा हूं।
बस रोशन जी के बारे में इतना ही कहूंगा कि पूरे मुनस्यारी में मैंने इतना मेहनती, इतना लगनशील व्यक्ति आजतक नहीं देखा। ये बात सिर्फ मैं नहीं कहता, मुनस्यारी के और भी बहुत से लोग कहते हैं।
जब से उनको कुछ लोग बोलकर गये हैं कि यहाँ से चले जाओ, तब से वे दिन रात काम कर रहे हैं। एक दिन तो सुबह 5 बजे उनके दुकान की लाइट जल रही थी, मैं मार्निंग वाक के लिए जा रहा था, मैंने देखा फिर बाद में लौटकर जब उनसे पूछा तो पता चला कि आज वे सोने के लिए अपने कमरे में गए ही नहीं हैं। उन्होंने कहा कि कई कई दिन तो बस सुबह 6 बजे से 9 बजे तक सोने के लिए चले जाते हैं, सचमुच उनके चेहरे की लकीरों को देखकर कोई भी बता सकता है कि ये व्यक्ति दिन रात खुद को तपा रहा है। मैंने जब उनसे इतना अधिक काम करने की वजह पूछी तो उन्होंने कहा - सर जी काम थोड़ा ज्यादा था, अब यहाँ तो देखो कितने दिन के लिए जो हैं, जब तक हैं जम के काम कर लेना हुआ, फिर हम चलें वापिस अपने गांव घर और क्या।
आखिर उन्हें ऐसा क्यों बोलना पड़ा, कहां सोया है मुनस्यारी का नागरिक समाज।
स्थानीय लोगों को सोचना चाहिए, ऐसे मेहनतकश लोगों से ईर्ष्या भाव न रखकर इनसे तो सीख लेनी चाहिए। लेकिन मुनस्यारी के कुछ जो छटे किस्म के बदमाश हैं उनकी तो आदत हुई कि खुद तो कुछ करना है नहीं और जो कुछ बेहतरी का काम कर रहे हैं उनके लिए सिर्फ और सिर्फ परेशानियाँ खड़ी करनी है।
हमारे लिए ये कितनी शर्म की बात है कि पहाड़ के आदमी को ही पहाड़ में ऐसी चीजें झेलनी पड़ रही है, फिर कोई क्यों न करे पलायन। और लोग फिर सोशल मीडिया में, सभा, सम्मेलन, सेमिनार में रोना रोते हैं कि गाँव खाली हो रहे, पलायन हो रहा वगैरह वगैरह।
बात सिर्फ मुनस्यारी की नहीं है, ऐसी छोटी बड़ी जो भी समस्याएं जिस भी क्षेत्र में हैं, ये हर उस क्षेत्र के नागरिक समाज की जिम्मेदारी है कि ऐसे लोगों को वे पहचानें, उनसे बात करें और फिर कहें कि भाई जी आप अपना काम करें, हम आपके साथ खड़े हैं।
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