काले जादू, टोने-टोटके को लेकर बहुत सी मान्यताएं चलती है, एक बड़ा तबका जिसने खुद इन सब चीजों को झेला हो, वह इन चीजों को दबे छिपे स्वीकार करता ही है, वहीं वैज्ञानिकता और तर्क के अनुगामी इन सब बातों को फिजूल मानते हुए सीधे नकारते हैं। यह भी एक सच है कि कालांतर में टोने-टोटके के नाम पर, सिर्फ शक के आधार पर बहुत सी महिलाओं के साथ मारपीट और दुर्व्यवहार होता आया है और इस कारण से इन मामलों के लिए कानून भी सख्त हैं।
मैंने बहुत से ऐसे परिवार या ऐसे लोग देखे हैं या आपने भी देखा ही होगा जो भले इस काले जादू को तर्क से काटते हुए दकियानूसी मानते हैं, लेकिन यही लोग अपने बच्चों की बुरी नजर से सुरक्षा के लिए काला टीका, काला धागा, ताबीज आदि का सहारा लेते हैं। यह भी देखने में आता है कि बचपन में बहुत से ऐसे बच्चे रहते हैं जो किसी के देख लेने, छू लेने भर से लंबे समय तक बीमार पड़ जाते हैं फिर लंबे समय तक कोई डाॅक्टर उन्हें ठीक नहीं कर पाता लेकिन एक झाड़ फूंक से तत्काल ठीक हो जाते हैं।
काले जादू की प्रामाणिकता को लेकर बहुत सी बातें चलती है। जिसमें सबसे पहला यह कहा जाता है कि काला जादू करने वाली महिलाएं या पुरुष दीया लेकर आधी रात को आमावस्या में खेतों में अकेले विचरण करने निकलते हैं। मेरे बहुत से विश्वस्त लोगों ने और मैंने खुद यह घटना देखी है, लेकिन अभी के लिए मैं इसे आंखों का भ्रम या फिर यह मानकर चल रहा हूं कि अंधेरे में निवृत होने के लिए दीये का सहारा लिया होगा। दूसरा एक कारण यह बताया जाता है कि ये आपसे ज्यादा देर तक आँख नहीं मिला पाते हैं, इसे भी मैंने साक्षात अनुभव किया है, लेकिन इसे भी हम यह मानकर चलते हैं कि अंतर्मुखी स्वभाव के होंगे इसलिए किसी से नजर नहीं मिला पाते होंगे। तीसरा जो एक बड़ा कारण देखने में आता है वो यह है कि ये लोग जब भी किसी को, खासकर छोटे बच्चे को एकटक देख लेते हैं, उनकी तारीफ कर लेते हैं या फिर उन्हें छूकर कुछ कह जाते हैं या किसी के द्वारा खाने का कुछ दिया जाता है, ऐसी स्थिति में वे बच्चे इतने लंबे समय तक बीमार पड़ते हैं कि खूब डाॅक्टरों का चक्कर लगाना पड़ता है, फिर किसी से झाड़ फूंक करवाने पर एकदम झटके में ठीक भी हो जाता है।
मैंने ये वाली समस्या इतनी ज्यादा देखी है, इतने लोगों को बीमार होते देखा है कि आजतक इसे किसी तर्क से काट नहीं पाया। इस बीच बहुत से ऐसे लोग मिलते हैं जो पुरजोर तरीके से वैज्ञानिक सोच की बात करते हुए इन सब चीजों का मखौल बनाते हैं, लेकिन यही लोग पूरे स्वाद के साथ विदेशों की पैराॅनार्मल एक्टिविटी आधारित फिल्में पूरे मन से स्वीकारते हुए देखते हैं, लेकिन काले जादू को सिरे से नकारते हैं। जिनके खुद के यहाँ बच्चे बीमार पड़ते हैं, ये खुद चोरी छिपे इस सच्चाई को स्वीकारते ही हैं कि कुछ लोग जबरदस्त तरीके से तंत्र विद्या का सहारा लेकर नजर लगाते हैं। मैं खुद इसका भयानक भुक्तभोगी रहा हूं लेकिन तर्क की सत्ता कायम रहे इस कारण से ऐसी चीजों का बखान करना कभी न्यायसंगत नहीं लगता है, इसलिए कभी करूंगा भी नहीं। लेकिन हमें इस चीज पर एक बार जरूर विचार करना चाहिए कि कुछ तो ऐसा होता है जो तर्क से परे होता है, जिसे आप तर्कों की कसौटी में कभी नहीं बाँध सकते हैं। दुनिया वैज्ञानिक तर्कों से आगे की चीज है।
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