भारत का एक ऐसा गांव कोई बतलाइए..
~ जहां के गांव वालों ने नदियां सूखा दी हों,
~ जहां गांव वालों ने तालाब पाट कर अपने लिए घर बना दिए हों,
~ जहां गांव के लोगों ने कुएं समाप्त कर दिए हों,
~ जहां गांव वालों ने अपनी जरूरतों के लिए जंगल के पेड़ों का सफाया कर दिया हो,
~ जहां गांव वालों ने अपनी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए प्रकृति को किसी भी प्रकार से नुकसान पहुंचाया हो,
~ ऐसे गांवों का भी नाम बताया जाए जहां कचरे-कूड़े का टीला बन गया हो और सफाई न होती हो,
~ ऐसे गांवों का भी नाम बताया जाए जहां बजबजाती नालियां बहती हों और उसकी सफाई के नाम पर कुछ भी न होता हो,
अब दूसरा पहलू, शहरों की बात करते हैं...
भारत का एक ऐसा शहर/महानगर/ मेट्रो सिटी
बताया जाए जहां---
~ उफनती गंदी नालियां न हों,
~ जहां कचरे के बड़े-बड़े ढेर न हो,
~ जहां के लोगों ने जुगाड़ लगाकर अपने स्वार्थ हेतु तालाबों/पोखरों को समतल न किया हो,
~ जहां हजारों की संख्या में पेड़ न कटे हों,
~ जहां के लोगों ने नदियों/झीलों/ कुओं/अन्य जल स्त्रोतों की ऐसी तैसी न की हो,
~ जहां साफ पानी और साफ हवा ( जीने के लिए सबसे मूलभूत जरूरत) मिलती हो,
तुलना-
1) आदर्श ग्राम तो भारत में सैकड़ों की संख्या में है, एक ऐसा आदर्श शहर का नाम गिनाइए, आदर्श शहर छोड़िए कोई छोटा शहर कस्बा टाइप का ही बता दीजिये,
2) क्यों गांव के लोगों को Go green का T-shirt नहीं पहनना पड़ता? ये चूतियापा शहर के लोगों द्वारा ही क्यों? जबकि उनकी जीवनशैली का हर दूसरा काम प्रकृति को नुकसान पहुंचाने वाला है।
3) गांव के लोग क्यों कभी स्वच्छता के लिए जागरूकता कैंपेन टाइप का ढोंग करते नहीं दिखते?
शहर के लोग ही क्यों,
क्या ऐसा तो नहीं कि शहर के पढ़े-लिखे लोग सच में ज्यादा सभ्य हैं या ज्यादा साफ-सफाई से रहते हैं?
4) गांव में किसी का एक बड़ा सा घर है, मेहनती किसान है, उसकी तुलना में शहर में 1-बीएचके फ्लेट में रहने वाला कैसे ज्यादा सभ्य मान लिया जाता है?
लोग रहने लगे और बिचौलियों ने जमीन का रेट ऊंचा कर दिया, क्या सभ्य होने की वजह ये माने या कुछ और?
5) जागरूकता और कैंपेनिंग से, बड़े पांच सितारा होटलों में सेमिनार करने से, पर्यावरण संरक्षण वाले कपड़े पहनकर ग्रुप फोटोग्राफी से, न्यूज में आने से, सोशल मीडिया के दिखावे से, स्मार्ट सिटी नामक इन सब चोचलेबाजी से क्या ऐसा शहर बन पाएगा, जहां प्रकृति को नुकसान पहुंचाने वाली मानसिकता का सर्वनाश हो जाए?
6) गांव-गंवई के लोग अनपढ़ गंवार होने के बाद भी नदियों, जंगलों को बचाने के लिए कभी पेड़ों से चिपक जाते हैं तो कभी पानी के अंदर हफ्ते-भर रह लेते हैं, शरीर तक गल जाता है..
शहरी लोगों ने कब ऐसा प्रयास किया, इसका 1% भी अगर कुछ किया हो तो तथ्य सामने लाए जाएं।
7) आखिर ऐसा क्या कारण है कि गांवों में ये तहस-नहस और नुकसान पहुंचाने वाली मानसिकता नहीं हैं?
पर्यावरण के क्षेत्र में पीएचडी होल्डर विद्वान कब ऐसे वास्तविक तथ्यों से टकरायेंगे? या फिर जीवन भर डींगे हांकते रहेंगे।
8) आखिरी बात ये कि एक Statistics इस पर भी बने कि आखिर पर्यावरण प्रदूषण में सबसे ज्यादा योगदान किसका है, गांव के उन 70% लोगों का या 30% शहरी निवासियों का?
~ जहां के गांव वालों ने नदियां सूखा दी हों,
~ जहां गांव वालों ने तालाब पाट कर अपने लिए घर बना दिए हों,
~ जहां गांव के लोगों ने कुएं समाप्त कर दिए हों,
~ जहां गांव वालों ने अपनी जरूरतों के लिए जंगल के पेड़ों का सफाया कर दिया हो,
~ जहां गांव वालों ने अपनी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए प्रकृति को किसी भी प्रकार से नुकसान पहुंचाया हो,
~ ऐसे गांवों का भी नाम बताया जाए जहां कचरे-कूड़े का टीला बन गया हो और सफाई न होती हो,
~ ऐसे गांवों का भी नाम बताया जाए जहां बजबजाती नालियां बहती हों और उसकी सफाई के नाम पर कुछ भी न होता हो,
अब दूसरा पहलू, शहरों की बात करते हैं...
भारत का एक ऐसा शहर/महानगर/
बताया जाए जहां---
~ उफनती गंदी नालियां न हों,
~ जहां कचरे के बड़े-बड़े ढेर न हो,
~ जहां के लोगों ने जुगाड़ लगाकर अपने स्वार्थ हेतु तालाबों/पोखरों को समतल न किया हो,
~ जहां हजारों की संख्या में पेड़ न कटे हों,
~ जहां के लोगों ने नदियों/झीलों/
~ जहां साफ पानी और साफ हवा ( जीने के लिए सबसे मूलभूत जरूरत) मिलती हो,
तुलना-
1) आदर्श ग्राम तो भारत में सैकड़ों की संख्या में है, एक ऐसा आदर्श शहर का नाम गिनाइए, आदर्श शहर छोड़िए कोई छोटा शहर कस्बा टाइप का ही बता दीजिये,
2) क्यों गांव के लोगों को Go green का T-shirt नहीं पहनना पड़ता? ये चूतियापा शहर के लोगों द्वारा ही क्यों? जबकि उनकी जीवनशैली का हर दूसरा काम प्रकृति को नुकसान पहुंचाने वाला है।
3) गांव के लोग क्यों कभी स्वच्छता के लिए जागरूकता कैंपेन टाइप का ढोंग करते नहीं दिखते?
शहर के लोग ही क्यों,
क्या ऐसा तो नहीं कि शहर के पढ़े-लिखे लोग सच में ज्यादा सभ्य हैं या ज्यादा साफ-सफाई से रहते हैं?
4) गांव में किसी का एक बड़ा सा घर है, मेहनती किसान है, उसकी तुलना में शहर में 1-बीएचके फ्लेट में रहने वाला कैसे ज्यादा सभ्य मान लिया जाता है?
लोग रहने लगे और बिचौलियों ने जमीन का रेट ऊंचा कर दिया, क्या सभ्य होने की वजह ये माने या कुछ और?
5) जागरूकता और कैंपेनिंग से, बड़े पांच सितारा होटलों में सेमिनार करने से, पर्यावरण संरक्षण वाले कपड़े पहनकर ग्रुप फोटोग्राफी से, न्यूज में आने से, सोशल मीडिया के दिखावे से, स्मार्ट सिटी नामक इन सब चोचलेबाजी से क्या ऐसा शहर बन पाएगा, जहां प्रकृति को नुकसान पहुंचाने वाली मानसिकता का सर्वनाश हो जाए?
6) गांव-गंवई के लोग अनपढ़ गंवार होने के बाद भी नदियों, जंगलों को बचाने के लिए कभी पेड़ों से चिपक जाते हैं तो कभी पानी के अंदर हफ्ते-भर रह लेते हैं, शरीर तक गल जाता है..
शहरी लोगों ने कब ऐसा प्रयास किया, इसका 1% भी अगर कुछ किया हो तो तथ्य सामने लाए जाएं।
7) आखिर ऐसा क्या कारण है कि गांवों में ये तहस-नहस और नुकसान पहुंचाने वाली मानसिकता नहीं हैं?
पर्यावरण के क्षेत्र में पीएचडी होल्डर विद्वान कब ऐसे वास्तविक तथ्यों से टकरायेंगे? या फिर जीवन भर डींगे हांकते रहेंगे।
8) आखिरी बात ये कि एक Statistics इस पर भी बने कि आखिर पर्यावरण प्रदूषण में सबसे ज्यादा योगदान किसका है, गांव के उन 70% लोगों का या 30% शहरी निवासियों का?
Somewhere in a remote village of uttarakhand |
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