मुनस्यारी में ये एक ऐसी समस्या आ खड़ी है जो दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, और आश्चर्य की बात ये है कि इस ओर किसी का ध्यान भी नहीं जा रहा है। मुनस्यारी में रोज औसतन 20 से 25 हजार रूपए की शराब बिकती है। लोग शराब पीते हैं और बोतलें कहीं एक जगह किसी कमरे में या होटलों में इकट्ठा होती जाती है। कुछ लोग बोतलें कहीं भी फेंक आते हैं, अब जो फेंकी हुई बोतलें हैं वो या तो पहाड़ों में जहां-तहां गिरी मिल जाती है या फिर गदेड़ी(कचरे फेंकने की जगह) में या फिर नालियों में एकत्र हो जाती है। बारिश होती है और सारा कुछ कूड़ा-करकट बह कर नदियों तक चला जाता है। लेकिन इस बहाव से काँच की समस्या पूरी तरह खत्म नहीं हो जाती, काँच का प्रतिशत तो जस का तस बना ही हुआ है, या यूं कहें कि बढ़ता ही जा रहा है, लेकिन कोई भी इस समस्या को एक समस्या के तौर पर देख नहीं पा रहा है।
काँच की ये बोतलें समस्या इसलिए बन गई है क्योंकि बोतलें मुनस्यारी आ तो रही हैं लेकिन यहां से वापस नहीं जा पा रही, रिसाइकल होने का कोई उपाय नहीं दिख रहा। और आखिर कोई इतना बड़ा जोखिम उठाए तो उठाए कैसे। कोई अगर काँच की बोतलें इकट्ठी कर रिसायकलिंग के लिए मुनस्यारी से बाहर यानि 300 किलोमीटर दूर हल्द्वानी भेजने की तोहमत उठाता भी है तो उसे इस काम का मूलधन भी नहीं मिल पाएगा, उल्टे अपनी तरफ से पैसे लगाने पड़ेंगे। 11 से 12 घंटे का लंबा सफर तय कर खतरनाक पहाड़ी रास्तों से होते हुए काँच की बोतलों से लदी गाड़ी जब मुनस्यारी से हल्द्वानी पहुंचेगी तो आप इस बात का अंदाजा लगाइए कि रास्ते में कितनी बोतलें टूटेगी।
समाधान कैसे हो-
अब कोई साधन-सम्पन्न पुरूषार्थी व्यक्ति या कोई नि:स्वार्थ एनजीओ टाइप का कोई व्यक्ति ही चाहिए जो इस समस्या को गंभीरता से ले। कोई कर्मठ संवेदनशील व्यक्ति ही अब इस समस्या से मुनस्यारी को मुक्ति दिला सकता है। अगर ऐसा कुछ नहीं भी हुआ तो भी आने वाले सालों में आज नहीं तो कल ऐसी नौबत आ ही जाएगी कि मुनस्यारी के नागरिकों को खुद आगे आकर नेतृत्वक्षमता स्थापित करनी पड़ेगी और इस काम को अमलीजामा पहनाना पड़ेगा।
Panchachuli Peak- 1, Munsyari |
No comments:
Post a Comment