Friday, 12 May 2017

~ राहुल ऊर्फ शिकारी ~

                                 राहुल अभी सात साल के हैं। दूसरी क्लास में पढ़ते हैं। मुनस्यारी में मेरे सबसे खास दोस्तों में से एक राहुल भी हैं। वे रोज मेरे पास पढ़ने आते हैं, दिन में दो बार मिलने आ ही जाते हैं। उन्हें मेरे कैमरे से बड़ा लगाव है। अब तो वो फोटोग्राफी करना भी लगभग सीख चुके हैं। राहुल के गांव का नाम वल्थी है,हां वल्थी, पहली बार ये नाम मैंने राहुल से ही सुना, पता नहीं पहाड़ी गांवों के इतने खूबसूरत नाम आखिर किसने रखे होंगे। राहुल शुरू से मुझे मामू बुलाते ...हैं, उन्होंने ये रिश्ता कैसे बना लिया मुझे नहीं मालूम, पर वो पहले दिन से मुझे मामू पुकारते आ रहे हैं।
                                 मुनस्यारी में राहुल को लगभग हर कोई शिकारी कहकर बुलाता है। एक बार मैंने खुद राहुल के पापा को ये कहते सुना- और मेरे शिकारी, कहां घूम रहा है। मामी चाची लगभग सब कोई राहुल को शिकारी ही बुलाते हैं। एक मैं ही हूं जिसने आजतक कभी उन्हें शिकारी कहकर नहीं बुलाया। वैसे राहुल को शिकारी बुलाने के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है।
                                साल भर पहले की बात है। राहुल ने एक उड़ती चिड़िया को पत्थर मारकर गिरा दिया, तब से राहुल का नाम शिकारी पड़ गया। अब पता नहीं राहुल ने निशाना लगाकर मारा था या ऐसे ही गलती से पत्थर फेंकते किसी उड़ती चिड़िया को लगा हो। लेकिन फिर भी पता नहीं क्यों राहुल को लोगों के द्वारा ऐसे शिकारी पुकारा जाना मुझे थोड़ा भी ठीक नहीं लगता, इतना नागवार गुजरता कि कुछ उसके साथ खेलने वाले बच्चों को रोज समझाता कि इसे राहुल ही बोलना नहीं तो मार पड़ेगा समझे ना।
क्योंकि नाम एक ऐसी चीज है जो जीवन भर पीछा नहीं छोड़ती। एक बार बचपन में कोई नाम कहीं से पड़ गया, चाहे वो कितना भी भद्दा, अटपटा सा क्यों न हो, उसे अगर जल्दी से रोकने का कोई उपक्रम नहीं हुआ तो फिर जीवनपर्यन्त उस नाम को ढोना पड़ता है। जब तक सोचने जानने की समझ विकसित होती है तब तक अमुक नाम हमारे व्यक्तित्व की पहचान बन चुका होता है।
 
~ Stories from Himnagri ~
 
Rahul and his snowball

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