Monday, 16 March 2020

-- बच्चे हिंसा करना माता-पिता से ही सीखते हैं --

आज सुबह एक लड़ाई देखने को मिली। दोनों पक्षों ने‌ पहले खूब जमकर बहस की, चूंकि महिलाएँ थी वह भी उम्र 50 के करीब इसलिए उम्मीद नहीं थी कि बात मारपीट तक चली जाएगी। तो हुआ यूं कि एक बंगाली आंटी जो पचास पार की होंगी, उन्हें उनकी प्रतिद्वंद्वी बिहारी आंटी जो चालीस पार की होंगी उन्होंने जमकर कूट दिया, कुहनी से पीठ पर लगातार इतना मार दिया कि बंगाली आंटी हाँफते हुए जमीन पर लेट गईं, मारपीट के दौरान जब बिहारी आंटी उनकी धुलाई कर रही थी, तो उनका लगभग 10 साल का बेटा उन्हें रोकने की कोशिश कर रहा था, लेकिन माँ कुटाई के मोड में थी, कुछ देर बाद जब दोनों आंटी थक गये तो अपने-अपने घर को चले गये। सब कुछ हम देहरी से देख रहे थे, सही गलत क्या है वही जानें? चलो ये तो हुई मारपीट की सामान्य सी बात जो आए दिन भारत में कहीं न कहीं देखने को‌ मिल ही जाती है।

अब हुआ यूं कि आधे घंटे बाद हम किसी काम से बाहर निकले थे, वापस घर की ओर लौटते वक्त जब हम उस बिहारी आंटी के घर से गुजर रहे थे तो मैं उस बच्चे को देखकर एक पल के लिए हैरान रह गया। वो अपने घर के आँगन में ही खेल रहा था और कुहनी को हवा में ही मारने जैसा अभ्यास कर रहा था, उसका ये एक्शन ठीक वैसा ही था जैसा उसकी माताजी का मारपीट करते वक्त था। ध्यान रहे कि ये वही बच्चा था जिसने कुछ देर पहले अपनी उसी माँ को हिंसा करने से रोकने का असफल प्रयास किया था। बच्चों का सबसे बड़ा स्कूल उनका अपना घर और आसपास का परिवेश होता है, वहाँ बच्चे जैसा देखते हैं, जिस तरीके से देखते हैं, वैसा ही सीखते हैं।


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