Thursday, 22 May 2025

जंगल में मोर नाचा किसने देखा -

एक परिचय के व्यक्ति रहे हैं। शादीशुदा हैं, बच्चे भी हैं। कुछ दिन पहले मिले तो बातें होनी लगी। फिर बताने लगे कि पत्नी को एक कॉलेज में फ़लाँ कोर्स के लिए भर्ती करा दिया है। फिर कहने लगे कि मैंने पत्नी जी को कह दिया कि कॉलेज के एक लड़के को सेट कर ले ( दोस्त बना ले ) वो असाइनमेंट और बाक़ी काम कर देगा। पत्नी भी इस पर सहमत है। सारा काम आसानी से हो रहा है। पतिदेव फिर यह भी कहने लगे कि यार क्या करें थोड़ा दुख तो होता है, अकेले में दुख मना लेता हूँ लेकिन ठीक है अपना काम हो जाता है। मुझे बहुत अधिक ध्यान नहीं देना पड़ता है, इससे बड़ा सुख और क्या चाहिए। फिर मुझसे फीडबैक भी लेने लगे तो मैंने भी कहा - हाँ, ये तो बहुत अच्छी व्यवस्था आप लोगों ने बनाई है, आप लोग के बीच अच्छी बांडिंग है तभी इतना अच्छा समन्वय करके आप लोग ऐसा कर पा रहे हैं। नहीं तो कई जगह पतिदेव लोग घिस-घिस के पत्नी के कॉलेज पढ़ाई का सारा काम करते हैं। आपने अपने लिए बढ़िया व्यवस्था की है और इस सच के साथ आपको जीना चाहिए, इसमें बहुत दुख मनाने की कोई बात नहीं है।

और वैसे भी हमारी सनातन परंपरा को भी देखें तो महाभारत में चौसर के खेल में युधिष्ठिर ने अपनी हार को छुपाने और जीतने की उम्मीद में द्रौपदी को दांव पर लगा दिया था। इंसानी जो भी करता है अपनी सहूलियत के लिए ही करता है भले उसमें थोड़ी तकलीफ़ होती है, युधिष्ठिर को भी हुई होगी जब वे द्रौपदी को हार गए और भरी सभा में अपमानित कर चीरहरण किया गया। यहाँ तो आप लोग गुप्त रूप से केवल दोस्ती की बात पर आम सहमति लेकर चल रहे हैं इतना तो कलयुग में जायज है।

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