दीपा - मानसी पता है दादा न कल हम सबको अपने कमरे में बिठा के अपने बचपन के बारे में बता रहे थे।
मानसी - अच्छा! क्या बोल रहे थे।
दीपा - वैसे बहुत लम्बी कहानी है, तू न मुझे बोलने देना।बीच में रोकना मत। नहीं तो भूल जाऊंगी।
मानसी - ठीक है बता तो सही पहले।
दीपा - दादा कहते हैं कि उनका बचपन गांव में बीता। उन्होंने बताया कि जब वे पहली बार 8th क्लास में शहर गये थे तो एक होटल में खाना खाने रूके, वहां एक लड़का हाथ में प्लास्टिक की थैली मुंह में पकड़ा चूस रहा था। दादा ने तुरंत अपने पापा को पूछा कि ये क्या है, तो उस दिन दादा को पता चला कि ये पानी का पाऊच होता है, पता है मानसी उस समय न एक पानी पाऊच सिर्फ एक रूपये का मिलता था।
दादा कहते हैं - मैं उस दिन रात भर सो नहीं पाया, बैचेन होता रहा, मुझे बचपन से यही लगता रहा कि मुझे पानी फ्री मिलना चाहिए, मतलब मैं एक जीव हूं, यानि मैंने एक जीवन धारण किया है तो मैं सांस लेता हूं और जिंदा रहता हूं, उसके बाद मेरी दूसरी बड़ी जरूरत पानी है। और मुझे ये लगता है कि एक इंसान होने के नाते मुझे मुफ्त में पानी मिलना चाहिए। ये मेरा न्यूनतम हक है।
पता है मानसी दादा जब ये सब बोल रहे थे, हम सब कोई ध्यान से कान लगा के सुन रहे थे, एकदम खो से गये थे।
मानसी - हां जैसे मैं खो गयी तेरी बातें सुनके।हेहे। आगे बता न।
दीपा - दादा कहते हैं कि फिर एक दिन उन्होंने पानी की बोतल भी बिकते देखी। जब उन्हें पहली बार पता चला कि पानी की भरी हुई बोतल दस रूपये की बिकती है। तो वे चौंक गये थे। वे अपने बाबा के पास आकर बोले कि ये इतना महंगा क्यों मिलता है, लोग क्यों बेच रहे हैं पानी वो भी इतना महंगा। फिर बाबा ने उन्हें जवाब दिया होगा कि पानी पहले की तरह जगह-जगह मिल नहीं पा रहा है, इसलिए पानी बिकना शुरू हुआ है। फिर दादा ने अपने
बाबा से कहा- हम तो फिर रोज मतलब सौ से दो सौ रुपए तक का पीने का पानी ऐसे ही फेंक लेते हैं। हैं न बाबा?
मानसी - उस समय सब कुछ कितना सस्ता था देख न। तेरे दादा बता रहे हैं कि सौ रुपए तक का पानी ऐसे ही फेंक देते थे, मतलब पानी की दस भरी हुई बोतल। यहां तो आजकल सौ रुपए में मात्र एक ग्लास पानी मिल रहा है। मुझसे तो अब रहा नहीं जाता।
दीपा - हां। मुझे भी उनकी बात सुनके लालच आ गया कि इतना सस्ता पानी पीते थे हमारे दादा लोग। पता है दादा बताते हैं कि उनके समय लगभग आधी नदियां साफ हुआ करती थी। सिर्फ आधी नदियों का पानी ही खराब था। पहाड़ में जितने भी नदी और नौले थे, लोग उसी का पानी पिया करते थे। दादा बताते हैं कि उनके पहाड़ी दोस्तों ने कभी पानी के लिए पैसा नहीं बहाया, उनकी पूरी जिंदगी नदियों, नौलों और झीलों के मीठे पानी से ही गुजरी थी। और तो और पहाड़ी लोग ज्यादा बीमार भी नहीं पड़ते थे। उस समय मतलब पहाड़ों में पानी इतना साफ था कि कोई उतना ध्यान न देता तो भी चलता लेकिन वे अपने आने वाले कल को लेकर हमेशा सचेत रहते। लेकिन मैदानों में तो नदियों का पानी मटमैला होने के बाद भी मैदानी इलाकों के लोग बेसुध से अपनी धुन में मस्त रहते थे।
मानसी - अब मुझे तुझ पर यकीन करने का मन नहीं कर रहा। काश दीपा हम लोग उनके जमाने में जन्म लिए होते। खूब मीठा पानी पीते। सुंदर नदियां देखते, झील देखते, नौले भी देखते। पानी से खेलते।
दीपा - हां और जब तू नदी किनारे किसी पत्थर पर बैठे रहती। मैं तुझ पर पानी छिड़कती। तथास्तु।
मानसी - क्यों घाव पर नमक करती है। आजकल तो पूजा में छिड़कने के लिए और चढ़ावा वगैरह के लिए दुकानों में जो पानी का पैकेट मिल रहा है वो भी कितना महंगा है।
दीपा - अब क्या करें। खरीदना तो पड़ता है। तुझे पता है हमारे दादा लोग के जमाने में एक बोरिंग करके मशीन हुआ करती, उसे हाथों से फेरना पड़ता था, और पानी निकलता था, दादीजी कह रहे थे कि उनका पूरा बचपन हाथ झोंककर बोरिंग का पानी पीकर ही गुजरा है। और तो और वे घंटों बांध और तालाबों में नहाया करते, लबालब पानी हुआ करता था और उतना ही साफ। बताते हैं कि उस जमाने के लड़के गहरे पानी में डुबकी लगाकर एक-दूसरे को छूने का खेल खेलते। आजकल तो हमारे जमाने के लोगों के लिए ये सब किसी सपने से कम नहीं है।
मानसी(हंसते हुए) - सपना ही आ जाए मुफ्त के पानी का, काफी है।
दीपा - तुझे न आएगा मुफ्त के पानी का कोई सपना। आजकल जो उड़ने वाले रोबोट बनने लगे हैं। अब उन्हीं के सपने आएंगे तुझे। वही ले जाएगा तुझे साफ-सुथरी नदियों का पानी दिखाने। हेहे।
मानसी - हां! मेरे बाबा बता रहे थे कि विदेशों में तो ऐसे प्रयोग भी होने लगे हैं। जिनके पास ज्यादा पैसा है वे जब ट्रैफिक में फंसते हैं तो किराए के रोबोट को एक फोन करके बुलाते हैं और फिर रोबोट तुरंत उन्हें उनके आफिस तक उठाकर ले जाता है।
दीपा(हंसते हुए) - हम कब ऐसे उड़ेगें मानसी।
मानसी - हम, हम तोता उड़, मैना उड़ खेलते रह जाएंगे। हेहे।
क्रमशः ....
मानसी - अच्छा! क्या बोल रहे थे।
दीपा - वैसे बहुत लम्बी कहानी है, तू न मुझे बोलने देना।बीच में रोकना मत। नहीं तो भूल जाऊंगी।
मानसी - ठीक है बता तो सही पहले।
दीपा - दादा कहते हैं कि उनका बचपन गांव में बीता। उन्होंने बताया कि जब वे पहली बार 8th क्लास में शहर गये थे तो एक होटल में खाना खाने रूके, वहां एक लड़का हाथ में प्लास्टिक की थैली मुंह में पकड़ा चूस रहा था। दादा ने तुरंत अपने पापा को पूछा कि ये क्या है, तो उस दिन दादा को पता चला कि ये पानी का पाऊच होता है, पता है मानसी उस समय न एक पानी पाऊच सिर्फ एक रूपये का मिलता था।
दादा कहते हैं - मैं उस दिन रात भर सो नहीं पाया, बैचेन होता रहा, मुझे बचपन से यही लगता रहा कि मुझे पानी फ्री मिलना चाहिए, मतलब मैं एक जीव हूं, यानि मैंने एक जीवन धारण किया है तो मैं सांस लेता हूं और जिंदा रहता हूं, उसके बाद मेरी दूसरी बड़ी जरूरत पानी है। और मुझे ये लगता है कि एक इंसान होने के नाते मुझे मुफ्त में पानी मिलना चाहिए। ये मेरा न्यूनतम हक है।
पता है मानसी दादा जब ये सब बोल रहे थे, हम सब कोई ध्यान से कान लगा के सुन रहे थे, एकदम खो से गये थे।
मानसी - हां जैसे मैं खो गयी तेरी बातें सुनके।हेहे। आगे बता न।
दीपा - दादा कहते हैं कि फिर एक दिन उन्होंने पानी की बोतल भी बिकते देखी। जब उन्हें पहली बार पता चला कि पानी की भरी हुई बोतल दस रूपये की बिकती है। तो वे चौंक गये थे। वे अपने बाबा के पास आकर बोले कि ये इतना महंगा क्यों मिलता है, लोग क्यों बेच रहे हैं पानी वो भी इतना महंगा। फिर बाबा ने उन्हें जवाब दिया होगा कि पानी पहले की तरह जगह-जगह मिल नहीं पा रहा है, इसलिए पानी बिकना शुरू हुआ है। फिर दादा ने अपने
बाबा से कहा- हम तो फिर रोज मतलब सौ से दो सौ रुपए तक का पीने का पानी ऐसे ही फेंक लेते हैं। हैं न बाबा?
मानसी - उस समय सब कुछ कितना सस्ता था देख न। तेरे दादा बता रहे हैं कि सौ रुपए तक का पानी ऐसे ही फेंक देते थे, मतलब पानी की दस भरी हुई बोतल। यहां तो आजकल सौ रुपए में मात्र एक ग्लास पानी मिल रहा है। मुझसे तो अब रहा नहीं जाता।
दीपा - हां। मुझे भी उनकी बात सुनके लालच आ गया कि इतना सस्ता पानी पीते थे हमारे दादा लोग। पता है दादा बताते हैं कि उनके समय लगभग आधी नदियां साफ हुआ करती थी। सिर्फ आधी नदियों का पानी ही खराब था। पहाड़ में जितने भी नदी और नौले थे, लोग उसी का पानी पिया करते थे। दादा बताते हैं कि उनके पहाड़ी दोस्तों ने कभी पानी के लिए पैसा नहीं बहाया, उनकी पूरी जिंदगी नदियों, नौलों और झीलों के मीठे पानी से ही गुजरी थी। और तो और पहाड़ी लोग ज्यादा बीमार भी नहीं पड़ते थे। उस समय मतलब पहाड़ों में पानी इतना साफ था कि कोई उतना ध्यान न देता तो भी चलता लेकिन वे अपने आने वाले कल को लेकर हमेशा सचेत रहते। लेकिन मैदानों में तो नदियों का पानी मटमैला होने के बाद भी मैदानी इलाकों के लोग बेसुध से अपनी धुन में मस्त रहते थे।
मानसी - अब मुझे तुझ पर यकीन करने का मन नहीं कर रहा। काश दीपा हम लोग उनके जमाने में जन्म लिए होते। खूब मीठा पानी पीते। सुंदर नदियां देखते, झील देखते, नौले भी देखते। पानी से खेलते।
दीपा - हां और जब तू नदी किनारे किसी पत्थर पर बैठे रहती। मैं तुझ पर पानी छिड़कती। तथास्तु।
मानसी - क्यों घाव पर नमक करती है। आजकल तो पूजा में छिड़कने के लिए और चढ़ावा वगैरह के लिए दुकानों में जो पानी का पैकेट मिल रहा है वो भी कितना महंगा है।
दीपा - अब क्या करें। खरीदना तो पड़ता है। तुझे पता है हमारे दादा लोग के जमाने में एक बोरिंग करके मशीन हुआ करती, उसे हाथों से फेरना पड़ता था, और पानी निकलता था, दादीजी कह रहे थे कि उनका पूरा बचपन हाथ झोंककर बोरिंग का पानी पीकर ही गुजरा है। और तो और वे घंटों बांध और तालाबों में नहाया करते, लबालब पानी हुआ करता था और उतना ही साफ। बताते हैं कि उस जमाने के लड़के गहरे पानी में डुबकी लगाकर एक-दूसरे को छूने का खेल खेलते। आजकल तो हमारे जमाने के लोगों के लिए ये सब किसी सपने से कम नहीं है।
मानसी(हंसते हुए) - सपना ही आ जाए मुफ्त के पानी का, काफी है।
दीपा - तुझे न आएगा मुफ्त के पानी का कोई सपना। आजकल जो उड़ने वाले रोबोट बनने लगे हैं। अब उन्हीं के सपने आएंगे तुझे। वही ले जाएगा तुझे साफ-सुथरी नदियों का पानी दिखाने। हेहे।
मानसी - हां! मेरे बाबा बता रहे थे कि विदेशों में तो ऐसे प्रयोग भी होने लगे हैं। जिनके पास ज्यादा पैसा है वे जब ट्रैफिक में फंसते हैं तो किराए के रोबोट को एक फोन करके बुलाते हैं और फिर रोबोट तुरंत उन्हें उनके आफिस तक उठाकर ले जाता है।
दीपा(हंसते हुए) - हम कब ऐसे उड़ेगें मानसी।
मानसी - हम, हम तोता उड़, मैना उड़ खेलते रह जाएंगे। हेहे।
क्रमशः ....
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