Wednesday, 14 June 2023

मोदी जी और चार घंटे नींद -

2014 में जब आदरणीय नरेंद्र मोदी जी प्रधानमंत्री बनकर आए तब उनकी एक मजबूत छवि पेश करने के लिए तमाम तरह की चीजें मीडिया में प्रसारित की गई। कॉमिक्स में प्रधानमंत्री जी को बाल नरेंद्र के रूप में दिखाया गया और कहानियां गढ़ी गई। उन कहानियों का मोटा-मोटा सार यही था कि प्रधानमंत्री जी बचपन से जुझारू, संघर्षशील रहे हैं। फिर कुछ समय बाद उनके सात्विक भोजन और निरंतर योग करने को लेकर भी सकारात्मक चीजें सामने लाई गई। इन सब का सार यही रहा कि देश के प्रधानमंत्री शारीरिक रूप से स्वस्थ और सक्रिय व्यक्ति हैं। ऐसा नहीं है कि ये पहले ऐसे नेता या प्रधानमंत्री हैं जो ऐसा कर रहे थे, शक्ति प्रदर्शन हर कोई करता रहा है, एक नेता में यह गुण न हो तो वह टिक भी नहीं पाएगा। शक्ति प्रदर्शन वाले उसी क्रम में काम करने वाली छवि बनाए रखने के लिए यह तक प्रचारित किया गया कि प्रधानमंत्री जी केवल 3-4 घंटे ही सोते हैं। इस पर नहीं जाते हैं कि वे कितना सोते होंगे, असल‌ में ऐसा प्रचारित करने का उद्देश्य यही था कि प्रधानमंत्री भले कैसे भी हों लेकिन वे एक बेहद सक्रिय, ऊर्जावान व्यक्ति हैं। देश के लोगों के मन मस्तिष्क में प्रधानमंत्री की एक मजबूत छवि बनाई गई और इसमें कुछ गलत भी नहीं है। आज शक्ति प्रदर्शन का युग है। और अपनी सुरक्षा के लिए, स्थायित्व के लिए हर कोई तोड़ मरोड़ के चीजें पेश करता ही है। 

अब नींद की समयावधि की बात करते हैं। साधु बाबा लोग जो तमाम तरह की साधना करते हैं, जिनको घर परिवार नहीं चलाना होता है, जो गृहस्थ की जिम्मेदारियों और दुनियावी दांवपेंच से अलग होकर सिर्फ भजन साधना त्राटक करते हैं। वे कितने भी समय खाएं सोएं किसी को फर्क नहीं पड़ता है, कोई बर्तन धोने के लिए उनके खा‌ना खा लेने का इंतजार नहीं कर रहा होता है। ऐसा व्यक्ति ही घंटों बैठकर साधना कर सकता है, अपनी सांसों को साध सकता है, कम‌ सोते हुए भी सक्रिय रह सकता है, क्योंकि दुनिया जहाँ का और कोई तनाव है ही नहीं तो ऐसे में कम नींद से ही काम चल जाता है। कौन सा सुबह उठकर आफिस जाकर चार लोगों को मैनेज करना है या व्यापार संभालना है। दूसरा यह भी है कि शारीरिक रूप से भी खुद को बहुत खपाता नहीं है तो सारी ऊर्जा ध्यान साधना में लग जाती है, ऊर्जा स्थिर बनी रहती है।

हममें से जो कोई भी फेसबुक पर हैं, हम सभी गृहस्थ जीवन जीते हैं। सुबह का नाश्ता दो वक्त का भोजन, घर-परिवार की जिम्मेदारियाँ, नौकरी व्यापार कृषि कार्य इन सब में लगे रहते हैं तो पूरा मन शरीर खप रहा होता है। इसलिए समय पर ठीक-ठाक भोजन की भी आवश्यकता होती है और 6-7-8 घंटे की अच्छी नींद भी चाहिए होती है ताकि अनवरत गृहस्थ की जिम्मेदारियों का अच्छे से पालन किया जा सके। गृहस्थ में रहते हुए इन जिम्मेदारियों जा निर्वहन करते हुए कहीं से भी संभव नहीं है कि व्यक्ति 3-4 घंटे सोकर सक्रिय रह सके। अगर कोई ऐसा कहता है तो वह सीधे सीधे बेवकूफ बना रहा है। हां कभी एक दो दिन के लिए समझ आता है, और इतना तो हर भारतीय करता है, कभी अस्पताल का जागरण या कभी शादियों की जिम्मेदारी या अन्य ऐसी किसी आपात स्थिति में पूरे 24 घंटे बिना सोए रह लेता है, लेकिन अगले दिन उसे भी नींद की आवश्यकता होती है। 

अपनी बात कहूं तो शरीर को इन सब अलग-अलग प्रयोगों के नाम पर सिर्फ और सिर्फ यातना ही दी है। क्या ठंडी क्या गर्मी क्या बरसात, माइनस ठंड में बिना कंबल के रहना, भीषण गर्मी में बिना कूलर पंखे के रहना, ठंड में ठंडे पानी से नहाना, बिना नींद के 25-30 घंटे खुद को जागृत रखने की कोशिशें, 70-80 घंटे बिना भोजन के रहना, 22-23 घंटे लगातार अकेले बाइक चलाना। असल में इन सब का हासिल कुछ भी नहीं होता है। आपके हिस्से बैचेनी, अपच, अनिद्रा, अस्थिरता ही आती है। खुद को भीड़ से अलग महसूस करने के लिए ये सब खयाली पुलाव एक समय तक ही ठीक लगता है। खासकर एक गृहस्थ की तरह जीवन जी रहे व्यक्ति को तो इन सब चीजों से दूर ही रहना चाहिए। जो दुनियावी चीजों से विरक्त हो चुका है, उसे ही यह सब प्रयोग शोभा देता है। 

जब भी कोई गृहस्थ कम नींद का महिमामंडन कर अपने आप को महान दिखाता है और लोगों को बरगलाने का प्रयास करता है, तो ऐसे लोगों के लिए हंसी और दया दोनों ही आती है। विशिष्टता और आत्मश्लाघा से ग्रसित ये लोग असल में जीवन जीने को ही बहुत जटिल और भारी काम बना लेते हैं। असल में ये लोग अपने आप को‌ महान सिध्द करने, भीड़ से अपने आप को जुदा दिखाने के लिए ऐसा करते हैं। इसकी पूर्ति के लिए अपने भोजन, दैनिक जीवनशैली और नींद के तरीकों को जान बूझकर बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते रहते हैं। और यह सब फर्जी तरीका इन्होंने देश के प्रधानमंत्रियों से ही तो सिखा होता है। एक प्रधानमंत्री का एक बार समझ आता है, उसकी तो हर एक गतिविधि खबर है, सनसनी है। अगर वह मशरूम भी खा रहा तो उसकी एक अलग स्टोरी बनेगी। लेकिन इन तथाकथित गृहस्थी जीवन जी रहे गुमनाम सरीखे लोगों को किस बात का गुमान रहता है, समझ नहीं आता है। प्रधानमंत्री का कम सोने का प्रचार करना शक्ति प्रदर्शन ही है, सत्ता बनाए रखने के लिए यह सब प्रपंच एक नेता के लिए जरूरी भी है। और ऐसा करने वाले मोदीजी अकेले नहीं हैं। स्व. इंदिरा गांधी बेलछी नरसंहार के बाद हाथी में चढ़कर उस गांव तक गई थी, इसके पीछे भी शक्ति प्रदर्शन ही था क्योंकि तब आयरन लेडी के रूप में प्रचारित प्रधानमंत्री की उम्र भी ठीक ठाक थी, और जो कांग्रेस उस समय डूब रही थी, उसे इस शक्ति प्रदर्शन के बाद मानो संजीवनी मिल गई थी। तब सोशल मीडिया होता तो आयरन लेडी उतनी ही ट्रोल होती जितना आज प्रधानमंत्री को संसद के सामने शीश झुकाने के लिए किया गया। राजनीति में शक्ति प्रदर्शन के लिए ऐसी चीजें चलती रहती है। 

पुनश्च : कम सोने को लेकर खुद को महिमामंडित करने वालों से बस यही कहना है कि आपसे लाख गुना बेहतर वे कामगार, मजदूर और वे लाखों ट्रक वाले हैं, जिनके पास अपनी संघर्ष गाथा सुनाने के लिए एक अदद भाषा तक नहीं होती है। जो दिन रात चौबीसों घंटे डाब खाते हुए या नशे का सेवन करते हुए अपनी नींद मारकर देश समाज को बेहतर बनाने में अपना सर्वस्व झोंक रहे होते हैं। सनद रहे कि आप कम सोने का प्रचार कर, उपवास कर उस पर रामकथा लिखकर ऐसे तमाम मेहनतकश लोगों का सरासर अपमान कर रहे हैं। 

इति।

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