Wedding in summer
भारत उत्सवों का देश है, पुरातन भारतीय परंपरा में ये मान्यता रही कि फसल कटने के बाद धन ऊपार्जन होता था उसके बाबत वैवाहिक रस्मों को पूरा किया जाता था, आगे चलकर ग्रह नक्षत्रों की दिशा दशा भी ग्रीष्मकाल में केंद्रित हो गई।बदलते समय के साथ समाज भी बदला है और नयी चुनौतियां सामने आन पड़ी है, इसलिए इस प्रक्रिया में यथाशीघ्र सुधार की जरूरत है।
मैदानी इलाकों में गर्मी की शादियों का एक फायदा यह है कि बच्चों की गर्मी छुट्टियां रहती है तो पूरा परिवार समय निकाल लेता है और त्योहारों की कमी होने से हर कोई मेहमान समय निकालकर शामिल हो जाता है।
लेकिन अगर वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो गर्मी में होने वाली शादियों का नुकसान ज्यादा है।एक ओर जहां पानी को लेकर त्राहि-त्राहि है दूसरी ओर शादियों में तेज गर्मी की वजह से पानी की खपत ज्यादा होती है और साथ ही ज्यादा डिस्पोजल का उपयोग यानी ज्यादा प्लास्टिक भी।
शादियों में तरह तरह के व्यंजन परोसे जाते हैं अधिकांश मेहमान खाना कम खाते हैं और नीबू पानी या जूस ज्यादा पीते हैं अब इससे होता यह है कि बेहिसाब खाना बच जाता है जो गर्मी की वजह से कुछ समय बाद खाने लायक नहीं बचता अंततः फेंकना ही पड़ता है।
शादी में बैठे जोड़े तो सबसे परेशान रहते हैं कि कब ये रस्म खत्म हो,एक तो इतनी गर्मी में उन्हें भारी भरकम कपड़े पहनने पड़ते हैं।
अगर कुछ पहाड़ी इलाकों को छोड़ दिया जाये तो संपूर्ण भारत में गर्मियों में शादी कहीं से भी ठीक नहीं है।
उपाय ये है कि ठंड में ये रस्म निपटाया जाये,जल संकट की समस्या भी नहीं होती,पानी की खपत भी कम होती है खाने पीने की चीजों का नुकसान भी कम ही होता है।
अब समय आ गया है कि कुंडली वालों को पर्यावरण हितैषी होकर इस परंपरा का संकेंद्रण शीतकाल की ओर कर देना चाहिए।
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