किसान आंदोलन के बाद किसी एक लिखी बात को बेवजह मुद्दा बनाकर मुझे पुलिस की धमकियाँ मिलने लगी थी। मुझे भी समझ नहीं आ रहा था कि आखिर हो क्या रहा है। मैं इतनी सी बात को लेकर स्पष्ट था कि मैंने अपनी तरफ से कोई गलती नहीं की है इसलिए मैं टिका रहा। लेकिन बात वही है, हैं तो हम इंसान। सामान्य जीवन चलता रहता है, पुलिस का जबरन फोन आए तो इंसान के मन मस्तिष्क में उथल पुथल होती ही है, सेल्फ डाउट होता ही है, मुझे भी हुआ। अपने स्वजनों से बातें की। इसी समय एक ऐसे व्यक्ति जिन्हें मैं अपना स्वजन समझता रहा। उनका असल चाल चरित्र समझ आने लगा। मुझे आज भी यकीन नहीं होता है कि दुनिया में इस तरह के हिंसक लोग भी होते हैं।
जो वास्तव में मेरे अपने करीबी रहे उन्होंने यही कहा कि अपना ख्याल रखो, सब सही होगा, तुम संभाल लोगे। लेकिन ये जो महान व्यक्ति जिन्हें मैं अपना करीबी मानता रहा। उन्होंने मुझे ऐसी-ऐसी सलाहें दी कि मैं और घबरा जाऊं। चीजों को और जटिल कर मुझे और अधिक अवसाद में ढकेलने की पूरी तैयारी करने लगे। तब समझ आया कि ऐसे लोग किसी की समस्या को कैसे अपने फायदे के लिए भुनाते हैं। ऐसा करने के लिए असल में बहुत मोटी चमड़ी चाहिए होती है। उन्होंने कहा था - अगर तुमने कुछ गलत किया ही नहीं है तो बराबर पुलिस से बात करो और उनके सामने और झुक जाओ, खैर मैंने उनकी किसी बात पर अमल नहीं किया। मेरा तर्क यही रहा कि जब मैंने कुछ किया ही नहीं है तो क्यों किसी को जवाब दूं, मेरी गलती है तो आकर मेरे खिलाफ कार्यवाई कर लें, मेरी अंतरात्मा ने आखिर तक यही कहा और इसी ने मुझे संभाला भी।
जिनको करीबी मानता रहा उन्होंने तो एक दिन यह तक सलाह दे दी कि फलां जेल चले जाओ, हम भी जेल में रहे हैं, तुम्हारे लिए एक बढ़िया जेल की व्यवस्था कर देते हैं, बढ़िया मौज करके आओ, बस रह के आओ, माहौल देख के आना बढ़िया, नया अनुभव रहेगा। मैं उनकी यह बात सुनकर हैरान था। मैंने उस वक्त यही सोचा कि एक तो सामने वाला समस्या में है, भयानक उलझन में है, उसमें भी जो व्यक्ति आपको अलग-अलग अनुभव देने के नाम पर जेल में रहने की सलाह दे रहा है वह सब कुछ हो सकता है, आपका करीबी आपका शुभचिन्तक तो हो ही नहीं सकता। एक बात और समझ आई कि जो आपका अपना है वह कभी आपके निजी जीवन में दखल नहीं देता है, आप पर भरोसा करता है कि आप संभाल लेंगे, अदृश्य रूप से वह आपके साथ रहता है, उसकी दुआएं आपके साथ रहती है।
फिर धीरे-धीरे मैंने इस महान आत्मा से दूरी बना ली, इसको फुटेज देना बंद कर दिया। इसने जबरन एक दो बार और मेरे व्यक्तिगत जीवन में दखल देने की कोशिश की, लेकिन मैंने अपने सारे दरवाजे इस जैसों के लिए हमेशा के लिए बंद कर दिए। वैसे, ये महान आत्मा अभी भी मेरी फेसबुक में जुड़ा हुआ है, लेकिन इसे तूल देना बंद कर दिया है। अगला भी देखता सब है, बस अब मेरी पोस्ट लाइक नहीं करता। क्योंकि इसको ये समझ आ गया कि मैं इसकी सारी करतूतें समझ चुका हूं। अभी की स्थिति यह है कि ये अब बहुत अधिक बीमार हो चुका है, दिवालिएपन की स्थिति में जा चुका है, चेहरे के हाव-भाव से आजकल खुलके दिखता भी है। लेकिन ये आज भी लोगों के जीवन में घुसकर ऐसे ही चरस बोते रहता है, उनको ऐसे ही गलत सलाह देकर फंसाता है, लेकिन वो कहते हैं न, धूर्तता की भी अपनी एक उम्र होती है, उम्र हो चुकी है, उसके दिन लद चुके हैं। ऐसे लोगों की धूर्तता को समाज अपने आप देर सबेर पहचान ही लेता है, और यही हो भी रहा है, लोग इसे किनारे करने लगे हैं। और यही होना भी चाहिए। कचरे को एक समय के बाद डंप कर देने में ही भलाई होती है।