कच्चि उत्तराखंड में बनने वाली स्थानीय शराब है। कच्चि चावल को सढ़ाकर(किण्वन) बनाया जाता है। जितना लंबे समय तक ढंक के रखा गया उतना असरदार। कच्चि की महक बहुत तेज होती है।
कच्चि दो तरह से बनाई जाती है एक खट्टी और एक मीठी। कच्चि पीने वाले इसका फायदा यह गिनाते हैं कि इससे Metabolism बहुत सही हो जाता है। खट्टी वाली कच्चि ज्यादा असरदार होती है यानि पहली बार पीने वाला तो बस एक ही ग्लास में सरेंडर।
वैसे कच्चि हो या अंग्रेजी शराब, दोनों बराबर पहाड़ में परिवार उजड़...ने का, सामाजिक टूटन का कारण बन रहे हैं। घर का पुरुष सदस्य शराब पीकर मस्त है, शराब और फिर जुआ, इस आपाधापी में जमा पूंजी, जमीन, खेती-किसानी सब चौपट और महिला तीन पहर बराबर मेहनत कर रही है, घास काट रही है, पशुधन संभाल रही है, पत्थर तोड़ रही है, चूल्हा चौका भी वही देख रही है।
साल भर पहले पहाड़ की महिलाओं ने कच्चि को बंद कराने के लिए गांव-गांव, घर-घर जाकर एक बड़ा Mass Movement किया।
जब ये मूवमेंट चला उससे पहले कच्चि बीस रुपए लीटर मिलती थी। मूवमेंट सफल रहा और चार-पाँच महीने तक कच्चि मिलनी ही बन्द हो गयी। जो लोग अपने घरों में कच्चि बनाते थे, उन्होंने इस मूवमेंट के असर को देखते कच्चि बनाना बंद कर दिया। शराब के शौकीन लोगों ने स्थिति को देखते हुए दूर शहरी इलाकों से महंगी अंग्रेजी शराब मंगवाकर पीना शुरू किया।
समय बीता और फिर धीरे-धीरे कुछ गांवों में जहां की स्थानीय प्रशासन थोड़ी लचर जान पड़ी वहां मिलीभगत कर लोगों ने चोरी-छिपे कच्चि बनाना शुरू कर दिया। जिन गांवों में आज कच्चि बनाना पूरी तरह बंद है, वो पड़ोस के गांव से लाकर पी रहे हैं।
शराब के कारण अच्छे-अच्छे घर बर्बाद हो रहे हैं, प्रतिशत आज भी वही है। कच्चि को लेकर जो मूवमेंट हुआ उससे ये हुआ कि कीमत बढ़ गई और आज कच्चि पचास रुपए लीटर बिकती है।
कच्चि दो तरह से बनाई जाती है एक खट्टी और एक मीठी। कच्चि पीने वाले इसका फायदा यह गिनाते हैं कि इससे Metabolism बहुत सही हो जाता है। खट्टी वाली कच्चि ज्यादा असरदार होती है यानि पहली बार पीने वाला तो बस एक ही ग्लास में सरेंडर।
वैसे कच्चि हो या अंग्रेजी शराब, दोनों बराबर पहाड़ में परिवार उजड़...ने का, सामाजिक टूटन का कारण बन रहे हैं। घर का पुरुष सदस्य शराब पीकर मस्त है, शराब और फिर जुआ, इस आपाधापी में जमा पूंजी, जमीन, खेती-किसानी सब चौपट और महिला तीन पहर बराबर मेहनत कर रही है, घास काट रही है, पशुधन संभाल रही है, पत्थर तोड़ रही है, चूल्हा चौका भी वही देख रही है।
साल भर पहले पहाड़ की महिलाओं ने कच्चि को बंद कराने के लिए गांव-गांव, घर-घर जाकर एक बड़ा Mass Movement किया।
जब ये मूवमेंट चला उससे पहले कच्चि बीस रुपए लीटर मिलती थी। मूवमेंट सफल रहा और चार-पाँच महीने तक कच्चि मिलनी ही बन्द हो गयी। जो लोग अपने घरों में कच्चि बनाते थे, उन्होंने इस मूवमेंट के असर को देखते कच्चि बनाना बंद कर दिया। शराब के शौकीन लोगों ने स्थिति को देखते हुए दूर शहरी इलाकों से महंगी अंग्रेजी शराब मंगवाकर पीना शुरू किया।
समय बीता और फिर धीरे-धीरे कुछ गांवों में जहां की स्थानीय प्रशासन थोड़ी लचर जान पड़ी वहां मिलीभगत कर लोगों ने चोरी-छिपे कच्चि बनाना शुरू कर दिया। जिन गांवों में आज कच्चि बनाना पूरी तरह बंद है, वो पड़ोस के गांव से लाकर पी रहे हैं।
शराब के कारण अच्छे-अच्छे घर बर्बाद हो रहे हैं, प्रतिशत आज भी वही है। कच्चि को लेकर जो मूवमेंट हुआ उससे ये हुआ कि कीमत बढ़ गई और आज कच्चि पचास रुपए लीटर बिकती है।
Kacchi (Green colour) garnished with flowers during a festival. |