Sunday, 9 November 2025

खोया हुआ स्वर्णिम काल: जब भारत घूमना सस्ता था, सुहाना था

2020-21 की कोरोना महामारी ने दुनिया को थमने पर मजबूर कर दिया था। लॉकडाउन, कर्फ्यू, अलग-अलग जोन और तमाम तरह की बंदिशें, लेकिन एक छोटा सा अंतराल भी था जब पहली और दूसरी लहर के बीच सन्नाटा पसरा था। उस सन्नाटे में मैं अकेले 2 नवंबर 2020 को भारत भ्रमण पर निकला था। सड़कें खाली, जगहें विरान, होटल सस्ते, ढाबे सुनसान। छत्तीसगढ़ से मध्यप्रदेश उत्तरप्रदेश होते उत्तराखंड फिर वहाँ से जहाँ मन हुआ, चला गया। गंगोत्री से लेकर तुंगनाथ और अमृतसर से लेकर जैसलमेर, इन जगहों पर नितांत अकेले सुनसान वीरान जगहों पर घूमता रहा जो असंभव जैसा है क्योंकि इन जगहों पर सालभर लोगों का हुजूम रहता है। शायद ही आने वाले कुछ दशकों में या शताब्दी में ऐसा सुयोग किसी को नसीब होगा। लॉकडाउन की वजह से प्रदूषण भी हर जगह ना के बराबर था, उस सीजन की ठंड भी सबसे लंबी थी, ऐसा लगा जैसे 15-20 साल पहले के भारत में घूम रहा हूँ। आज उस समय को याद करता हूँ तो सचमुच गोल्डन पीरियड सा लगता है। 


आज वही जगहें फिर से देखीं—ऑनलाइन बुकिंग साइट्स पर, खाने पीने की जगहों पर। जो होटल 800-1000 रुपये में मिल जाता था, आज 2000-2500 से कम नहीं। मनाली का गेस्ट हाउस 600 से 1800, उदयपुर का हेरिटेज हवेली 2000 से 5000। रेलवे का किराया भी बढ़ा, बस का टिकट भी। खाने-पीने की प्लेटें भी महँगी। कुल मिलाकर, वही यात्रा आज दुगुने से ज्यादा खर्चे में पूरी होगी।


यह महँगाई कोई अचानक नहीं आई। इसके पीछे दो बड़े आर्थिक झटके रहे हैं—2016 की नोटबंदी और 2017 का जीएसटी। 


नोटबंदी ने सबसे ज्यादा नुकसान इस घरेलू क्षेत्र को पहुँचाया, जिस पर भारत के पर्यटन की रीढ़ टिकी थी। छोटे होटल, ढाबे, गाइड, टैक्सी वाले, रिक्शा चालक—सब नकद पर चलते थे। एक झटके में 86% मुद्रा गायब। कई बंद हो गए, कई कर्ज में डूब गए। जो बचे, उन्होंने किराया बढ़ा दिया ताकि बैंकिंग सिस्टम, ऑनलाइन पेमेंट गेटवे और बढ़ते टैक्स का बोझ उठा सकें।


फिर आया जीएसटी। पहले टूरिज्म पर वैट, सर्विस टैक्स, लग्जरी टैक्स अलग-अलग थे। जीएसटी ने सबको एक कर दिया, लेकिन दरें बढ़ा दीं। होटल रूम 1000 तक 12%, उससे ऊपर 18%। रेस्टोरेंट बिल पर 5% से 18% तक। टूर पैकेज पर 5%, लेकिन उसमें शामिल हर सर्विस पर अलग-अलग स्लैब। नतीजा? छोटे व्यवसायी या तो जीएसटी रजिस्ट्रेशन के झंझट में फँसे या ऊँचे दाम वसूलने लगे। जो पहले 500 में खाना खिलाता था, अब बिल में जीएसटी जोड़कर 650 लेता है। ग्राहक को लगता है महँगाई, असल में टैक्स।


कोरोना के बाद तो जैसे सबने मौका देख लिया। जो होटल बंद होने की कगार पर थे, उन्होंने कीमतें दुगुनी कर दीं क्योंकि डिमांड अचानक लौटी और सप्लाई कम थी। ऑनलाइन ट्रैवल एजेंट्स (OTA) ने अपना कमीशन 20-30% तक बढ़ा दिया। एयरलाइन्स ने भी किराए आसमान पर पहुँचा दिए। कुल मिलाकर, पर्यटन अब मिडिल क्लास की पहुँच से बाहर होता जा रहा है।


पहले बैकपैकर्स हॉस्टल 200-300 में मिल जाता था, आज 700-1000 से शुरू। 1500-2000 में अच्छे साफ़ सुथरे होटल आपको मिल जाते थे आज 3000-4000 देने के बाद भी इसकी गारंटी नहीं। यह सिर्फ पैसे की बात नहीं—यह आजादी की बात है। घूमना-फिरना अब लग्जरी हो गया है। पहले हम सोचते थे, “चलो निकल पड़ते हैं”, अब सोचते हैं, “बजट बनेगा या नहीं?”


सरकार कहती है जीएसटी से टैक्स कलेक्शन बढ़ा, अर्थव्यवस्था मजबूत हुई। लेकिन सवाल यह है—किसकी अर्थव्यवस्था? बड़े होटल चैन,OTA प्लेटफॉर्म्स, एयरलाइन्स—हाँ, उनकी मजबूत हुई। छोटे ढाबे वाले, गाइड, लोकल टैक्सी ड्राइवर की नहीं। जो पर्यटन/देशाटन भारत की आत्मा थी - वह अब खत्म हो रही है। 


आज अगर मैं फिर से अकेले भारत घूमने निकलूँ तो पहले 50 हजार में दो महीने की यात्रा हो जाती थी, अब उतने में 20-25 दिन भी मुश्किल। वह स्वर्णिम काल अब लौटने वाला नहीं। नोटबंदी और जीएसटी ने जो कर दिया, उसे वापस नहीं लिया जा सकता। अब या तो ज्यादा कमाओ, या कम घूमो। या फिर इंतजार करो अगले किसी संकट का—जब फिर सन्नाटा फैले और कीमतें गिरें। 


लेकिन तब तक शायद हममें से ज्यादातर भूल जाएँ कि बिना प्लानिंग, बिना बजट के बस यूँ ही निकल पड़ना कितना खूबसूरत था। वह आजादी थी, वह घूमना नहीं—जीने का तरीका था। आज वह लग्जरी बन गया। 

No comments:

Post a Comment