Wednesday, 17 April 2019

मुनस्मृति सारांश

प्रथम अध्याय में सृष्टि की उत्पत्ति और प्रलय की विभिन्न अवस्थाओं का, मनुस्मृति के आविर्भाव तथा उसकी परम्परा के प्रवर्तन का, इसके पढ़ने के अधिकारी तथा फल के वर्णन के उपरान्त अध्याय के अन्त में ग्रन्थ की विषयसूची का उल्लेख हुआ है।

द्वितीय अध्याय में आर्यों के निवास-प्रदेश आर्यावर्त की उत्तर, दक्षिण, पूर्व तथा पश्चिम सीमाओं का, वहां की जलवायु का, वहां के निवासियों के उच्च चरित्र का, व्यक्ति के सर्वतोमुखी विकास के लिए अपनाये जाने वाले सोलह संस्कारों का, ज्ञान के महत्त्व का तथा विद्याध्ययन काल में ब्रह्मचारी के लिए गुरुकुल में आचरणीय एवं पालनीय नियमों का उल्लेख हुआ है।

तृतीय अध्याय में गृहस्थ आश्रम में प्रवेश के अन्तर्गत आठ प्रकार के विवाहों का, कन्या की पात्रता का, श्राद्ध के लिए निमन्त्रित किये जाने वाले ब्राह्मण की योग्यता का तथा श्राद्ध में परोसे जाने वाले द्रव्यों की उपयुक्तता-अनुपयुक्तता का वर्णन हुआ है।

चतुर्थ अध्याय में गृहस्थ के लिए अपनायी जाने योग्य आदर्श आचार-संहिता का, निषिद्ध कर्मों से बचने का तथा चरित्र की रक्षा के प्रति सदैव सतर्क रहने का वर्णन हुआ है। इस अध्याय में गृहस्थ को जितेन्द्रिय होने के साथ-साथ दान देने में अत्यन्त उदार होने का सुझाव भी दिया गया है।

पञ्चम अध्याय में अभक्ष्य पदार्थों में मांस को प्रमुख मानते हुए उसके सेवन में दोषों का, वेदविहित हिंसा को अहिंसा मानने का, ज्ञान, तप, अग्नि आदि बारह शुद्धिकारक पदार्थों का, अर्थशुद्धि—ईमानदारी से धन कमाने—को ही सबसे बड़ी शुद्धि मानने का, देह के बारह मलों का तथा स्त्री-पुरुष के सम्बन्धों के आदर्श रूप का वर्णन हुआ है।

षष्ठ अध्याय में वानप्रस्थ के लिए आचरणीय नियमों—मद्य-मांस आदि का सेवन न करना, संग्रह से बचना, कष्टों को प्रसन्नतापूर्वक सहना, प्राणी मात्र के प्रति मैत्री भाव रखना, सबको अभयदान देना, निन्दा-स्तुति से बंचना, आलस्य का परित्याग, सन्ध्या-वन्दनादि के प्रति सतर्क रहना तथा मोक्ष-प्राप्ति के प्रति सचेष्ट रहने का तथा संन्यास आश्रम की महत्ता का वर्णन हुआ है।

सप्तम अध्याय में राजा के लिए आचरणीय धर्मों का, दण्ड की महत्ता का, मन्त्रियों से परामर्श करने की रीति का, दूतों की ईमानदारी की परख का, दुर्ग-रचना-पद्धति का, राज्य की उपयुक्त व्यवस्था की विधि का, कर-निर्धारण की प्रणाली को न्यायसंगत बनाने का, प्रजा की सुख-समृद्धि के प्रति सतर्क एवं सचेष्ट रहने के अतिरिक्त राजनीति—साम, दाम, भेद तथा दण्ड—के प्रयोग की व्यावहारिकता का वर्णन हुआ है।

अष्टम अध्याय में राजा को प्रजा के विवादों को निपटाने के लिए समुचित विधि को अपनाने का, अपराधियों को दण्ड देने का, धर्मविरुद्ध साक्ष्य देने वाले तथा मिथ्याव्यवहार करने वालों को अनुशासित करने का, दण्ड देते समय व्यक्ति के स्तर तथा अपराध की मात्रा पर विचार करने का और सीमा तथा कोश आदि की सुरक्षा के प्रति सावधान रहने का परामर्श दिया है।

नवम अध्याय में स्त्रियों और पुरुषों के एक-दूसरे के प्रति कर्तव्यों एवं अधिकारों का, आपत्‌काल में स्त्रियों को नियोग द्वारा सन्तान उत्पन्न करने के अधिकार का, पिता की सम्पत्ति के उत्तराधिकारी का, पुत्र के अभाव में उत्तराधिकारी बनने वालों में वरीयता का, बारह प्रकार के पुत्रों में उत्तरोत्तर वरीयता का तथा दूसरों के अधिकार का हरण करने वालों को दण्डित करने का वर्णन हुआ है।

दशम अध्याय में मानव जाति को चार वर्णों में विभक्त करके चारों वर्णों के कर्तव्यों का, भिन्न वर्ण के पुरुष द्वारा भिन्न वर्ण की स्त्री से उत्पन्न सन्तान (वर्णसंकर) की सामाजिक स्थिति का, चारों वर्णों के आपद्धर्मों का तथा आपत्‌काल में चारों वर्णों के लोगों द्वारा नियत धर्म के पालन की प्रशंसा का वर्णन किया गया है।

एकादश अध्याय में जाने-अनजाने विहित कर्मों का त्याग और निषिद्ध कर्मों का अनुष्ठान करने पर प्रायश्चित्तों का, मांस आदि अभक्ष्य-भक्षण, मदिरा आदि सेवन तथा अगम्यागमन प्रभृति पातकों, गोवध, ब्रह्महत्या प्रभृति और महापातकों के करने पर उनके दण्डस्वरूप प्राजापत्य, अतिकृच्छ्र तथा चान्द्रायण प्रभृति विविध प्रायश्चित्तों का, वेदाभ्यास, तप और ज्ञान की महत्ता आदि का वर्णन हुआ है।

द्वादश अध्याय में शरीरोत्पत्ति का, स्वर्गलाभ और नरक-प्राप्ति कराने वाले कर्मों का, अभ्युदय और निःश्रेयस प्राप्त करने वाले कर्मों का, तप और विद्या के फल का, शास्त्रों में अप्राप्य का, विद्वान्‌ ब्राह्मण द्वारा निर्णय कराने का, ब्रह्मवेत्ता की पहचान का तथा परमपद की प्राप्ति के उपाय तथा सर्वत्र समदृष्टि का वर्णन हुआ है।

Monday, 15 April 2019

~ सम्बलपुर की एक शाम ~

बस में बैठे उस व्यक्ति से मैंने पूछा - क्या रेल्वे स्टेशन तक जाने के लिए अभी आॅटो मिल जाएगी?
उसने कहा - नहीं यहाँ से शेयरिंग में तो नहीं मिलेगा आपको जाना है तो ज्यादा पैसे देकर आॅटो बुक करना पड़ेगा। हां एक बात और, आपको लिफ्ट जरूर मिल जाएगा इतनी गारंटी है।
उसकी लिफ्ट वाली बात को सच मानते हुए मैं तीन किलोमीटर के उस रास्ते में पैदल चलता गया, 6 घंटे के बस के सफर के बाद भूख भी लग रही थी और थकान भी। शहर को देखता गया, रास्तों पर चलता गया, एक पुराना शहर, छोटी-छोटी गलियां, आंगन पर बैठे खुशमिजाज लोग, ठीक कुछ घर, फिर कुछ दुकानें, फिर कोई एक बड़ा सा घर। शायद इस पुराने शहर को किसी ने ज्यादा नहीं छेड़ा है, बड़े लम्बे अरसे से लोगों को वैसा ही रहने ही दिया है, किसी पुराने सांस्कृतिक नगर से गुजरने पर ऐसा ही अहसास होता है, निस्संदेह इस अहसास के भीतर अपनी एक विसंगति छुपी हुई है, दारूणता भी, जो लंबे समय से इस संस्कृति का हिस्सा रही है।
खैर...
ठीक ऐसा पहले अल्मोड़ा की गलियों में महसूस हुआ था, और उससे भी कहीं ज्यादा इलाहाबाद (वर्तमान नाम - प्रयाग) की उन संकरी गलियों में। सचमुच कुछ शहरों की अपनी एक ऐसी पहचान होती है जो विकास रूपी मानकों यानि सड़कों, वाहनों, ईमारतों और चकाचौंध वाली जीवनशैली से उतना समझौता नहीं कर पाती, वह बार-बार अपनी सांस्कृतिक पहचान को हमेशा सामने लाकर खड़ा कर देती है।

शहर को देखते हुए यह ध्यान ही नहीं रहा कि लिफ्ट भी लिया जा सकता था, कितने दुपहिए वाहन तो गुजर रहे थे, मैप पर नजर डालने से पता चला कि एक किलोमीटर से अधिक की चलाई हो चुकी है, मैंने अभी तक लिफ्ट के लिए किसी को पीछे मुड़कर देखा भी नहीं है क्योंकि उतनी भी थकान और भूख नहीं है कि तीन किलोमीटर पैदल न चल सकूं। ये विचार मन में जैसे ही आया उसके ठीक कुछ क्षण पश्चात् एक मोपेड आकर रूकी, पीछे कुछ सामान बंधा हुआ था। मोपेड पर बैठा गर्मी और सर्दी को बराबर झेलता आया एक हंसमुख सा चेहरा, वास्तव में संघर्ष को परिभाषित करता हुआ उसका चौड़ा स्मृति पटल, आँखों में चश्मा, साधारण से कपड़े, तकरीबन चालीस की उमर और मोपेड पर ग्रिल में बंधी एक‌ पोटली; कोई छोटे से किराने की दुकान लगाने वाला व्यापारी सा लगा मुझे वो।
चलो बैठो, कहाँ जाना है - उसने कहा।
रेल्वे स्टेशन जा रहा हूं - मैंने उत्तर दिया।
चलो बैठो। और मैं जैसे-तैसे उसके सामान के बीच जगह बनाकर उसकी मोपेड में बैठ गया।
अच्छा कितने बजे ट्रेन है,
रात के बारह बजे - मैंने कहा।
बहुत टाइम है अभी, ठीक है चलो फिर रास्ते में एक मंदिर पड़ेगा, दो मिनट माथा टेकूंगा, आपको भी घुमा लेता हूं, देख लेना आप भी, सम्बलपुर का बहुत अच्छा मंदिर है, जो भी इधर से गुजरता है, इस वैष्णो देवी मंदिर में जरूर आता है। मंदिर दर्शन करके फिर रेल्वे स्टेशन चले जाएँगे। ठीक है ना?
अरे नहीं, आप तकलीफ मत कीजिए मैं चला जाऊँगा, मुझे आदत है, पैदल चलने की। जब तक मैं ये बात कह रहा था, उसकी मोपेड वैष्णो देवी मंदिर के द्वार पर पहुंच चुकी थी। हमने मंदिर दर्शन किया, कुछ सेकेंड के लिए उसके हावभाव को देखते हुए आश्चर्य भी हुआ, लेकिन उतना नहीं हुआ क्योंकि इससे पहले न जाने कितने अनजान मुझे मिले थे जो अचानक मिल जाते मदद करते और निकल जाते, मुझे लगता है उनके लिए ऐसे मदद कर देना एक सामान्य सी बात होती है। तो मैं भी इसे एक सामान्य सी घटना मान कर पूरे मन से मंदिर दर्शन करने लगा। वैष्णो देवी के इस छोटे से मंदिर को देखकर अनायास ही जम्मू का मां वैष्णो देवी मंदिर याद आ गया, पूरे चौदह किलोमीटर की चढ़ाई थी, फरवरी के महीने में तो गये थे, रात के दस बजे जो चढ़ाई शुरू की थी, सुबह 4 बजे माता के दर्शन किए थे, कितना सुखद था शरीर को कोण बनाते हुए झुकाकर गुफा के बीच से होकर जाना, एक डिग्री ठंड में सुन्न हो चुके नंगे पाँवों से चलते हुए माता रूपी उन छोटे पत्थरों के दर्शन करना, पहाड़ों में तो ऊंचाईयों में ऐसे प्रतीक रूप में ही मंदिर होते हैं। वहां गये हुए पाँच साल से भी अधिक हो गये। खैर मैं अब पहाड़ों के ख्याल से वापस लौटता हूं।
मैंने उस व्यापारी भाई को कहा कि आप वैष्णो देवी गये हैं, जम्मू में जो है।
उसने कहा - मैं तो भाईसाब हर साल जाता हूं, पूरा हमारा ग्रुप जाता है, बहुत से परिवार मिल कर जाते हैं। सबको‌ लेकर मैं जाता हूं, और ये जो मंदिर है यहाँ शाम को‌ एक बार जरूर आता हूं।
अच्छा सुनिए मैं चलता हूं, स्टेशन पास में ही है, मैं चला‌ जाऊँगा - गूगल मैप पर कुछ चार सौ मीटर की दूरी देखने के बाद मैंने उससे कहा।
उसने कहा - अरे नहीं। मेरा तो रोज का रास्ता है, असल में ये जो पोटली का सामान है, ये मुझे रास्ते में छोड़ना था, इसलिए देरी हो गई नहीं तो मैं आपको बहुत पहले ही मिल जाता, आपको इतना एक‌ किलोमीटर भी नहीं चलना पड़ता, आपने जहाँ से पैदल चलना शुरू किया था, मैं वहीं आपको मिल जाता।
अच्छा, आपका उधर स्टेशन में कुछ काम है क्या, अगर नहीं तो रहने दीजिए,‌ क्यों तकलीफ करते हैं, मैं चला जाऊँगा।
उसने कहा - नहीं आप बैठिए मैं छोड़ देता हूं।
सम्बलपुर रेल्वे स्टेशन सामने था‌।
अच्छा ठीक है इधर ये एक बढ़िया रेस्टोरेंट है, अच्छा खाना मिलता है, उधर स्टेशन के अंदर भी फूड कोर्ट है, वहाँ भी अच्छा खाना मिलता है, खा लीजिएगा‌ - ऐसा कहते हुए वह वापस चला गया।
उस वक्त मेरे मुंह से सिवाय एक शुक्रिया के अलावा और कुछ भी नहीं निकल पाया।

इस शहर में यह मैं पहली बार आया हूं, देखने के नाम पर सिर्फ एक मंदिर और दूर गाँव के किनारे बना एक सुंदर सा रेल्वे स्टेशन ही देख पाया हूं, शायद यह भारत का एकलौता ऐसा रेल्वे स्टेशन होगा जहाँ स्टेशन के अंदर भी छोटे-छोटे गार्डन बने हुए हैं।
हां स्टेशन तक आते आते थोड़ा ही सही इस शहर का मिजाज भी देख लिया, कि कैसे अपनी सांस्कृतिक विरासत के बल‌ पर एक शहर अपने ही राज्य की राजधानी तक को अलग होने की चुनौती देने से भी नहीं घबराता।

सम्बलपुर की इस मजबूत सांस्कृतिक विरासत को स्मृतियों में कैद करने के पश्चात् अपनी यात्रा के पुराने अनुभवों को मैं याद करते हुए यह सोच रहा था कि आखिरी बार कब मुझे ऐसे जिंदादिल लोग मिले थे। फिर मैंने स्टेशन की साफ सफाई और खूबसूरती को देखते हुए खुद से कहा - चलो अब कुछ खा लिया जाए, उसने चाहा तो ऐसे लोग मिलते रहेंगे।

वैष्णो देवी मंदिर, संबलपुर

संबलपुर रेल्वे जंक्शन

संबलपुर रेल्वे स्टेशन


फूड प्लाजा

प्लेटफाॅर्म, संबलपुर जंक्शन

Wednesday, 10 April 2019

- हमें देखना होगा, समझना होगा अपनी क्रूरताओं को -

हमें देखना होगा, समझना होगा कि हम अपने आसपास के लोगों से कैसा बर्ताव करते हैं।
हमें देखना होगा, समझना होगा एक सफाईकर्मी और उसके काम को भी, और यह भी कि हम उससे किस अंदाज में बात कर रहे होते हैं, अगर हम उसे हेय समझते हैं तो इसकी वजह उसका ठीक से सफाई नहीं कर पाना होता है या फिर इसलिए कि Hierarchy में वो हमसे नीचे है, इसलिए तुच्छ है‌। हमें यह फर्क करके देखना होगा।

हमें देखना होगा, समझना होगा, एक आॅटोचालक/रिक्शाचालक को भी जो हमें अपनी सुविधाएँ देता है, और जब वो हमारी जरूरत बनता है तो हम उसे बुलाते हैं तब हमारे द्वारा उसे "ऐ आॅटो/रिक्शा" कहना, इस टोन में शोषण का भाव रहता है या नहीं।

हमें देखना होगा, समझना होगा बाजार में सब्जी बेचने वाले कोंचिए को भी कि उसे हम क्या समझते हैं, किस तरीके से बात करते हैं और वही सामान अगर किसी बड़े माॅल में खरीदने जाते हैं तो हममें किस प्रकार के भाव उमड़ते हैं, इसकी पड़ताल करनी होगी।

हमें देखना होगा, समझना होगा रोडसाइड में काम कर रहे मैकेनिक लोगों को भी जो हमारी शोषण वाली मानसिकता से दो चार होते हैं, और उनके साथ ही कार के एक बड़े शोरूम में ड्रेस पहने हुए कर्मचारियों को भी जिनके सामने हम थोड़ी सी कम गुंडई दिखा पाते हैं। हमें यह फर्क समझना होगा।

हमें देखना होगा, समझना होगा एक भोजनालय या रेस्तराँ में काम करने वाले श्रमिकों को भी जो हमें खाना देकर हमारी भूख मिटाते हैं। जब इन्हें हम पानी मांगने या टेबल की सफाई करने के वास्ते बुलाते हैं तो हमें इसमें यह देखना होगा कि एक सामान्य से भोजनालय और एक बड़े एसी रेस्तराँ में, वहाँ कार्यरत लोगों के प्रति हमारे बर्ताव में कोई अंतर दिखाई पड़ता है या नहीं।

हमें देखना होगा, समझना होगा, एक बस कंडक्टर को भी जो अपनी पूरी दंबगाई के साथ सवारी लादता है, लेकिन तब यहाँ हम‌ खामोश रहते हैं, वह क्षण प्रतिक्षण हमारी मानसिकता को ललकार रहा होता है, लेकिन यहाँ हम कुछ नहीं कह पाते हैं, क्योंकि वह हमसे शोषित होने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं दिखाई पड़ता। इसलिए प्रायः हम ऐसे लोगों पर शाब्दिक हमला करने से परहेज करते हैं।

हमें देखना होगा, समझना होगा, हमारे आसपास मौजूद श्रम के उन सभी आयामों को, जिनका हम आए दिन तिरस्कार कर बहुत बेहतर महसूस कर रहे होते हैं।

हमें देखना होगा, समझना होगा यह भी कि शोषण सिर्फ कोई घोषित नेता या चयनित अधिकारी कर्मचारी ही नहीं करता है। हजारों वर्षों से चली आ रही शोषण की परंपरा जो हमें विरासत में मिलती है, इसका निर्वहन हम सब अपनी अपनी ताकत और जरूरत के हिसाब से बराबर करते हैं, पूरी क्रूरता के साथ करते हैं और ऐसा करने के लिए यह कहीं से भी जरूरी नहीं होता कि हम कोई बड़े नेता, व्यापारी या अधिकारी हों। हम खुद को राजा जैसा महसूस कराने के लिए अपने नीचे कुचलने के लिए चंद लोग खोज ही लेते हैं, और यह भूख हमारे भीतर एक शोषक को, सामंत को हमेशा जिंदा रखती है।

Sunday, 7 April 2019

On Upsc results 2019

#UPSC
अगर दुर्भाग्यवश मेरी संतान ऐसी किसी प्रतियोगिता का हिस्सा बन शीर्ष स्थान को प्राप्त कर भी लेता/लेती तो मैं एक माँ होने के नाते उसे कुछ दिवसीय अज्ञातवास पर जाने को कहती। भले वह सबके आंखों की किरकिरी बन खुद एक सामंत बन जाने के कगार पर क्यों न खड़ा हो लेकिन मेरी दृष्टि में वह मध्यमवर्ग में हो रही लोलुपताओं की ऐसी हाइब्रिड पैदावार बन चुका है, जिसने सामंती दंभ के उच्चतम‌ स्तर को प्राप्त किया है, और इसलिए मुझे ऐसी उपलब्धियों की उपादेयता शून्य प्रतीत होती है।