Sunday, 28 February 2016

Black roses of our society

पिछले एक दो साल में कितना कुछ बदल गया है।
आप और हम अब किसी पर भरोसा करने के लिए नहीं है, बेहतर यही है हम एक दूसरे के दुश्मन हो जाते हैं।
तब जाके हम तरक्की करेंगे।
हमारे कानून-व्यवस्था में एक प्रक्रिया है "एक गुनाह के लिए दो बार सजा नहीं।"
लेकिन इसके उलट समाज में देखें तो एक अहसान के लिए बार बार गुरू-दक्षिणा..ऐसे अजीबोगरीब रिश्ते.. गुरू द्वारा शिष्या से, दोस्त द्वारा अपने किसी लड़की दोस्त से..न जाने कब कहां कितनी उम्मीद।
हर एक मदद के पीछे एक बड़ा मतलब.. और इस मतलब को पूरा करने के लिए ढेर सारी अच्छाई लेके चलना.. इतनी अच्छाई इतने मूल्य कोई ढो कैसे लेता है, दूसरों को कुचल के चैन की नींद सो कैसे लेता है।
दो साल पहले एक डिप्टी कलेक्टर से मिला था इतने भले,इतने सौम्य..एकदम खरा सोना..बहुत कुछ सीखा...लेकिन बाद में पाया कि उनकी सौम्यता सिर्फ महिला वर्ग के लिए है।
आज कोई मूल्यों और अच्छाइयों की बात करता है तो मैं चुप हो जाता हूं।
आखिर इन सढे-गले मूल्यों और सद्गुणों का पोषण करने वाली अंधी मछलियों को आखिर किस भाषा में बोला जाये।
सबकी अपनी अपनी तृष्णा.. कोई पैसे के लिए रिश्ते तार-तार किये जा रहा है तो कोई रुतबे और नाम के लिए.. इन सबमें एक गुण समान है.. सबने अच्छाई का मोटा चोगा पहन रखा है।
अगर आज कोई सबसे मुश्किल काम मेरी नजर में है तो वो है एक इंसान हो जाना।
जरा होने की कोशिश कीजिएगा,फिर देखिएगा।
आज अगर किसी बड़े नामी व्यक्ति को देखता/सुनता हूं तो बस यही सोचता रह जाता हूं कि इसने एक इंसान होते हुए इतना बड़ा होने के लिए कितनों का दिल दुखाया होगा,कितनों के साथ कूटनीति की होगी अपना कितना ईमान बेचा होगा,कितना संजोया होगा।
क्या ऐसे दंभ से कोई गतिमान हो सकता है?
क्या ऐसी ऊर्जा किसी का भला कर सकती है?
मैं सोच रहा हूं तो बस नाराज बच्चे की तरह रूठ रहा हूं एक बार आप सोचिएगा न... पता नहीं कि ये सब क्यों और किसलिए लिख रहा हूं।
इतना समझ पा रहा हूं कि बस ये अनुभव हैं जो अंदर तक झंझोड़ देते हैं शायद यही आपको हमको एक इंसान होने का अहसास देता हो।

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