Sunday, 4 September 2016

~ नशामुक्ति से भी बढ़कर ~


दोस्त ने फोन करके कहा और आज क्या प्लानिंग है
मेरा हमेशा की तरह वही जवाब क्या प्लानिंग यार सबका बर्थडे विश समेट के खुश रहो,बस।
दोस्त ने कहा- अबे बर्थ डे के दिन कोई इतना उदासीन होता है क्या।
मैंने कहा- उदासीन क्या,कोई होना भी तो चाहिए..रोजगार के चक्कर में हम सब दोस्त यार आज हजार हजार किलोमीटर दूर हो गये हैं ये भी तो देख।
दोस्त ने हंसते हुए कहा- भाई तू न फेसबुक में ही सेलिब्रेट कर।
मैं सोचा- हां तू सही बोल रहा है अमल किया जाये इसपे।
फिर उसने कहा- फेसबुक में कुछ लिख दे अच्छा।

मैंने उसे ठीक है कहा ही होगा उसके मिनट भर बाद ही मुझे अनिकेत(काल्पनिक नाम) याद आ गया।
अनिकेत इसलिए मुझे याद आ रहा है क्योंकि न ही वो फेसबुक या किसी सोशल साइट में है न ही मेरे पास उसका नंबर है।
पता नहीं कहां किस हालत में है।
आज वो इसलिए भी याद आ रहा है क्योंकि वो कभी केक नहीं खाता था।

एक बार उसका बर्थडे था..हम लोगों ने बड़े मन से उसके लिए केक लाया था रात के बारह बजे उसे बड़ा मनाया बुझाया फिर भी वो राजी न हुआ।
कहने लगा- चेहरा बाल जहां लगाना है लगा लो यार लेकिन मैं केक नहीं खा पाऊंगा। सारी, ये केक पूरा तुम लोग खाओगे ठीक है।
हम लोग मान गए लेकिन साथ में जो लड़के थे वे चिढ़चिढ़ा गये और अनिकेत के जाने के बाद कहने लगे- लड़की के चक्कर में केक नहीं खा रहा है साला हम दोस्त लोग छोटे हो गये आज है ना।
मैं चुप था।
क्या बोलता।
एक तरफ इनका गुस्सा भी जायज था..दूसरी तरफ अनिकेत के दृढ़ निश्चय से भी मैं उलझ नहीं सकता था।

अनिकेत के लिए कितना कुछ बदल गया था..वो प्यार में पड़ा तो भी एक जैन लड़की के साथ।
शुरुआती दिनों में जब उसके प्रेम का पारावार सातवें आसमान पर था..
वो मुझे बताता कि कैसे उसने कनुष्का(काल्पनिक नाम) की बात मानते हुए आलू,प्याज खाना छोड़ दिया।
आलू की जगह चुकंदर ने ले ली, प्याज को पत्तागोभी ने विस्थापित कर दिया।
अब बेकरी का एक भी आयटम वो छूता न था, तेल से तली हुई चीजें भी ना के बराबर खाता था, चाकलेट से भी परहेज कर लिया था।
कनुष्का ने मानो उसकी पूरी खाद्य श्रृंखला बदल दी..धीरे से ही सही वो उसका खूब रूपांतरण करने लगी थी।
अनिकेत जब नाराज होता तो कनुष्का कहती - ओये! मेरे प्यार का कोई निरपेक्ष मान अगर है तो तुम्हें मेरी बात माननी पड़ेगी..अगर इतना नहीं कर पाओगे तो बता दो,नहीं बोलूंगी कुछ आज के बाद। तुम्हें मेरे पीछे जो करना है कर लेना लेकिन याद रखना तुम्हारे भले के लिए ही कहती हूं।
अनिकेत उसकी बात टालता भी तो कैसे..कनुष्का की जिद भी तो बाकी लड़कियों जैसी न थी।
कभी-कभी हंसता और मुझसे कहता कि ये चौबीस कैरेट सोने जैसी लड़की मेरी ही जिंदगी में क्यों आई।पता नहीं ये मुझसे संभलेगी कि नहीं।
अनिकेत चाह कह कर भी कनुष्का की बात टाल नहीं पाता था, वो कनुष्का के प्रेमादर्श से बार-बार हारता।
महीनों तक जैनियों की भांति खान-पान अपना कर अनिकेत का चेहरा चमककर चांद हो गया था।
एक समय ऐसा आया जब अनिकेत ने मुझे भी सलाह दी कि एक बार आजमा के देख..मैं कुछ ही दिन में सरेंडर कर गया..
मैंने अनिकेत से साफ कह दिया- प्रेम तेरा, ये निधि फिलहाल तू ही संभाल ये अभी इस उम्र में मुझसे न होगा।
मैंने अनिकेत को ऐसा कह तो दिया लेकिन आज जब वो दिन याद कर रहा हूं तो समझ आ रहा है कि जैनियों के फूड हैबिट का कोई सानी नहीं।अगर निरोग रहना हो तो इससे बेहतर और कुछ भी नहीं।

कुछ साल बाद ऐसा हुआ कि कनुष्का की शादी हो गयी, तय सीमित समय में अनिकेत कुछ कर न पाया।
जब भी वो मिलता तो मैं उससे पूछता - क्या अभी भी आलू-प्याज, चाकलेट वगैरह का त्याग चल रहा है?
जवाब में वो हंस के कहता- अब तो यही सहारा है, यही नशा है यही प्रेम भी है।

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