उसका घर ठीक मेरे घर के सामने था।
जब भी मैं घर से निकलता..
वो अपने दरवाजे पर आकर खड़े हो जाती..
मुझे देखकर आंखें मींचते हुए मुस्कुराती..
मैं भी वही करता..
ये सिलसिला लगभग रोज होता..
बहुत दिनों बाद जब मैं कहीं से घर को लौटता तो वो मेरे हिस्से की मुस्कुराहट बचा कर रखती.मिनटों तक मुझे ताकती..उसका सम्मान करते हुए मैं भी उसे देखता रहता।
उसके स्नेह ने मुझे पराभूत कर दिया था।
मुझे कभी-कभी उसके साहस से डर लगता,
उसे इस बात की बिल्कुल भी परवाह नहीं रहती कि थोड़े दूर बैठे उसके दादाजी का ध्यान हम दोनों पर है।
मैं इस डर से कभी कभी अपनी नजरें झुकाकर बिना आंखमिचोली किए निकल जाता।
वो भी धीरे से अपने दोनों हाथों को लोहे की ग्रिल से हटाती और वापस घर के अंदर चली जाती।
एक बार को मैंने सोचा कि पास जाकर थोड़ी बात कर ली जाए लेकिन घबराहट भी होती कि एक तो ये अनजान शहर, जान न पहचान, कहीं किसी ने देख लिया तो पता नहीं क्या सोचेगा।
आज वो सज धज के लोहे की ग्रिल के पास आयी,और मुझे अपना श्रृंगार दिखाने लगी,इतराने लगी।
आज शायद उसका जन्मदिन है उसने अपने कानों में नई बालियां पहनी हैं,रंग-बिरंगा टीका लगाया है, नये कपड़े भी पहने हैं।
लेकिन मेरी निगाह रूकी भी तो उसके पैरों पर..वहां बैचेनी थी..सूनापन था।
इतना श्रृंगार देखने के बाद भी उसके पैरों में पायल का ना होना मायूस कर गया।
दूसरी तरफ आज उसका स्वाभिमान इतना प्रस्फुटित हुआ कि उसने मुझे देखकर मुस्कुराना तक जरूरी नहीं समझा।
भला कोई इतना इतराता है क्या, एक तो पायल की झंकार भी नहीं है।
मैंने तो गांठ बांध ली कि अब न मुस्कुराऊंगा।
मैं चेहरा फेरने ही वाला था कि उसने हाथ हिलाया और मुझे हाय किया। एक पल को समझ नहीं आया कि ये क्या हुआ.फिर मैंने भी हाय कर दिया..
अब वो ध्वनि की गति से आंखें मीचने लगी,
मैं भी आकाशगंगा की भांति मुस्कान बिखेरने लगा।
दोनों खूब सारा मुस्कुराये..।
इतने में उसके पापा ने हम दोनों को देख लिया।
वो आये और उसे अपनी गोद में उठाकर ले गये।
आज वो मेरी आंखमिचोली करने वाली गुड़िया दो साल की हो गई है।
जब भी मैं घर से निकलता..
वो अपने दरवाजे पर आकर खड़े हो जाती..
मुझे देखकर आंखें मींचते हुए मुस्कुराती..
मैं भी वही करता..
ये सिलसिला लगभग रोज होता..
बहुत दिनों बाद जब मैं कहीं से घर को लौटता तो वो मेरे हिस्से की मुस्कुराहट बचा कर रखती.मिनटों तक मुझे ताकती..उसका सम्मान करते हुए मैं भी उसे देखता रहता।
उसके स्नेह ने मुझे पराभूत कर दिया था।
मुझे कभी-कभी उसके साहस से डर लगता,
उसे इस बात की बिल्कुल भी परवाह नहीं रहती कि थोड़े दूर बैठे उसके दादाजी का ध्यान हम दोनों पर है।
मैं इस डर से कभी कभी अपनी नजरें झुकाकर बिना आंखमिचोली किए निकल जाता।
वो भी धीरे से अपने दोनों हाथों को लोहे की ग्रिल से हटाती और वापस घर के अंदर चली जाती।
एक बार को मैंने सोचा कि पास जाकर थोड़ी बात कर ली जाए लेकिन घबराहट भी होती कि एक तो ये अनजान शहर, जान न पहचान, कहीं किसी ने देख लिया तो पता नहीं क्या सोचेगा।
आज वो सज धज के लोहे की ग्रिल के पास आयी,और मुझे अपना श्रृंगार दिखाने लगी,इतराने लगी।
आज शायद उसका जन्मदिन है उसने अपने कानों में नई बालियां पहनी हैं,रंग-बिरंगा टीका लगाया है, नये कपड़े भी पहने हैं।
लेकिन मेरी निगाह रूकी भी तो उसके पैरों पर..वहां बैचेनी थी..सूनापन था।
इतना श्रृंगार देखने के बाद भी उसके पैरों में पायल का ना होना मायूस कर गया।
दूसरी तरफ आज उसका स्वाभिमान इतना प्रस्फुटित हुआ कि उसने मुझे देखकर मुस्कुराना तक जरूरी नहीं समझा।
भला कोई इतना इतराता है क्या, एक तो पायल की झंकार भी नहीं है।
मैंने तो गांठ बांध ली कि अब न मुस्कुराऊंगा।
मैं चेहरा फेरने ही वाला था कि उसने हाथ हिलाया और मुझे हाय किया। एक पल को समझ नहीं आया कि ये क्या हुआ.फिर मैंने भी हाय कर दिया..
अब वो ध्वनि की गति से आंखें मीचने लगी,
मैं भी आकाशगंगा की भांति मुस्कान बिखेरने लगा।
दोनों खूब सारा मुस्कुराये..।
इतने में उसके पापा ने हम दोनों को देख लिया।
वो आये और उसे अपनी गोद में उठाकर ले गये।
आज वो मेरी आंखमिचोली करने वाली गुड़िया दो साल की हो गई है।
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