साल 2051,
दीपा और मानसी की 10th की परीक्षा हो चुकी है। आज दीपा और मानसी शहर को जा रहे हैं। मानसी तो पहले जा भी चुकी है। लेकिन दीपा के लिए सब कुछ नया है। दीपा शहर को अपनी आंखों से तराश रही है, उसके मन में अभी तक किसी भी प्रकार की हिचकिचाहट नहीं आई कि इतना बड़ा शहर, इतने सारे लोग, इतनी गाड़ियां वगैरह।
दीपा मानसी के कंधे पर हल्का मारती है और एक ट्रक की तरफ इशारा करते हुए कहती है, इसे देख कितना कचरा लिए जा रहा है, हेहे, यहां शहर में ट्रकें इसी काम में आती हैं क्या? हमारा तो पूरा गांव महीने भर में इतना कचरा इकट्ठा नहीं करता होगा।
मानसी के बाबा ने कहा - बेटा, शहर आकर लोगों की भूख बढ़ जाती है इनका पेट(माइंडसेट) बड़ा हो जाता है, इनकी जरूरतों की कोई एक निश्चित सीमा नहीं होती। इनके शौक एवं विलासिता मूल्य अथाह होते हैं। तब कहीं जाकर तो इतना कचरा इकट्ठा होता है। और इस पूरी प्रक्रिया में शहर के लगभग हर नागरिक की भागीदारी होती है।
मानसी - बाबा ऐसा न बोलिए आप, इतना बड़ा शहर है, इतने जिम्मेदार लोग, अफसर वगैरह सब तो यहीं रहते हैं, इतने कचरे के लिए कोई एक सही जगह सुनिश्चित होगी, वहीं जाकर ये कचरा गिराते होंगे, इसका कुछ न कुछ प्रबंधन तो होता ही होगा।
मानसी के बाबा- हां क्यों नहीं। होता है, लेकिन कितने लोग समझेंगे। सबका कचरा ट्रकवाले तक पहुंचता कहां है, गलियों में बिखरा पड़ा रहता है, जहां कोई खाली जमीन दिखती है, वो कुछ ही दिनों में कचरे से पाट दिया जाता है, हालात ऐसी हो जाती है कि न तो वहां से गुजर सकते हैं, न ही उसे एक दिन में साफ किया जा सकता है। हालत ऐसी है फिर भी ट्रक वाले कचरा लोड करते परेशान से रहते हैं कि एक दिन में आखिर और कितना कचरा लोड करते रहें, वो परेशान सिर्फ काम को लेकर नहीं है, वे परेशान इसलिए भी रहते हैं कि आखिर ये कचरा थोड़ा कम क्यों नहीं हो जाता, वे लोगों की बढ़ती भूख और असीमित हसरतों से परेशान हैं।
दीपा - ठीक है बाबा। लेकिन न आप मानसी को यहां मत रखना। यहां रहकर कैसे पढ़ेगी। इसका भी दिमाग खराब हो जाएगा। आप ही देखो, ये देखो सामने इस चौराहे में कितनी धूल उड़ रही है फिर भी ये स्कूली बच्चे, नौजवान और ये गुजरते वृध्दजन हर कोई कितना खुश है, चेहरे देखिए इन सबके, मानो ये धूल इन सबके जीवन का हिस्सा बन चुका है।
मानसी के बाबा - बेटा हमारे गांव के आसपास के क्षेत्र में पढ़ाई की और कोई उचित व्यवस्था भी तो नहीं है। इस शहर के अलावा और जाएं भी तो कहां जाएं। आगे की पढ़ाई करनी है, तो अब ये सब धूल, प्रदूषण वगैरह को तो नजर अंदाज करना ही पड़ेगा।
थोड़ी ही देर में दीपा और मानसी की आटो एक बड़े नाले से होकर गुजरती है, नाली के पास एक ठेला है, वहीं आसपास बहुत से लोग नाश्ते के लिए रूके हैं, कुछ लोगों ने तो नाली किनारे अपनी कारें भी खड़ी कर रखी हैं, सब मजे से नाश्ता कर रहे हैं।
दीपा(मानसी को दिखाते हुए) - मानसी देख तो, ये लोग पागल हो गये हैं क्या, कैसे इतने गंदे जगह में खड़े होकर खा ले रहे हैं, वो भी इतने सारे लोग। दीपा धीरे से मानसी के कान में कहती है- तू मत रहना बहन यहां, देख न बाबा को मना बुझा के कोई और उपाय करने बोल न, मैं वहां अकेली गांव में रहकर तेरे बारे में सोच-सोचकर पागल हो जाऊंगी, तू यहां रहकर इन्हीं लोगों की तरह हो जाएगी, मुझे इस बात का डर हमेशा दीमक की तरह खाता रहेगा।
मानसी- री पगली! अभी 12th पास होने को पूरे दो साल बचे हैं। तू अभी से इतनी चिंता ना किया कर, शायद दो साल में कुछ बदल जाए, कुछ चमत्कार हो जाए।
दीपा- तू रहने दे। मुझे झूठे दिलासे ना दिया कर। ये इतने सालों से क्या बदल गया है, जो इन दो सालों कोई जादू हो जाएगा। जगह-जगह धूल उड़ रही है, नालियां बजबजा रहीं हैं, नजर खुली रखें तो हर सौ कदम में कचरे का एक ढेर है। और क्या पर्यावरण प्रदूषण की किताबें पढ़ेगें क्या, मैराथन करें क्या हम भी शहर के इन लोगों की तरह, ये देख हाथ निकाल आटो से बाहर, ये धूप से चमड़ी जल रही है, इतनी सी बात समझने के लिए क्या यहां शहर में रहकर पर्यावरण संरक्षण का कोर्स करेगी। तुझे जो करना है कर मानसी, अब न रोकूंगी, न ही इस बारे में अब कुछ कहूंगी।
मानसी - तू चाहती क्या है मैं क्या करूं। आगे पढ़ना भी तो जरूरी है। गांव में रहकर क्या होगा, चूल्हा-चौका संभालते ही दिन कट जाएंगे और फिर एक दिन शादी हो जाएगी। तू बोल न दीपा मेरे पास और क्या रास्ता है मैं आखिर करूं भी तो क्या करुं। ये हमारे महान पूर्वजों ने ये ऐसा शहर हमारे सामने खड़ा कर दिया है, हम बेबस हैं, अब जो भी यही है। खुद को इन सबसे अलग करेंगे तो कल को भूखों मरेंगे। बोल न दीपा तू चुप क्यों हो गई? बोल न मैं क्या करूं?
दीपा - सब बोल तो दिया मानसी, नाराज हो सकती हूं, तुझे रोक तो नहीं सकती न, हमारे साफ-सुथरे जंगलों में तेरे लिए कालेज तो नहीं खुलवा सकती न, तुझे जैसा ठीक लगे वो करना, खूब तरक्की करना और हां अब इस बारे में मत पूछना, क्योंकि मेरे पास बोलने को कुछ भी नहीं है।
आटो रूक चुकी है, मानसी की बुआ का घर आ चुका है।
क्रमशः .....
दीपा और मानसी की 10th की परीक्षा हो चुकी है। आज दीपा और मानसी शहर को जा रहे हैं। मानसी तो पहले जा भी चुकी है। लेकिन दीपा के लिए सब कुछ नया है। दीपा शहर को अपनी आंखों से तराश रही है, उसके मन में अभी तक किसी भी प्रकार की हिचकिचाहट नहीं आई कि इतना बड़ा शहर, इतने सारे लोग, इतनी गाड़ियां वगैरह।
दीपा मानसी के कंधे पर हल्का मारती है और एक ट्रक की तरफ इशारा करते हुए कहती है, इसे देख कितना कचरा लिए जा रहा है, हेहे, यहां शहर में ट्रकें इसी काम में आती हैं क्या? हमारा तो पूरा गांव महीने भर में इतना कचरा इकट्ठा नहीं करता होगा।
मानसी के बाबा ने कहा - बेटा, शहर आकर लोगों की भूख बढ़ जाती है इनका पेट(माइंडसेट) बड़ा हो जाता है, इनकी जरूरतों की कोई एक निश्चित सीमा नहीं होती। इनके शौक एवं विलासिता मूल्य अथाह होते हैं। तब कहीं जाकर तो इतना कचरा इकट्ठा होता है। और इस पूरी प्रक्रिया में शहर के लगभग हर नागरिक की भागीदारी होती है।
मानसी - बाबा ऐसा न बोलिए आप, इतना बड़ा शहर है, इतने जिम्मेदार लोग, अफसर वगैरह सब तो यहीं रहते हैं, इतने कचरे के लिए कोई एक सही जगह सुनिश्चित होगी, वहीं जाकर ये कचरा गिराते होंगे, इसका कुछ न कुछ प्रबंधन तो होता ही होगा।
मानसी के बाबा- हां क्यों नहीं। होता है, लेकिन कितने लोग समझेंगे। सबका कचरा ट्रकवाले तक पहुंचता कहां है, गलियों में बिखरा पड़ा रहता है, जहां कोई खाली जमीन दिखती है, वो कुछ ही दिनों में कचरे से पाट दिया जाता है, हालात ऐसी हो जाती है कि न तो वहां से गुजर सकते हैं, न ही उसे एक दिन में साफ किया जा सकता है। हालत ऐसी है फिर भी ट्रक वाले कचरा लोड करते परेशान से रहते हैं कि एक दिन में आखिर और कितना कचरा लोड करते रहें, वो परेशान सिर्फ काम को लेकर नहीं है, वे परेशान इसलिए भी रहते हैं कि आखिर ये कचरा थोड़ा कम क्यों नहीं हो जाता, वे लोगों की बढ़ती भूख और असीमित हसरतों से परेशान हैं।
दीपा - ठीक है बाबा। लेकिन न आप मानसी को यहां मत रखना। यहां रहकर कैसे पढ़ेगी। इसका भी दिमाग खराब हो जाएगा। आप ही देखो, ये देखो सामने इस चौराहे में कितनी धूल उड़ रही है फिर भी ये स्कूली बच्चे, नौजवान और ये गुजरते वृध्दजन हर कोई कितना खुश है, चेहरे देखिए इन सबके, मानो ये धूल इन सबके जीवन का हिस्सा बन चुका है।
मानसी के बाबा - बेटा हमारे गांव के आसपास के क्षेत्र में पढ़ाई की और कोई उचित व्यवस्था भी तो नहीं है। इस शहर के अलावा और जाएं भी तो कहां जाएं। आगे की पढ़ाई करनी है, तो अब ये सब धूल, प्रदूषण वगैरह को तो नजर अंदाज करना ही पड़ेगा।
थोड़ी ही देर में दीपा और मानसी की आटो एक बड़े नाले से होकर गुजरती है, नाली के पास एक ठेला है, वहीं आसपास बहुत से लोग नाश्ते के लिए रूके हैं, कुछ लोगों ने तो नाली किनारे अपनी कारें भी खड़ी कर रखी हैं, सब मजे से नाश्ता कर रहे हैं।
दीपा(मानसी को दिखाते हुए) - मानसी देख तो, ये लोग पागल हो गये हैं क्या, कैसे इतने गंदे जगह में खड़े होकर खा ले रहे हैं, वो भी इतने सारे लोग। दीपा धीरे से मानसी के कान में कहती है- तू मत रहना बहन यहां, देख न बाबा को मना बुझा के कोई और उपाय करने बोल न, मैं वहां अकेली गांव में रहकर तेरे बारे में सोच-सोचकर पागल हो जाऊंगी, तू यहां रहकर इन्हीं लोगों की तरह हो जाएगी, मुझे इस बात का डर हमेशा दीमक की तरह खाता रहेगा।
मानसी- री पगली! अभी 12th पास होने को पूरे दो साल बचे हैं। तू अभी से इतनी चिंता ना किया कर, शायद दो साल में कुछ बदल जाए, कुछ चमत्कार हो जाए।
दीपा- तू रहने दे। मुझे झूठे दिलासे ना दिया कर। ये इतने सालों से क्या बदल गया है, जो इन दो सालों कोई जादू हो जाएगा। जगह-जगह धूल उड़ रही है, नालियां बजबजा रहीं हैं, नजर खुली रखें तो हर सौ कदम में कचरे का एक ढेर है। और क्या पर्यावरण प्रदूषण की किताबें पढ़ेगें क्या, मैराथन करें क्या हम भी शहर के इन लोगों की तरह, ये देख हाथ निकाल आटो से बाहर, ये धूप से चमड़ी जल रही है, इतनी सी बात समझने के लिए क्या यहां शहर में रहकर पर्यावरण संरक्षण का कोर्स करेगी। तुझे जो करना है कर मानसी, अब न रोकूंगी, न ही इस बारे में अब कुछ कहूंगी।
मानसी - तू चाहती क्या है मैं क्या करूं। आगे पढ़ना भी तो जरूरी है। गांव में रहकर क्या होगा, चूल्हा-चौका संभालते ही दिन कट जाएंगे और फिर एक दिन शादी हो जाएगी। तू बोल न दीपा मेरे पास और क्या रास्ता है मैं आखिर करूं भी तो क्या करुं। ये हमारे महान पूर्वजों ने ये ऐसा शहर हमारे सामने खड़ा कर दिया है, हम बेबस हैं, अब जो भी यही है। खुद को इन सबसे अलग करेंगे तो कल को भूखों मरेंगे। बोल न दीपा तू चुप क्यों हो गई? बोल न मैं क्या करूं?
दीपा - सब बोल तो दिया मानसी, नाराज हो सकती हूं, तुझे रोक तो नहीं सकती न, हमारे साफ-सुथरे जंगलों में तेरे लिए कालेज तो नहीं खुलवा सकती न, तुझे जैसा ठीक लगे वो करना, खूब तरक्की करना और हां अब इस बारे में मत पूछना, क्योंकि मेरे पास बोलने को कुछ भी नहीं है।
आटो रूक चुकी है, मानसी की बुआ का घर आ चुका है।
क्रमशः .....
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