कुछ दिन पहले ये दीदी मेरे सामने से गुजरी, इस धुंधली तस्वीर को आपके सामने अपलोड करने के लिए माफी चाहता हूं, लेकिन मुझे ये जरूरी लगा सो कर रहा हूं। तो जब वो दीदी मेरे सामने से गुजरीं तो मेरे हाथ में चिप्स का पैकेट था, उन्होंने मुझे देखते ही चिप्स के पैकेट की ओर ईशारा किया, अपने हाथों से और चेहरे के हावभाव से बार-बार ईशारा किया, आप चाहें तो सुविधा के लिहाज से इन लक्षणों के आधार पर उन्हें पागल/मेंटल कह सकते हैं। जब मैं उनको चिप्स देने के लिए हाथ बढ़ाने जैसा किया, वो चिप्स को पैकेट को अपने साथ ले गई और तेजी से भाग गई। एक पल के लिए कुछ समझ नहीं आया क्योंकि मुझे वो हावभाव से कहीं से भी पागल जैसी तो नहीं लगी। सच कहूं मुझे तो पहली नजर में दया, करूणा, हताशा, उपेक्षा, विवशता आदि भाव दिखाई दिए।
मैंने फिर अपने स्थानीय साथियों से उस महिला के बारे में पूछा, उन्होंने बताया कि ये लड़की पागल है, पास के गाँव में रहती है, अभी साल भर पहले तो इसकी शादी भी हुई है, लड़का भी सीधा साधा हुआ, अभी यहीं संविदा में काम करता है, ले देकर आठ-दस हजार रूपया महीना कमाता है, साथ ही बाजा बजाने का काम भी करता है, अब वो कहां से इलाज के पैसे लाए, वो भी परेशान सा रहता है। और सबसे बड़े कमीने तो इसके दो बड़े भाई हैं, एक तो एसडीएम स्तर का अधिकारी है और जो दूसरा है वो भी ठीक-ठाक सरकारी नौकरी में है, दोनों देहरादून या शायद हल्द्वानी में जाकर बस गये हैं, और आगे सुनिए उन्होंने आज तक अपने माता पिता और बहन को एक रूपये की आर्थिक सहायता नहीं की है बल। और तो और पिछले दशक भर से उन्होंने मुनस्यारी में कदम नहीं रखा हैं, अब वो किस मुंह से कदम रखेंगे।
दूसरे स्थानीय साथी ने बीच में बात काटते हुए कहा - यार! ये लड़की अभी एक डेढ़ महीने बहुत सही थी, बीच-बीच में फिर ऐसी हो जाती है, घूमते रहती है, किसी से भी मांगकर खा लेती है। इलाज के पैसे नहीं हैं वरना ये कब का ठीक हो जाती, इसके भाई लोग थोड़ी सी मदद कर देते तो इसका इलाज हो जाता, लेकिन वे लोग तो अपना नाम, अपनी प्रतिष्ठा देखने वाले हुए, इसलिए यहाँ तो आते ही नहीं। वे सोच रहे होंगे कि इसको लेकर जाएंगे तो हमारी बदनामी होगी, हमारी औकात कम हो जाएगी फिर। वे दोनों भाई यहीं इसी विवेकानंद विद्या मंदिर से पढ़ के ऊपर उठे हैं लेकिन अब तो उनके पांव जमीन में नहीं है, क्या कहा जाए।
मैंने फिर पूछा कि इनकी उम्र क्या होगी अभी और इनके साथ ये स्थिति कैसे निर्मित हुई तो साथियों ने बताया-
अभी तो 32-35 साल की होंगी। यार ये लड़की इंटर के दिनों में बहुत ज्यादा होनहार थीं, पढ़ाई से लेकर खेलकूद सब में अव्वल नंबर। लेकिन फिर पता नहीं 12th पास करने के बाद या शायद ग्रेजुएशन के दौरान क्या जो ऐसा हुआ, थोड़ी पगली सी हो गई। कुछ गलत हुआ होगा, हुई होगी कोई घटना। यार पहाड़ के लोगों का यही तो हुआ, कुछ अप्रत्याशित सा हो भी जाता है तो मन में लेकर वर्षों तक बैठे रहते हैं, किसी को बताते भी तो नहीं हैं, और धीरे-धीरे पागल से हो जाते हैं, गाँवों में इधर-उधर भटकते रहते हैं। कितने ऐसे लोग हैं यार भाई, हर गाँव में आपको एक दो ऐसे लोग मिल ही जाएंगे।
मेरे साथियों की बात मुझे शत प्रतिशत सही लगी। क्योंकि मैंने खुद बहुत से ऐसे लोगों को देखा है, उनसे बात की है, अधिकतर लड़के भी ऐसे हैं जो थोड़े मेंटल से हैं, मेंटल क्या मैं तो उन्हें ऐसा नहीं मानता, आपकी समझ और सुविधा के लिए ऐसा लिखना जो पड़ रहा है। तो ऐसे लोगों को देखकर यही लगता है कि ये तो बहुत अच्छी स्थिति में है, ये तो बस कुछ महीनों के इलाज से ठीक हो जाएंगे। पूरे भरोसे से कहता हूं, वे ठीक हो जाएंगे। इतने भरोसे से इसलिए भी कह रहा हूं क्योंकि मैंने खुद अपने परिवार में ऐसा होते देखा है।
कुछ वर्ष पहले की बात है, मेरी मां घर में अकेली पड़ गई, यानि कुछ महीनों के लिए ऐसी स्थिति निर्मित हो गई कि सब अपने काम के सिलसिले में बाहर। मां लगभग एक डेढ़ महीने घर में अकेली रहीं। मुझे तो इस पूरी स्थिति के बारे में पता ही नहीं चलने दिया गया। तो हुआ यूं कि ऐसे महीनों घर में अकेले रह के मां को psychiatric समस्या आ गई। रोने लगती, बाइक की आवाज तक से डर जाती, रात रात भर बुरे सपने और नींद का नाम नहीं। फिर दवाईयों का सिलसिला चला, उससे तो कुछ खास हुआ नहीं, फिर जब घर में थोड़ी चहल-पहल हुई तो फिर धीरे-धीरे मैंने माता जी के हावभाव में थोड़ा बदलाव देखा, बहुत छोटे-छोटे बदलाव जो शायद मैं ही देख पा रहा था, मैंने सोचा कि सबसे असली दवाई तो यही है फिर हमने इस बीच माताजी को अपने माइके भेज दिया। वहां वो कुछ दिन रहकर आई, जब वो लौटकर आईं तो आप यकीन नहीं करेंगे वो पूरी तरह से ठीक हो चुकी थीं।
मुझे लगता है कि मेरी माता के ठीक होने में दवाईयों का योगदान तो है ही साथ ही हमारे अपनत्व का भी बहुत बड़ा योगदान है, दोनों चीजें बराबर चलती रहीं इसलिए वो बहुत जल्द ठीक हो गईं।
इन पहाड़ी गाँवों के उन सभी लोगों को भी इन दोनों प्रकार के दवाइयों की जरूरत है, अगर ऐसा हुआ तो वे बहुत जल्द ही ठीक हो जाएंगे, और ये दीदी भी पूरी तरह से ठीक हो जाएंगी जिन्होंने राह चलते मुझसे चिप्स का पैकेट मांगा था।