देहुरी यानी खड़िया जनजाति के लोग कोल जनजाति और संथाली जनजाति की तुलना में कहीं अधिक विनम्र लोग मालूम हुए। संथाली समुदाय तो हर जगह ठीक-ठाक वायरल भी हुआ है, जनजातियों में आर्थिक सामाजिक रूप से सबसे अधिक मजबूत हैं, संख्याबल भी बाकी समुदायों से कहीं अधिक है, कला साहित्य गीत संगीत सब में आगे हैं, संथाली गानों में यूट्यूब में लाखों व्यू देखने को मिल जाएंगे। इनकी अपनी अलग किस्म की हठधर्मिता है जो बाकी और जनजातियों में देखने को नहीं मिली। संथालियों की अपनी एक भाषा है जिसे 'ओलचिकि' कहते हैं, ठीक इसी तरह कोल जनजाति की 'ओरांगचिति' नाम की अपनी भाषा है लेकिन इन सबसे अलग देहुरी(खड़िया) जनजाति की अपनी कोई भाषा नहीं है, ये जहाँ भी रहते हैं, उस स्थान विशेष की भाषा को अपना लेते हैं, और यह इस बात का प्रमाण है कि खड़िया जनजाति के लोग घुमन्तु सरीखे होते हैं, बदलते समय के साथ अब यह भी एक जगह स्थायी रूप से रहने लगे हैं, इसलिए इनके समुदाय में सर्वाधिक आर्थिक पिछड़ापन है, विशिष्टता के मामले में पीछे रह जाने की वजह से भी ये लोकमानस में वायरल नहीं हो पाते, कोई इन पर कहानी लेख लिखने या डाक्यूमेंट्री बनाने उतना नहीं आता है, खड़िया जनजाति संख्याबल में धीरे-धीरे कम होते जा रहे हैं। इन सब कारणों के बाद भी सबसे अधिक आत्मीयता इन्हीं के साथ महसूस होती है। एक चीज जो इन तीनों समुदायों में समान रूप से विद्यमान है वो यह कि ये तीनों अपने बच्चों को फुटबाल की तरह मारते हैं। खैर, मारपीट की यह परंपरा तो हमारे भारत के लगभग सभी समाजों में है।
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Women from Kol Tribe |
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Santhali tribe women |
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Santhali tribe boy |
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planning |
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