"The interpretation of dreams by Sigmund Frued"
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि किताब में सपनों की व्याख्या के बारे में है। सिग्मंड फ्राइड को मनोविज्ञान का पितामह भी कहा जाता है, इन्होंने मनोविज्ञान के क्षेत्र में मानो एक तरह से क्रांति ला दी थी। इनके द्वारा लिखे गये इस गूढ़ किताब का ऐसे कुछ चंद लाइनों में सारांश लिखना तो बिल्कुल भी संभव नहीं है। इसलिए मूल किताब जो इंग्लिश में है उसे पढ़कर मैंने पाठकों के सुभीते के लिए उसके कुछ महत्वपूर्ण अंश का हिन्दी अनुवाद कर दिया है। आशा है आपको पसंद आएगा।
सपनों के मनोविज्ञान पर विभिन्न दार्शनिकों के मत निम्नानुसार हैं :-
मुझे अपने सपनों के बारे में बताइए, मैं आपके बारे में सब बता दूंगा।
- Plaff
किस्मत वाले होते हैं वे लोग जो सिर्फ सपने देखते हैं लेकिन उसे पूरा कोई और करता है।
- Plato
सपनों की सहज और सरल व्याख्या पूर्णत: संभव नहीं है।
- Hegel
हमारे देखे गये दस सपनों में से नौ सपनें फिजूल के होते हैं।
- Binz
सपनों को लेकर सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसे समझने के लिए कोई नियमावली नहीं बनाई जा सकती।
- Radestock
सपनों की बातें करना नासमझी के अलावा और कुछ भी नहीं। ये एक तरह की मूर्खता ही है।
- fechner
सपनों का कोई एक निश्चित उद्देश्य नहीं होता है।
- Volkelt
तमाम टूटे बिखरे हुए तथ्य जो हमें सपनों के माध्यम से प्राप्त होते हैं, यही सपनों के वास्तविक मूल तत्व हैं।
- Lemoine
सपने देखना यानि एक ऐसी मनोवैज्ञानिक घटना जो वास्तविक तथ्यों पर आधारित न होकर रूपकों पर आधारित होती हैं।
- Scholz
जिसका जीवनक्रम जितना पवित्र होता है, उसके देखे गये सपनों में उतनी ही पवित्रता होती है, और इसके ठीक उलट जिसका जीवन जितना अपवित्र होता है, उसे वैसे ही अपवित्रता से युक्त सपने आते हैं।
- Hindebrandt
सपनों की तमाम खामियां एवं जटिलताएं ही इसके असली गुण हैं। जैसे कि अगर किसी व्यक्ति की एक सरल सी परिभाषा को दो अलग अलग लोगों को बताया जाए तो वे अपने तरीके से उसे परिभाषित करने लगते हैं, या यूं कहें कि अपने तरीके से सरलीकरण करते हैं। सपनों के साथ भी ऐसा ही है।
- Griesinger
कोई भी ऐसा सपना नहीं जिसमें दो चार बेतुकी बातें एवं मूर्खतापूर्ण तथ्य शामिल न हो।
- Maury
जो हम देखते हैं, सुनते हैं, चाहते हैं, करते हैं ; हमारा सपना इसी से ईर्द गिर्द ही होता है।
- Jessen
एक व्यक्ति सपने में जितने बेहतर तरीके से विदेशी भाषा बोल सकता है, उतना बेहतर वह असल जीवन में कभी नहीं बोल सकता।
- Vaschide
सपनों की सटीक व्याख्या इसलिए भी जरूरी है क्योंकि ऐसा ना करने से "Gulliver Travel" जैसी फिजूल की फिल्में बन जाती हैं और लोग ऐसे फिल्मों से प्राप्त तथ्यों को वास्तविकता की कसौटी में बांधने लगते हैं या यूं कह सकते हैं कि सच मानने लगते हैं इससे सपनों के मनोविज्ञान को भारी क्षति नुकसान पहुंचती है।
- Pilcz
सपनों के अवलोकन की समस्याएं भी अनूठी हैं, इसलिए इसका सबसे बेहतर उपाय यह है कि सीधे काॅपी पेन पकड़कर हम लिखते चलें। यही सपनों की सटीक व्याख्या का सबसे बढ़िया उपाय है।
- Chabeneix
सपनों से प्राप्त विचार प्राय: बहिर्मुखी होते हैं।
- Scherner
विद्वता, भावुकता, रोचकता, क्रियात्मकता, नाटकीयता और रचनात्मकता से परिपूर्ण एक ऐसी घटना जिसका ना कोई आदि ना तो कोई अंत है। असल में सपनों के दौरान हमारा मस्तिष्क आत्मा का गुलाम बन जाता है।
- Dugas
किताब के कुछ महत्वपूर्ण अंश --
वास्तविक जीवन (जागृत अवस्था) में हम देखकर, बोलकर यानि भाषा और चित्रों के सहारे ही कल्पना करते हैं,सोचते हैं। लेकिन सपनों के दौरान तो उन चित्रों और भाषाओं की असल अवधारणा हमारे सामने आ जाती है और फिर हमें स्वर्ग जैसा महसूस होने लगता है लेकिन सपने से उठकर जागृत अवस्था में आने के बाद इस बीज अवधारणा को पूरा संजोना हमारे लिए संभव ही नहीं हो पाता, हमें कुछ झलक जरूर मिल जाती है।
सपनों के मामले में एक अनुसंधान यह भी है कि हमारे देखे गये सपनों की सर्वाधिक पैदावार वहीं से तैयार होती है जब हम शांतचित्त अवस्था या जागृत अवस्था में कुछ सोचते विचारते हैं।
सुबह उठते ही सपनों को हम इसलिए भूल जाते हैं क्योंकि इनमें लड़ने की पर्याप्त ऊर्जा नहीं होती। हम जैसे ही उठते हैं, आंख खोलते हैं, दिमाग दौड़ाने लगते हैं और हम सपनों को भूलने लगते हैं। ये ठीक वैसा ही है जैसे सूरज उगने के साथ धीरे-धीरे अंधेरा छंटने लगता है।
हमें किसी से नया नया प्यार हुआ है और हम सब कुछ भूलकर पूरी तरह से इस विषय की गिरफ्त में हैं, इस समयावधि में चाहकर भी हमें पैराशूट में उड़ने वाले या अन्य किसी विषय से जुड़े सपने नहीं आ सकते। यानि जो भी सपने आएंगे वो कहीं न कहीं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रेम से ही संबंधित होंगे।
जब कभी हमारे मन में दबी हुई कामुकता, वासना, विद्रोह, द्वेष आदि विषयों का किसी कारणवश उद्दीपन होता है, ऐसी स्थिति में ये विषय किसी अन्य पूर्ववर्ती विषय के साथ मिलकर एक खिचड़ी बना लेते हैं और फिर इसी वजह से हमें कभी कभार जटिल सपने आ जाते हैं।
जब हमारे मन में एक ही विषय चलता है या किसी गहरे शोक की वजह से हम उसके अलावा कुछ और नहीं सोचते या फिर जब हमारा मस्तिष्क अपनी पूरी ऊर्जा से किसी एक ही चीज पर द्वंद करता रहता है, ऐसी स्थिति में सोते समय जो "सपने" हमें आते हैं उसमें अधिकतर या तो दूसरे ग्रह जैसा कुछ होता है या फिर कोई ऐसा घटना होती है जिससे हमें अपने वर्तमान की कुछ झलक मिल जाती है और हम खुश हो जाते हैं।
जब हम किसी बीमारी से ग्रसित होते हैं, ऐसी स्थिति में जब हमारे स्वाद की और सूंघने की शक्ति कम होने लगती है तो इस समय हमारा मनोविज्ञान दुगुनी तेजी से काम करने लगता है और फिर हमें अधिकांशत: अपने भूतकाल से जुड़े सपने आते हैं जिसे हम लगभग पूरी तरीके से भूल चुके होते हैं।
* सपनों के विपरित प्रभाव ---
सपनों के दौरान हम जो देखते हैं कई बार चीजें उसके ठीक उलट हो जाती हैं। जैसे कि अगर हमें किसी के प्रति घृणा है या लंबे समय से हम किसी को नकार रहे हैं या नजरअंदाज करते आ रहे हैं, ऐसी स्थिति में हमें उनसे जुड़ा कुछ ऐसा सपना आ जाता है, जिसमें हम उनसे ऐसे प्रेमपूर्वक बर्ताव कर रहे होते हैं जैसे कि अमुक व्यक्ति हमारा सबसे घनिष्ठ हो।
सपनों के विपरित प्रभाव को इस एक उदाहरण से और बेहतर तरीके से समझा जा सकता है -
एक बार एक बूढ़ा रात को अचानक उठकर जोर जोर से हंसने लगता है, पास में सो रही उसकी पत्नी डर के मारे उठ जाती है और अपने पति से कहती है कि आप ऐसे क्यों हंस रहे हैं, पति यह सुनकर और जोर जोर से हंसने लगता है, फिर वह सो जाता है।
अगली सुबह वह अपने एक मित्र को सपने के बारे में बताते हुए कहता है - कल रात मैंने एक सपना देखा, पता नहीं आज उसी वजह से बहुत ज्यादा सिरदर्द भी हो रहा है। तो कल मैंने सपने में देखा कि तुम रात को मेरे घर आए हुए हो, और मेरे घर की लाइट बंद है, तुम मुझे कहते हो कि लाइट चालू करो लेकिन मैं बहुत कोशिश करने के बाद भी चाह कर भी लाइट चालू नहीं कर पाता, फिर मैं अपनी पत्नी से लाइट चालू करने के लिए कहते हूं वो भी बहुत कोशिश करती है लेकिन लाइट चालू नहीं कर पाती और फिर मेरी पत्नी निराश होकर सो जाती है और फिर तुम मेरे घर से जाने लगते हो, यह सब कुछ मुझे इतना हास्यास्पद लगता है कि मैं जोर जोर से हंसने लगता हूं वो भी रात को उठकर, ये मुझे मेरी पत्नी ने ही बताया।
असल में उस बूढ़े का सपने के दौरान जोर जोर से हंसना और उसके बाद उसे सिरदर्द की समस्या होना इस बात का प्रमाण है कि अब उसे गहरे शोक के गर्त में जाना है, और सचमुच कुछ दिन बाद उस बूढ़े की मृत्यु हो जाती है। क्योंकि सामान्यतः आदमी हंसने के बाद बहुत बेहतर महसूस करता है लेकिन बूढ़े को तो अगले दिन सिरदर्द की समस्या हुई, क्योंकि वो वास्तविक में न हंसकर सपने में हंस रहा था।
उसका निरंतर हंसना जीवन रूपी एक आखिरी प्रकाश था बिल्कुल एक टूटते तारे से निकलते प्रकाश की तरह जो अब फिर दुबारा उस रूप में कभी नहीं दिखेगा। असल में हमारे सपनों को बहुत अच्छे से पता होता है कि उन्हें दुःख, संताप, मृत्यु आदि घटनाओं को कैसे एक हास्यास्पद वाकये में परिवर्तित करना है।
* सपनों में विषयांतर ---
कई बार हमें ऐसे सपने आ जाते हैं जिनका कोई वजूद नहीं होता। लेकिन ऐसा सोचना हमारी गलतफहमी होती है, असल में उन सपनों का विषयांतर हो जाता है यानि हम सपना किसी देखते किसी और चीज के बारे में है और घटता कुछ और है।
सपनों के विषयांतर को इस उदाहरण से समझा जा सकता है -
एक बार एक लड़की सपना देखती है कि उसकी दीदी का बच्चा कब्र में सो रहा है, वो इस सपने से डर जाती है। लेकिन असल में ऐसा कुछ भी नहीं होता, वो बच्चा बिल्कुल स्वस्थ रहता है। असल में इस सपने का असल अर्थ यह है कि सपना देखने वाली लड़की अपने किसी पुराने प्रेमी को बस एक बार देखना चाहती है, क्योंकि अपने प्रेमी को एक बार देख लेने की उत्कंठा उसके मन में हमेशा रहती है। इसलिए यहाँ इस सपने का संबंध दुःख से न होकर उस लड़की की आखिरी इच्छा से है।
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