Sunday, 18 June 2017

~ My Family @ Munsyari ~

My big brother Binod Bisht


Bhabhi and Nephew Ayush

Younger brother Tarun singh dhami


Brother Manoj rana

Suresh bhai(Right end) and Rana brothers


Bhuppy rana and Jitin Sayala(middle)


Bachha Party

Massab and gungun


Dadi and Gungun


Nephew Pritesh


Golu


Didi


Baccha Party

Friend from Baadni Village




Judwa brothers


Khem Da


My Students - 1


My Students - 2


My Students - 3


Saturday, 17 June 2017

~ Sex, Marriage and Settlement ~

                                 कोई अगर पूछे कि भारत के युवा पीढ़ी के सामने आज सबसे बड़ी समस्या क्या है तो मैं इन तीन शब्दों का नाम लेते हुए कहूंगा कि यही सबसे बड़ी समस्या है और यही सबसे बड़ी बीमारी भी है। असल में ये बीमारी थी नहीं लेकिन इसे कुछ इस तरीके से हमारे सामने परोस दिया गया है कि हम इससे आगे का कुछ सोच ही नहीं पा रहे। हमारी सोच इतनी संकुचित हो चुकी है कि हमारे लिए ये चुनिंदा विषय आज जीवन का अंतिम लक्ष्य तक बन चुके हैं, हम न इसके आगे का कुछ सोचना चाहते हैं न ही कुछ करना चाहते हैं।
हम इन्हीं विषयों के इर्द-गिर्द चर्चा कर खुद को संतुष्ट करने में ही लगे रहते हैं।

                                 अभी कुछ समय से मैं अपने सालों पुराने दोस्तों से मिल रहा हूं। मिलने के बाद ऐसा लगा कि उनके जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य सेक्स, शादी और सैटल होना ही है। एचीवमेंट के नाम पर कोई अपनी होने वाली पत्नी की तस्वीरें, अपने घर, जमीन, गाड़ी वगैरह की बात करता है, तो कोई एचीवमेंट के नाम पर तरह-तरह की लड़कियों की तस्वीरें दिखाने लगता है, जिनसे उसने वर्तमान में संबंध बनाए। इस पूरे पागलपन को देखने के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि नौकरी, शादी, सेक्स, घर, गाड़ी बस यही सब में उनकी जीवनशैली सिमट चुकी है। वे न चाहते हुए भी इस बने बनाये पैटर्न से अलग नहीं हो पा रहे, न ही कुछ नया कर पा रहे। उन्हें लगता होगा कि वे बड़ी अच्छी बातें कर रहे हैं, माॅडर्न हो गये, सभ्य हो गये, लाइफ को जीना सीख गये हैं वगैरह वगैरह। लेकिन वे तो जहां थे, वहीं के वहीं हैं, उनकी सोच में आज भी वही पुराना कचरा/मवाद भरा हुआ है। नया कुछ हुआ ही नहीं, नयेपन के नाम पर अगर कुछ हुआ है तो वो ये कि महंगा सा स्मार्टफोन आ गया है, महंगे ब्रांड वाले जूते,कपड़े और लाखों की बाइक, और तो और घर में महंगी कार भी आ चुकी है। यानि इतनी घटिया कंडिशनिंग हो चुकी है कि ये सब के चलते जो सबसे जरूरी चीज थी, मस्तिष्क का विकास, उसमें तो लगभग जंग लग चुका है, रचनाधर्मिता शून्य हो चुकी है।
फिर लगा कि क्या मेरे कुछ दोस्तों के साथ ही ऐसा है, नहीं। हर जगह यही हाल है, कुछ अपवादों को अलग कर दिया जाए तो मुख्यधारा में यही चल रहा है।
                                 आज के युवा के लिए सेक्स किसी लाइफटाइम एचीवमेंट से कम नहीं है, वो इसे जीने-मरने का सवाल बनाने लगा है, उसके लिए दुनिया बस जो है यही है। संबंध बनाओ, खुश रहो, आज ये कल वो, माइलस्टोन सेट करते जाओ। ये सब भारत जैसे लो-मोराॅलिटी वाले देश में ही संभव है।

                                 हवस, भूख और लालसा इतने चरम स्तर पर पहुंच चुकी है कि आज का युवा कैसे न कैसे करके अपने लिए अपार सुविधाएं हथिया लेना चाहता है, रोजगार की घोर कमी के बीच चंद सरकारी नौकरियों के लिए लगी मारामारी इस बात का संकेत है कि फलां को कैसे भी करके एक ठीक-ठाक सरकारी नौकरी चाहिए, हां नौकरी कैसी भी हो चलेगा। पसंद-नापसंद की बात बाद में, जीवन-मूल्यों की बात बाद में, मोटी कमाई और रुतबा होना चाहिए बस। एक बार लग गये नौकरी में, जीवन भर फुर्सत बैठे रहो। कोई किचकिच नहीं। और फिर इसके बाद क्या, सुंदर और सुशील बीवी भी तो चाहिए। सही मायनों में देखा जाए तो ये भी एक अलग ही प्रकार का बिजनेस बन चुका है। पूरे घर-परिवार समाज का ढांचा ऐसा बन पड़ा है कि पैरेंट्स भी बच्चों पर शादी के लिए दबाव बनाने लगते हैं, पढ़ी-लिखी लड़की, अच्छे घर की खोजबीन चालू, यानि एक ऐसा माहौल बन जाता है कि लगता है हम शादी करने के लिए ही इस धरती पर अवतरित हुए हैं, अब यही हमारे जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य है।
                               आज के पढ़े-लिखे माॅडर्न युवा को भी अपने लिए जीवनसाथी के रुप में एक ऐसी लड़की चाहिए जो खुद नौकरी में न हो और बढ़िया घर में रहे, हमने अच्छे-अच्छे अधिकारियों को ऐसा करते देखा है। वे असल में अपने लिए एक वस्तु खरीद रहे होते हैं डील कर रहे होते हैं, उन्हें असल में शादी के लिए लड़की नहीं चाहिए, एक सुंदर सी भोग्या वस्तु चाहिए। रिश्ता, प्रेम, भावनाएँ हां ये सब तो शादी के बाद आ ही जाएगा, नौकरी का ठाठ है, सब हो जाएगा। लड़कियां भी कम नहीं हैं, उन्हें इस नव-दासत्व में इतना मजा आता है, वे शादी के अगले दिन से ही अपने नाम और सरनेम के बीच अपने पति का नाम जोड़ लेती हैं।

 अब लड़के भी महान, वे इतने महान होते हैं कि जब उनकी वस्तु रूपी पत्नी जब पेट से होती है तो वे दूसरी औरतों से बात करके अपना मन बहलाने लगते हैं। कम नहीं तो ज्यादा अधिकतर यही होता है, कोई पराई लड़कियों/महिलाओं से बातचीत/चैट करके मन बहलाता है तो कोई संबंध बना लेता है।
और लड़कियां भी अपने में मस्त, वो शाॅपिंग करके, सोना-चांदी खरीद के अपने ईगो का बराबर तुष्टीकरण करती है।

                           अब इन सबसे उलट एक तबका खोखले ब्रम्हचारियों का भी है, अब इनमें एक वो जो अपने कालेज लाइफ में मिली प्रेम की विफलता से क्रुद्ध होकर बीस की उम्र में जीवन भर अकेले रहने का फैसला ले लेते हैं, विपश्यना करने लगते हैं और फिर कुछ दिन बाद पता चलता है कि अगला किसी के साथ फिर से रिश्ते में है। एक तबका तीस के उम्र पार वालों का है, इनकी तो दुनिया ही अलग है, ये सालों तक दुनिया के सामने ब्रम्हचारी बने फिरते हैं, बुद्धम् शरणं गच्छामि का ढोंग करते हैं, हालांकि परदे के पीछे ये भी खूब अफेयर मारते हैं। जब आखिर में इन्हें पता चलता है कि अब इनसे नहीं हो पाएगा, कंट्रोल नहीं हो पा रहा,और अकेले नहीं रह पाएंगे। तो फिर वे सारा ढोंग त्याग कर मजबूरी में शादी कर लेते हैं। सनद रहे कि ऐसी शादियों का पसंद, नापसंद और आपसी प्रेम से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं होता, ये एक प्रकार का बिजनेस डील ही होता है।

स्वीकार करना नहीं करना आपके ऊपर, पर हकीकत तो यही है कि हम जिस पांच हजार साल पुरातन संस्कृति का गौरवगान करते रहते हैं, आज उसका दिवाला निकल चुका है, आज उस संस्कृति का वर्तमान धूमिल हो चुका है, और वो महान संस्कृति अपनी तमाम विसंगतियों को किनारे कर खुद को महान साबित करने की आंधी में बहने लगी है।

 यानि हम खुद से इतना झूठ कैसे बोल सकते हैं?
हम स्वयं के साथ इतना बड़ा अन्याय कैसे कर सकते हैं?
हम क्यों ऐसी दोहरी जिंदगी जीते हैं??
आखिर क्यों????

Friday, 16 June 2017

~ मुनस्यारी में काँच की समस्या ~

                              मुनस्यारी में ये एक ऐसी समस्या आ खड़ी है जो दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, और आश्चर्य की बात ये है कि इस ओर किसी का ध्यान भी नहीं जा रहा है। मुनस्यारी में रोज औसतन 20 से 25 हजार रूपए की शराब बिकती है। लोग शराब पीते हैं और बोतलें कहीं एक जगह किसी कमरे में या होटलों में इकट्ठा होती जाती है। कुछ लोग बोतलें कहीं भी फेंक आते हैं, अब जो फेंकी हुई बोतलें हैं वो या तो पहाड़ों में जहां-तहां गिरी मिल जाती है या फिर गदेड़ी(कचरे फेंकने की जगह) में या फिर नालियों में एकत्र हो जाती है। बारिश होती है और सारा कुछ कूड़ा-करकट बह कर नदियों तक चला जाता है। लेकिन इस बहाव से काँच की समस्या पूरी तरह खत्म नहीं हो जाती, काँच का प्रतिशत तो जस का तस बना ही हुआ है, या यूं कहें कि बढ़ता ही जा रहा है, लेकिन कोई भी इस समस्या को एक समस्या के तौर पर देख नहीं पा रहा है।
                               काँच की ये बोतलें समस्या इसलिए बन गई है क्योंकि बोतलें मुनस्यारी आ तो रही हैं लेकिन यहां से वापस नहीं जा पा रही, रिसाइकल होने का कोई उपाय नहीं दिख रहा। और आखिर कोई इतना बड़ा जोखिम उठाए तो उठाए कैसे। कोई अगर काँच की बोतलें इकट्ठी कर रिसायकलिंग के लिए मुनस्यारी से बाहर यानि 300 किलोमीटर दूर हल्द्वानी भेजने की तोहमत उठाता भी है तो उसे इस काम का मूलधन भी नहीं मिल पाएगा, उल्टे अपनी तरफ से पैसे लगाने पड़ेंगे। 11 से 12 घंटे का लंबा सफर तय कर खतरनाक पहाड़ी रास्तों से होते हुए काँच की बोतलों से लदी गाड़ी जब मुनस्यारी से हल्द्वानी पहुंचेगी तो आप इस बात का अंदाजा लगाइए कि रास्ते में कितनी बोतलें टूटेगी।

समाधान कैसे हो-
अब कोई साधन-सम्पन्न पुरूषार्थी व्यक्ति या कोई नि:स्वार्थ एनजीओ टाइप का कोई व्यक्ति ही चाहिए जो इस समस्या को गंभीरता से ले। कोई कर्मठ संवेदनशील व्यक्ति ही अब इस समस्या से मुनस्यारी को मुक्ति दिला सकता है। अगर ऐसा कुछ नहीं भी हुआ तो भी आने वाले सालों में आज नहीं तो कल ऐसी नौबत आ ही जाएगी कि मुनस्यारी के नागरिकों को खुद आगे आकर नेतृत्वक्षमता स्थापित करनी पड़ेगी और इस काम को अमलीजामा पहनाना पड़ेगा।


Panchachuli Peak- 1, Munsyari

Thursday, 15 June 2017

~ Himalaya Mysteries ~

हिमालय के ऊपरी इलाकों में कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जो एक खास किस्म की ऊर्जा से संचालित हैं। जब लोग दस-बीस किलोमीटर की चढ़ाई करके जब ऐसी जगहों पर पहुंचते हैं। तो अचानक ही वे महसूस करते हैं कि उनकी सफर की सारी थकान मिट गई। लोग इस भ्रम में रहते हैं कि उस जगह विशेष की खूबसूरती के कारण ऐसा हो रहा है।
लेकिन वजह तो कुछ और ही है।
असल में जब कोई एक लंबी चढ़ाई कर ऐसे ऊपरी क्षेत्रों में जाता है, तो उसकी भूख,प्यास थकान सब झटके में मिट जाती है। और जैसे ही वो उस जगह से नीचे उतरता है यानि उस जगह से दूर होता है,तो फिर से थकान पैर दर्द और बाकी चीजें दिमाग पर हावी होने लगती है। क्या सिर्फ उस जगह की सुंदरता ही एकमात्र वजह है, नहीं ऐसा नहीं है। असल में कारण छुपा है, उस जगह में हजारों सालों से स्थापित पत्थरों में। कहा जाता है कि पत्थरों की स्मरण क्षमता सबसे अधिक होती है, ऐसा इसलिए कि जो वस्तु अपनी प्रकृति में जितनी ठोस होती है, उसकी स्मरण-शक्ति उतनी तीव्र होती है। इसलिए हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में पत्थर की बनी छोटी-छोटी मूर्तियों की पूजा की जाती है, क्योंकि पत्थरों में असीमित ऊर्जा ग्रहण करने की क्षमता होती है।
न जाने हिमालय के ऊपरी क्षेत्रों में स्थापित पत्थरों में कितनी स्मरण-शक्ति है, क्योंकि इनके पास जाने पर ऐसा प्रतीत होता है कि ये सालों से असीमित मात्रा में ऊर्जा स्पंदित कर रहे हैं। इसलिए तो इतनी चढ़ाई चढ़ने के बाद भी हम इन जगहों में पहुंचने के बाद एक खास किस्म की सकारात्मक ऊर्जा से संचालित होने लगते हैं। सारी थकान किनारे हो जाती है, और हमारे पांव अपने आप चलने दौड़ने लगते हैं, और हमें चाहकर भी वहां रुकने, थमने या आराम करने का मन नहीं करता, हम प्रकृति की गोद में खेलने लगते हैं।


 

~ Swimming Demonstration in the foothills of himalayas ~

पहाड़ों में तालाब नहीं होते, इस एक वजह से अधिकांश लोग स्वीमिंग चीज क्या है, नहीं जानते। जब इन बच्चों को पता चला कि मुझे स्वीमिंग आती है तो वे सिखाने की जिद करने लगे। 10'C में, वो भी इतने ठंडे पानी में नहाना, मैंने तो पानी छूते ही साफ मना कर दिया। बच्चे इस तरह जिद पर उतर आए कि सब एक-एक करके नहाने के लिए उतर गये मानो किसी भी हाल में सीखना ही है। और फिर ऐसे ही पानी में हाथ पांव मारने लगे। स्वीमिंग सीखने के लिए सारे बच्चे पागल हुए जा रहे थे। मैं वहां पास में एक पत्थर में बैठा हुआ था तो वे मुझसे कहने लगे कि भैया वहीं से बता दो, हम फिर ठीक वैसा-वैसा करते हैं। और फिर उनमें से एक बच्चे ने कहा - भैया सीखा दो न यार, आप फिर कल को चले जाओगे तो हमेशा के लिए याद रखेंगे कि आपसे सीखे हैं। और फिर उस बच्चे की बात सुनकर, उन सबके के जुनून को देखकर मैं भी उतर गया कुंड में।
पानी इतना ठंडा था कि शरीर सुन्न हो जाता, साथ ही लाल पड़ जाता, इसलिए हर पांच- दस मिनट में शरीर को गर्म करने के लिए हम सबको पानी से बाहर आना पड़ता। कुछ इस तरह हम घंटों तक इस ठंडे पानी में नहा दिए।
आप पानी को देखिए, बहता हुआ पानी है और ये पानी इतना साफ है कि आसानी से पिया जा सकता है, शहरों में फिल्टर किए पानी से कहीं ज्यादा शुध्द और मीठा।

Location - Bharadi River (tributary of goriganga), Bharadi Mandir, Munsyari



 

कुछ सवाल--

भारत का एक ऐसा गांव कोई बतलाइए..
~ जहां के गांव वालों ने नदियां सूखा दी हों,
~ जहां गांव वालों ने तालाब पाट कर अपने लिए घर बना दिए हों,
~ जहां गांव के लोगों ने कुएं समाप्त कर दिए हों,
~ जहां गांव वालों ने अपनी जरूरतों के लिए जंगल के पेड़ों का सफाया कर दिया हो,
~ जहां गांव वालों ने अपनी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए प्रकृति को किसी भी प्रकार से नुकसान पहुंचाया हो,
~ ऐसे गांवों का भी नाम बताया जाए जहां कचरे-कूड़े का टीला बन गया हो और सफाई न होती हो,
~ ऐसे गांवों का भी नाम बताया जाए जहां बजबजाती नालियां बहती हों और उसकी सफाई के नाम पर कुछ भी न होता हो,

अब दूसरा पहलू, शहरों की बात करते हैं...
भारत का एक ऐसा शहर/महानगर/मेट्रो सिटी
बताया जाए जहां---
~ उफनती गंदी नालियां न हों,
~ जहां कचरे के बड़े-बड़े ढेर न हो,
~ जहां के लोगों ने जुगाड़ लगाकर अपने स्वार्थ हेतु तालाबों/पोखरों को समतल न किया हो,
~ जहां हजारों की संख्या में पेड़ न कटे हों,
~ जहां के लोगों ने नदियों/झीलों/कुओं/अन्य जल स्त्रोतों की ऐसी तैसी न की हो,
~ जहां साफ पानी और साफ हवा ( जीने के लिए सबसे मूलभूत जरूरत) मिलती हो,

तुलना-

1) आदर्श ग्राम तो भारत में सैकड़ों की संख्या में है, एक ऐसा आदर्श शहर का नाम गिनाइए, आदर्श शहर छोड़िए कोई छोटा शहर कस्बा टाइप का ही बता दीजिये,

2) क्यों गांव के लोगों को Go green का T-shirt नहीं पहनना पड़ता? ये चूतियापा शहर के लोगों द्वारा ही क्यों? जबकि उनकी जीवनशैली का हर दूसरा काम प्रकृति को नुकसान पहुंचाने वाला है।

3) गांव के लोग क्यों कभी स्वच्छता के लिए जागरूकता कैंपेन टाइप का ढोंग करते नहीं दिखते?
शहर के लोग ही क्यों,
क्या ऐसा तो नहीं कि शहर के पढ़े-लिखे लोग सच में ज्यादा सभ्य हैं या ज्यादा साफ-सफाई से रहते हैं?

4) गांव में किसी का एक बड़ा सा घर है, मेहनती किसान है, उसकी तुलना में शहर में 1-बीएचके फ्लेट में रहने वाला कैसे ज्यादा सभ्य मान लिया जाता है?
लोग रहने लगे और बिचौलियों ने जमीन का रेट ऊंचा कर दिया, क्या सभ्य होने की वजह ये माने या कुछ और?

5) जागरूकता और कैंपेनिंग से, बड़े पांच सितारा होटलों में सेमिनार करने से, पर्यावरण संरक्षण वाले कपड़े पहनकर ग्रुप फोटोग्राफी से, न्यूज में आने से, सोशल मीडिया के दिखावे से, स्मार्ट सिटी नामक इन सब चोचलेबाजी से क्या ऐसा शहर बन पाएगा, जहां प्रकृति को नुकसान पहुंचाने वाली मानसिकता का सर्वनाश हो जाए?

6) गांव-गंवई के लोग अनपढ़ गंवार होने के बाद भी नदियों, जंगलों को बचाने के लिए कभी पेड़ों से चिपक जाते हैं तो कभी पानी के अंदर हफ्ते-भर रह लेते हैं, शरीर तक गल जाता है..
शहरी लोगों ने कब ऐसा प्रयास किया, इसका 1% भी अगर कुछ किया हो तो तथ्य सामने लाए जाएं।

7) आखिर ऐसा क्या कारण है कि गांवों में ये तहस-नहस और नुकसान पहुंचाने वाली मानसिकता नहीं हैं?
पर्यावरण के क्षेत्र में पीएचडी होल्डर विद्वान कब ऐसे वास्तविक तथ्यों से टकरायेंगे? या फिर जीवन भर डींगे हांकते रहेंगे।

8) आखिरी बात ये कि एक Statistics इस पर भी बने कि आखिर पर्यावरण प्रदूषण में सबसे ज्यादा योगदान किसका है, गांव के उन 70% लोगों का या 30% शहरी निवासियों का?

Somewhere in a remote village of uttarakhand



 

~ A little story behind road cutting issue in Silthing Village, Uttarakhand ~

जब सिल्थिंग गांव के पास से रोड कटिंग होने वाली थी, तो गांव के कुछ लोग अड़ गये और कहा, नहीं चाहिए गांव के पास से रोड, हम पैसों के एवज में अपने खेतों का बलिदान नहीं दे सकते। हमारे खेत बीच में आ रहे हैं, आप एक किलोमीटर दूर से ही रोड कटिंग कर लीजिए। हमें नहीं चाहिए गांव के पास से रोड, एक किलोमीटर दूर ही सही, चलेगा। वैसे भी इतने सालों से बिना रोड के थे। अब तो वैसे भी रोड नजर के सामने है, घर से दिख तो रहा है, बहुत बड़ी बात है।
और फिर एक किलोमीटर दूर से रोड कटिंग हुई।
सिल्थिंग के गांव वालों के इस फैसले पर आसपास के गांवों के लोगों ने, खासकर पढ़े-लिखे तबके ने खूब मखौल उड़ाया कि बढ़िया घर तक रोड आ रही थी, ठीक-ठाक पैसे मिल रहे थे, ये गधे के गधे ही रहेंगे,इनका कुछ नहीं हो सकता।
मजाक बनाने वाले उन लोगों को शायद इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं है कि एक किसान (सीमित जमीन वाले छोटे किसान) के लिए उसका खेत कितना मायने रखता है। खेत उसके लिए जमीन का टुकड़ा भर नहीं होता, वो तो उसकी जिंदगी का हिस्सा होता है। खेत उसके आय का स्त्रोत तो होता ही है, जीने की वजह भी होता है। सोचिए कैसा हो अगर कोई आपके जीने की वजह छीन ले और कहे कि लो पैसे और दफा हो जाओ।




step farms, silthing village


Cutted road, Silthing Village


step farms, silthing village