जब हम उसे तकलीफ से बचाने के लिए,
खुद को झोंक देते हैं।
इस प्रक्रिया से टूटते बिखरते से हम,
जब नाउम्मीद हो रहे होते हैं,
तकलीफें भी जब हमें घेरने के लिए मुहाने पर आ जाती हैं,
वह पहले ही हमारे साथ आ खड़ा होता है।
वो सिर्फ खड़ा नहीं होता,
हल्के से आभास करा जाता है,
कि वह हम ही तो थे,
जो उसके लिए मन छोटा कर जाते हैं,
क्षण प्रतिक्षण चितिंत रहा करते हैं,
जो उसके लिए मन छोटा कर जाते हैं,
क्षण प्रतिक्षण चितिंत रहा करते हैं,
उसकी रक्षा हेतु संकल्पित रहते हैं।
वो हमें दुगुनी ताकत दे जाता है,
साथ ही हल्केपन का अहसास भी कराता है,
कुछ यूं वह हमारे करीब आने का प्रयास करता है,
वह अपने होने को बतलाता है,
हमें अपने अस्तित्व का विस्तार दिखाता है।
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