योगा और मेडिटेशन, सेरोटोनिन और ओक्सीटोसिन
योगा और मेडिटेशन यदि कारगर न होते तो अब तक विलुप्त हो गए होते, और यदि कारगर होते तो अब तक चहुं ओर शान्ति और आरोग्य होता। पिछला एक दशक खासतौर से विस्मयकारी रहा है, इस दौरान योग और रोग दोनों साथ-साथ फले-फूले हैं, जुगलबंदी करते नज़र आए हैं, लेकिन यह सं-योग भी हो सकता है, सह-योग या अभि-योग नहीं। एक धार्मिक बात करना चाहता हूँ। सूक्ष्मजीवीयों के अलावा जीवितों के दो मुख्य समुदाय होते हैं – जन्तु और वनस्पति। वनस्पतियों का धर्म होता है जीवन भर एक ही स्थान पर बैठे रहना और जंतुओं का (लगभग) लगातार ही इधर-उधर मूव करते रहना। ध्यान एक ऐसी आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिसमें मनुष्य वनस्पतियों का धर्म धारण कर लेता है और इस दौरान उसका मन भी वनस्पति हो जाता है – शांत और निश्छल।
सेरोटोनिन एक न्यूरोट्रांसमीटर है जिसके कई काम है, एक अहम है – सेंस ऑफ वेलबीइंग एंड रिवार्ड। जब यह न्यूरोट्रांसमीटर एक्टिव होता है बहुत अच्छा महसूस होता है, पुरुसकृत हुआ सा महसूस होता है। यह अनुभूति सिर्फ जंतुओं में होती है, यह न्यूरोट्रांसमीटर मूव करने से एक्टिव होता है और बैठने से शांत हो जाता है – वनस्पति हो जाता है। इसीलिए मेडिटेशन इतना बोरिंग होता है। मेडिटेशन की बोरियत योगा, जिम या खेलकूद से दूर होती है क्योंकि इनमें शरीर मूव होता है, सेरोटोनिन के एक्टिव होने की संभावना बनती है। लेकिन सेरोटोनिन अकेले-अकेले कुछ ही समय मजा देता है बाद में यह मज़ा देना बंद कर देता है। और एक समय बाद योगा, जिम और खेलकूद भी बोरिंग हो जाते हैं।
अगर मजे की लंबी पारी चाहिए तो ओक्सीटोसिन को समझना होगा। ओक्सीटोसिन प्रोडक्टिविटी का हारमोन है, गिविंग का हारमोन है, कंपेशन का हारमोन है। यह इतना पावरफुल होता है कि इसका इंजेक्शन लगते ही गाय-भेसें दूध देने लगती हैं। स्त्रियॉं में भी जिस दिन डिलेवरी होती है यह हारमोन अचानक से बढ़ जाता है और स्तनों से दूध निकलने लगता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यह हारमोन सिर्फ मादाओं में होता है, यह सभी में होता हैं। जब यह रिलीज होता है तो प्रोडक्टिविटी बढ़ती है, गिविंग बढ़ता है, कंपेशन बढ़ता है। और ऐसा होने से अमीरी महसूस होती है, अभय महसूस होत है; भय और लालच विलुप्त हो जाते हैं, स्थिरता और आनंद महसूस होता है, टाइमलेसनेस महसूस होता है।
यदि सेरोटोनिन और ओक्सीटोसिन ठीक हों तो फिर जिंदगी का स्तर कुछ और ही होता है। सेरोटोनिन एक्टिव होता है फिजिकली एक्टिव होने से और ओक्सीटोसिन एक्टिव होता है प्रोडक्टिव होने से। सेक्स में यह दोनों चीजें हो जाती हैं – फिजिकल एक्टिविटी भी होती है और (रि)प्रोडक्टिविटी भी लेकिन उसमें आप हमेशा नहीं जुटे रह सकते हैं। इसका सर्वोत्तम उपाय है प्रोडक्टिव फिजिकल लेबर यानिकी शरीर-श्रम, इसे वर्क-आउट भी कहते हैं, लेकिन जिस वर्क-आउट से कोई वर्क होकर बाहर न निकल रहा हो वह फर्जी है, वर्क-आउट है ही नहीं। इसीलिए योगा वर्क-आउट नहीं है, जिम वर्क-आउट नहीं है।
अब समस्या यह है कि हमने श्रम को शहर से और संस्कार से बाहर ही कर दिया है, एक शहरी कैसे श्रम करे? एक तो श्रम उपलब्ध नहीं है, सारे श्रम पर मशीनों ने कब्जा कर लिया है और दूसरा श्रम करना अशोभनीय है, यह कपड़ों को और इमेज को मलिन कर सकता है। मैं लोगों को अक्सर अपने और पड़ोसियों के घर झाड़ू-पौंछा करने का आइडिया देता रहता हूँ, लेकिन अब कितने लोगों की बॉडी इस लायक बची है कि वे उखडु हो सकें? एक और विकल्प है सेरोटोनिन और ओक्सीटोसिन के इंजेक्शन लिए जाएँ, लेकिन कमबख्त ऊपर से ली हुई चीजों वैसा काम नहीं करती हैं जैसी अंदर से निकली हुई, विटामिन डी और बी-12 भी।
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