Thursday, 22 May 2025

सदगति

लगभग 22 साल पहले की बात है। तब सड़कों का जाल इतना विस्तृत नहीं था। फ़ोरलेन सड़के ना के बराबर थी। अधिकतर सिंगल और डबल लेन सड़कें ही थी। परिवहन के साधन सीमित थे। पीएम ग्राम सड़क योजना भी शैशवावस्था में था। उस समय एक बार चाचा (रिश्तेदार) छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर कुछ काम से गए थे। वापसी में जब बस से लौट रहे थे तो बस ख़राब हो गई और उसे बनने में काफ़ी देर लगी। तब के नेशनल हाईवे NH-6 ( वर्तमान NH-53 ) में भी डबल लेन ही सड़क थी। गुजरात से कोलकाता को जोड़ने वाला यह हाईवे (तब NH-6) खूब दुर्घटना वाला हाईवे हुआ करता था, अपनी दुर्घटनाओं के लिए इतना कुख्यात था कि जगह-जगह दुर्घटना-जन्य क्षेत्र के बोर्ड लगे हुए थे। तब छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश से अलग होकर नया-नया राज्य बना था, राज्य की राजधानी रायपुर भी आकार ले रहा था। रायपुर से बसना (ब्लॉक) तक चाचा बस में आ रहे थे। सुबह से रायपुर से निकले थे लेकिन बस ख़राब होने की वजह से रात तक बसना पहुंचे। वहाँ बस स्टैंड में अपनी साइकिल रखी थी, उसी से गाँव तक उनको आना था। क्यूँकि गाँव भी वहाँ से लगभग 8 किलोमीटर था। तभी एक महिला जो बस में उनके साथ आई थी। पास की सीट में ही बैठी थी। उन्होंने चाचा से आकर निवेदन किया कि वे उन्हें घर तक कृपया छोड़ दें। रात हो चुकी थी। और उस महिला को भी एक अलग रूट में जगदीशपुर नाम की जगह लगभग 8 किलोमीटर जाना था। चाचा के सामने भी धर्मसंकट वाली स्तिथि थी। असल में उस महिला को उतनी दूर साइकिल में घर छोड़ने में समस्या नहीं थी। समस्या थी शुचिता की, एक सामान्य शिष्टाचार की। वो एक समय ऐसा था कि लोग अमूमन पराई महिलाओं को आँख उठाकर नहीं देखा करते थे, इतना धर्म इतनी नैतिकता लोगों के भीतर थी। यही समस्या चाचा के साथ भी थी। उस महिला ने अनुरोध किया कि चाचा उन्हें छोड़ दें क्योंकि उतनी रात को उस रूट में कोई गाड़ी मिलना संभव नहीं था। तब के समय में मोटरसाइकिल भी सीमित लोगों के पास हुआ करते, आवागमन के साधन भी सीमित ही होते थे। लंबी दूरी के लिए गिनी-चुनी बसें होती थी और छोटी दूरी के लिए जीप कमांडर आदि होते जो दिन के समय ही खचाखच हाउसफुल मोड में चलते थे। वह महिला मूल रूप से रायपुर की थी, यहाँ जगदीशपुर में किसी शासकीय पद पर थी, नई- नई नौकरी लगी थी और उन्हें यहाँ की बहुत जानकारी नहीं थी।

चाचा के सामने धर्मसंकट वाली स्थिति थी। यह भी था कि किसी पराई महिला को उन्होंने साइकिल में उनके घर तक छोड़ा है, यह किसी को पता भी चलता तो उनके चरित्र पर प्रश्नचिह्न ना खड़ा हो जाए यह भी शायद वे सोच रहे होंगे, तब के समय के लोग बड़ी आसानी से इतनी नैतिकता लेकर चल लेते थे। उस महिला ने फिर से अनुरोध किया कि भैया आप अगर छोड़ देते तो बड़ी मेहरबानी होती। आखिरकार चाचा ने उस महिला को अपनी साइकिल में उनके घर तक छोड़ दिया। और वहाँ से फिर रात को अपने गाँव आ गए और इस बात को कई साल तक गोपनीय रखा। कुछ सालों बाद वह महिला जो विभाग में अधिकारी बन चुकी थी, चाचा की खोजबीन करने लगी ताकि मिलकर शुक्रिया अदा कर सके। लेकिन तब फ़ोन आदि का जमाना नहीं था। चाचा ने भी संकोचवश बहुत अधिक बातचीत नहीं की थी। लेकिन उन दोनों को बस एक दूसरे का नाम याद था।

उस घटना के लगभग 20 साल बाद यानि अभी दो साल पहले चाचा का परिवार एक झूठे पुलिस केस (ST-SC एक्ट ) में बहुत बुरी तरीके से फँस गए। उनकी फाइल पुलिस के एक उच्चाधिकारी के पास थी। चाचा ने बहुत इधर-उधर हाथ पांव मारा लेकिन कहीं से कोई उम्मीद की किरण नहीं दिख रही थी। कोर्ट कचहरी आदि में ऐसे फंसे कि जमा पूंजी भी ख़त्म होती रही। जब कुछ समझ नहीं आता तो निराश होकर मंदिर भी जाया करते। फिर एक दिन उन्होंने उस पुलिस वाले के बारे में पता किया, उनके सरनेम को देखकर उन्हें याद आया कि इसी सरनेम कि तो वह महिला भी थी जिनको उन्होंने 20 साल पहले साइकिल में घर छोड़ा था। संयोगवश जिस दिन पुलिस अधिकारी के पास मिलने गए थे, उसी दिन वह महिला भी वहीं मिल गई। पता चला की महिला उसी अधिकारी की पत्नी हैं। चाचा ने अपना परिचय दिया उसके बाद तुरंत उस महिला ने देखते ही पाँव छू लिया और कहा कि भैया इतना कुछ हो गया, आपको पहले बताना चाहिए था। चाचा खामोश होकर मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद कर रहे थे। वह महिला ख़ुद आदिवासी थी फिर भी उन्होंने चाचा के पक्ष को समझा और सीधे अपने पतिदेव को कहा कि इनका मामला देखिए आप, तुरंत रफ़ा-दफ़ा होना चाहिए, अगर क़ानून ऐसे व्यक्ति को अपराधी बनाता है तो फिर मेरा इस पूरी व्यवस्था से भरोसा उठ जाएगा। वैसे भी वह केस झूठा था, किसी फिल्मी कहानी की तरह आखिरकार चाचा के परिवार को उस केस से मुक्ति मिली। चाचा आज भी साइकिल से उस महिला को घर छोड़ने वाली घटना को बताते हुए भावुक हो जाते हैं और कहते हैं कि मैंने आजतक जीवन में कभी किसी के साथ ग़लत नहीं किया तो मेरे साथ भी भगवान की कृपा बनी रही। इंसान को हर परिस्थिति में अपने कर्म हमेशा सही रखने चाहिए, कहीं ना कहीं अच्छा कर्म किसी ना किसी रूप में लौट के आपके पास आता ही है।

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